कल मिला मुझे
अबोध बच्चा
एक
आंखों में आंसू
होंठों पर सिसकियों के साथ
न जाने
उसका अपना कौन, क्या कहां गुम था ?
सुनाई पड़ रही थी
उसके रोने की हिचकियां
चुप कराने की
बहुत की कोशिश
बच्चा नहीं माना
नहीं थम रहे थे आंसू
आंखों में टंगा था
किसी के लिए
मानो न कभी खत्म होने वाला इंतजार।
शायद
नहीं जानता था
रोने से नहीं होता कुछ भी हासिल।
कई आंखें होती ही हैं
प्रतीच्छा जिनकी अंतिम नियति
कई बार
ऍसा होता है
हमारे मन का बच्चा भी रोता है
इस बात से बेखबर
कौन- कहां- क्या गुम है ?
वाकई
कई बार
कोई अपना नहीं होता
छोटा सा सपना भी सच नहीं होता।
थोड़ी सिसकियां, थोड़े गम
जीवन हमने बांटे कब ?
यकीन
नहीं आता
सुनो
ध्यान दे
किस कदर
दिल रोता है।
-०-
कमलेश पांडेय
अबोध बचपन ,बोध्पूर्ण इच्छाएं ? बचपन और दर्शन साथ-साथ कैसे संभव हैं भला ……………….उम्दा रचना