कविता/ मैं भावनाओं में बह गया था

मैं भावनाओं में बह गया था

मुझे नहीं मालूम ऊंच -नीच

मेरे पास पढाई की डिग्री नहीं है

मैं अनपढ़ हूँ

मुझे क्या पता

यहाँ डिग्री की जरुरत होती है

मैं अनपढ़ हूँ

डिग्री धारी होता तो

गरीबों का पेट काटता , खून चूसता

देश को गर्त में ले जाता

बड़े -बड़े घोटाले और मजलूमों पर अत्याचार करता

इस सभ्य संसार में

मेरी कोई क़द्र नहीं

हाँ मैं साहब को सलाम करता हूँ

पर साहब के जैसा बेईमान नहीं

मेरे मन में छोटे -बड़े की भेद नहीं है

क्योंकि मैं अनपढ़ हूँ

० लक्ष्मी नारायण लहरे पत्रकार कोसीर

6 COMMENTS

  1. My dear ,
    jai mai ki.
    kuch bhi karo kuch to log kahenge…
    aapki kavita ke bhavon main jo dard chipa hai use samjhna har kisi ke vas ka nahin hai… achhi kavita ke liye … shubhkaamnayen.
    shailendra saxena”Aadhyatm”
    09827249964.
    Director- “Ascent English Speaking Coaching”
    Ganj Basoda. M.P.
    D

  2. आदरणीय ,
    अनिल शहगल जी सप्रेम साहित्याभिवादन…
    मेरा धेय किसी पक्छ को अघात पहुचना नहीं है ,अगर आपको मेरी कविता पढ़कर ठेस पहुंची है तो मैं खेद प्रगट करता हूँ
    मैंने बचपन में पढ़ा था साहित्य समाज का दर्पण है ………
    आपको हार्दिक बधाई ……
    आपने साहित्य की क़द्र की …….
    धन्यवाद
    सादर
    लक्ष्मी नारायण लहरे ……

  3. कविता/ मैं भावनाओं में बह गया था – by – लक्ष्मी नारायण लहरे पत्रकार कोसीर

    अनपढ़ क्या घोटाले और अत्याचार नहीं करते ?

    यह तो निश्चित है कि बड़े -बड़े घोटाले करने वालों को पकड़ने वाले सभी डिग्री धारी हैं.

    लक्ष्मी नारायण लहरे जी आप अपनी कविता पर पुनर्विचार करें.

    RTE लागू है. आपने RTE भाव और उद्देश्य के विरुद्ध कविता लिखी है.

    – अनिल सहगल –

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