अजीब चाहत है
इस जीवन में
सिर्फ संघर्ष भरी राहें है
अपनों के बीच भी हम अकेले है
एक -दुसरे के प्रेम से बंध कर
स्वार्थ भरी जीवन जी रहे है
जिन्दगी ….. की जंग में
भाई -भाई को नहीं समझता
माँ -बाप को नही पहचानते
स्वार्थ ,भरी जीवन जी रहे है
अजीब चाहत है
इस जीवन में
सिर्फ संघर्ष भरी राहें है
अपनों के बीच भी हम अकेले है
एक -दुसरे के प्रेम से बंध कर
स्वार्थ भरी जीवन जी रहे है
जिन्दगी ….. की जंग में
भाई -भाई को नहीं समझता
माँ -बाप को नही पहचानते
स्वार्थ ,भरी जीवन जी रहे है
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।