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कविता / भ्रांति - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
चीखो, चिल्लाओ, नारा लगाओ। सुनता हमारी कौन है? (सारे बोलने में व्यस्त है।) इसी के अभ्यस्त है। लिखो लिखो झूठा इतिहास। हमारा भी नहीं विश्‍वास। पढ़ता उसे कौन है ? चीखो, चिल्लाओ, नारा लगाओ। करना धरना कुछ, नहीं। नारा लगाना कार्य है। नारा लगाना क्रांति है। यही तो भ्रांति है।…