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कविता / मन का शृंगार - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
काश। एक कोरा केनवास ही रहता मन…। न होती कामनाओं की पौध न होते रिश्तों के फूल सिर्फ सफेद कोरा केनवास होता मन…। न होती भावनाओं के वेग में ले जाती उन्मुक्त हवा न होती अनुभूतियों की गहराईयों में ले जाती निशा। सोचता हूं, अगर वाकई ऐसा होता मन तो…