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कविता:चोराहे पर खड़ा हूँ-बलबीर राणा - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
किधर जाऊं चोराहे पर खड़ा हूँ सुगम मार्ग कोई सूझता नहीं सरल राह कोई दिखता नहीं कौन है हमसफ़र आवाज कोई देता नहीं किधर जाऊं चोराहे पर खड़ा हूँ इस पार और भीड़ भडाका उस पार सूनापन एक और शमशान डरावन एक और गर्त में जाने का दर डर…