कुर्सी की लालसा में बढ रहा अब राजनीति का खेल
हर नेता पाने को लोलुप कर रहा एक दूसरे से मेल।
बुद्धिजीवी बनाकर बैठा घर को अपने जेल
सत्ताधारियों के नंगे नाच की चल पडी अब रेल।
आम आदमी करवा रहा है खुद से खुद का शोषण
जनप्रतिनिधि के कुर्सी पर बैठा रहा विभीषण।
जन्म लेकर अगर अमर सपूत फिर इस धरती पर आये
सोचेंगे कि क्यों न हम फिर से ही मर जाये।
जाग उठो अब युवाओं करना है परिवर्तन
ले जाना है विश्व में शीर्श पे अपना भारत वतन।
-अमल कुमार श्रीवास्तव
bahut achchhe bhai…
aap jaage . to hum bhi jagenge…