pravakta.com
कविता / दर्द बन कर - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
अपनों का जब छूट जाता है साथ दर्द बन कर हंसाती है हर लम्हा याद बनकर तड़पाती है काश! कुछ लोग ये बात समझ पाते काश! अपनों की र्दद का अहसास होता बनकर दीप जलते रहे हम साहिल पे जाकर बुझ गए बन गए एक पहेली समझ सके न वो…