कविता ; लेन देन – दीपक खेतरपाल

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लगती थी साथ साथ

सीमा

गांव और शहर की

पर दोनों थे अलग अलग

हवा शहर की

एक दिन

कर सीमा पार

पंहुच गई गांव में

और छोड़ आई वहां

आलस्य

फरेब

मक्कारी

आंकाक्षाएं

महत्वआंकाक्षाएं

बदले में ले आई

निश्छलता

निष्कपटता

निस्वार्थ व्यव्हार

पर इस लेन देन के बाद

गांव गांव न रहा

और ठुकरा दिया

शहर ने वो सब

लाई थी जो

शहर की हवा

गांव से

 

 

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