थे राम अयोध्या के राजा ये सारा विश्व जानता है।
पर आज उन्हें अपने ही घर तम्बू में रहना पड़ता है।।
अल्लामा इकबाल ने उनको पैगम्बर बतलाया है।
उनसा मर्यादा पुरुषोत्तम न पृथ्वी पर फिर आया है।।
फिर भी इस सेकुलर भारत में राम नाम अभिशाप हुआ।
मंदिर बनवाना बहुत दूर पूजा करना भी पाप हुआ।।
90 करोड़ हिंदू समाज इससे कुंठित रहते हैं।
उनकी पीड़ा को समझे जो उसे राष्ट्रविरोधी कहते हैं।।
हिंदू उदारता का मतलब कमजोरी समझी जाती है।
हिंद में ही हिंदू दुर्गति पर भारत माता रोती है।।
हे लोकतंत्र के हत्यारों सेकुलर का मतलब पहचानो।
मंदिर कहना यदि बुरी बात तो राम का घर ही बनने दो।
गृह निर्माण योजना तो सरकार ने ही चलवाई है।
तो राम का घर बनवाने में आखिर कैसी कठिनाई है।।
हे हिंदुस्तान के मुसलमान बाबर तुगलक को बिसरावो।
यदि इस मिट्टी में जन्म लिया तो सदा इसी के गुण गावो।।
भाई-भाई में प्यार बढ़े ये पहल तुम्हें करनी होगी।
वरना ये रक्पात यूं ही सदियों तक चलता जायेगा।
आपस की मारा काटी में बस मजा पड़ोसी पायेगा।।
-मुकेश चन्द्र मिश्र
महोदय आपका आरक्षण वाला लेख पढ़ते पढ़ते मुझे आपकी ये कविता भी मिली जो बहुत ही खुबसूरत है तथा आपने रामभक्तों की आत्मा तक को झगझोर दिया है पर मुझे नहीं लगता हमारे देश की सरकार या किसी और को कोई फर्क पड़नेवाला, इनको तो वोट बैंक तैयार करना है , राम का वनवास ख़त्म हो या नहीं इनको क्या……
मुकेश जी आपकी कविता सुन्दर रचनाओ मे से एक है . मैंने आपकी कविता की आखरी लाइन पढ़ी जो की प्रकाशित नहीं हुई थी उसे पढने के बाद ही सही रूप से कविता का भाव समझ में आता है .
अली अलबेला जी, आपकी बातें मन को छू रही हैं. आपकी बातों में ज्ञान, विद्वत्ता नहीं, दिल है. दिल की बात दिल तक पहुँच जाती है. आप सरीखे लोगों से ही समस्याओं के समाधान के रास्ते हर मौके पर निकलेंगे. पर सरकार सर पर उन्हें बिठाती है जो देश को तोड़ने का कम करते हैं. खैर सज्जनों का मौक़ा भी आयेगा, मुझे विश्वास है.
– एक जानकारी आपको देना चाहूँगा कि लाल किला अरबों के आक्रमण से बहुत पहले बने होने के प्रमाण मिल चुके हैं. पर आपकी बात सिद्धांत रूप में सही है कि फैसलों के पैमाने सबके लिए बराबर होने चाहियें.
मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें. सप्रेम आपका अपना,
-डा. राजेश कपूर.
बहुत सुन्दर ! साधुवाद.
hello mishra ji ka hal ghaiel bhaiyya iiiee ka likh diye be aisan lage jaisan pura hindu samaj dukhda khol diye be bahutai accha bhaiel hamka
Dear Kavi raj ( Mukesh)
The views expressed by you are very logical, Impact of words going directly to heart….
we liked very much…..
Regards
Haresh Halai
Dear Kavi Mukesh,
Apki Kavita hume hindu evam rasthraywadi hone ka sandesh desti hai….
apke vichar amar rahen aap mar rahen yehi Ram Bhagwan se humari prathna hai….
The views expressed by you are very logical, Impact of words going directly to heart.
Keep posting such wonderful thoughts, we like very much……………………….
………………………………………………………..Bye
Ka ho bhaiya, bahutai achi kavita likho ho, anand aa gava pad ke,
lagat hai ram mandir pe faisala sun ke bahut vyathit hui gaye ho………
hi, Mishra G, Ram Ram, Bahut achhi Kaviata hi, keep continue writing ……………..
All the Best…………..
रास्ट्र हित मैं कविता के लिए कवि को सादवाद
लाजवाव !!!
आत्म बिव्होर हो गया!!!
Vakayi me lajvab kavita hai kripaya ye josh banaye rakhna aapki agli kavita ka intjaar rahega………
पहले अच्छी कविता के लिए लेखक को बधाई. और दुसरी बात अली साहब से भी सहमत. लेकिन इतनी ही इल्तजा होगी कि क्या सरयू से उत्तर कही भी ऐसा कोई मस्जिद बनाना संभव हो तो इस पर विचार करें. वास्तव में राम नाम पर मस्जिद बनाया जाना एक स्वागतेय सुझाव….साधुवाद.
पंकज भाई प्रणाम कैसे हैं?
बहरहार जैसे भी हों, अल्लाह आपको खुश रखे और हिदायत दे
कविता में एक पंक्ति है-
हे हिन्दुस्तान के मुसलमान बाबर, तुगलक को बिसरावो
तो मैं कवि ह्रïदय को ये बता दूं कि मुसलमान हिन्दुस्तान का हो या अतिरिक्तस्तान का, वो ना तो किसी बाबर को पूजता है और ना ही किसी तुगलक को। (अगर मुसलमान है तो!)
जब बात आती है न्यायालय की तो यार मैं बिल्कुल सहमत नहीं हूं (अब आप कहोगे मुसलमान है ना इसलिए)
नहीं! सारी जमीन या तो मंदिर को दे दो या मस्जिद को,
भई मामला तो मालिकाने हक का था-या तो हिन्दू भाई उसके मालिक हैं या मुस्लिम। खैरात मांगने थोड़ई गए थे पक्ष न्यायालय में!
थोड़ी आप लो, थोड़ी आप लो, थोड़ी आप लो (आस्था के नाम पर फैसला)
वहीं दूसरी ओर पंकज भाई फरमाते हैं कि-
‘सरयू से उत्तर कहीं भी ऐसा कोई मस्जिद बनाना संभव हो तो इस पर विचार करेंÓ
बहुत ही खुशी की बात है कि आप इतने अच्छे ओर नेक विचार रखते हैं, इसके लिए आपको मेरा सलाम!
मुझे नहीं पता कि वहां क्या था और क्या होना चाहिए लेकिन मैं कभी सोचता हूं तो उलझकर रह जाता हूं-
ेअगर बाबर ने मंदिर तोड़कर वहां मस्जिद बनाई,
(लोग उसे जालिम, जल्लाद, पापी आदि बोलते हैं तो मैं उससे मिला नहीं जो ये दलील पेश करूं कि वो ऐसा नहीं था, या वो अच्छा इंसान था नहीं कह सकता)
लेकिन अगर कुछ लोग मस्जिद तोड़कर मंदिर बनाना चाहते हैं तो भई मेरी नजर में तो वो भी बाबर की श्रेणी में आते हैं।
पंकज साहब मैंने आपका एक लोख पढ़ा था जिसमें आपने मस्जिद शहीद करने के पीछे एक ये दलील दी थी कि ‘गुलाम देश को आजाद होने पर विदेशी स्मारकों को तोड़ देना चाहिएÓ
भई अगर हिन्दुस्तान का संविधान यह कहता है और मानता है तो मैं बिल्कुल सहमत हूं, राजी हूं, खुश हूं क्योंकि मैं हिन्दुस्तानी हूं, वहीं दूसरी ओर जब उन्हीं विदेशियों उन्हीं मुगलों का बनाया हुआ एक और स्मारक ‘लालकिलाÓ को कोई हानि पहुंचाता है तो उसे देशद्रोही कहा जाता है। हे भगवान ये कैसा अन्याय?
क्या मस्जिद तोडऩा इसलिए जायज था कि कुछ लोग उसमे आस्था रखते थे?
अच्छा सभी को प्रणाम
किसी को कुछ बुरा लगा हो तो माफ कर देना
बहुत प्रणाम अली साहब…पता नहीं क्या सही है या क्या गलत. शायद मेरी बुद्धि वहाँ तक नहीं पहुच पाती हो. बस एक ही निवेदन है कही भी मंदिर बने, कही भी मस्जिद बने हमारे दिलों के बीच दूरियां न हो बस यही चाहता हूँ. जहां तक न्यायलय के फैसले का सवाल है तो कबीर याद आ रहे हैं जिनकी मौत पर दोनों फिरकों के लोगों ने अपना हक जताना चाहा तो कहते हैं कि उनका शव, फूल में परिवर्तित हो गया और दोनों पक्ष बाँट ले गए उस फूल को अपनी-अपनी मान्यता अनुसार संस्कार करने. न्यायलय ने ऐसा ही ‘फूल’ आपको भी दिया है. और यह आप पर ही है कि इस उपहार का क्या करते हैं. कृपया इसे खैरात न समझें…धन्यवाद.
अली साहब सर्वप्रथम तो मेरी कविता पढने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद् अगर आपको मेरी कविता की किसी पंक्ति से तकलीफ हुयी तो उसके लिए माफ़ी चाहता हूँ वैसे मेरी वो पंक्ति जिसपर आपको तकलीफ हुयी वो आप जैसे राष्ट्रवादी मुसलमानों के लिए नहीं है बल्कि उन पाकिस्तानी मुसलमानों तथा उनके जैसी सोच रखने वालों के लिए है जो अपनी मिसाइलों के नाम गजनी और गौरी रखते हैं तथा हमारे यहाँ के कुछ पाक परस्त मुस्लिम उनकी सोच में उनका साथ देते हैं, हालांकि उनकी गिनती उँगलियों पर है, और उन हमलावरों ने सबसे पहले उसी हिस्से को रौंदा था जहाँ आज उनकी जय जयकार हो रही है लेकिन उनकी इस सोच से बदनाम पूरी कौम होती है.
और रही मस्जिद तोड़ने या मंदिर बनाने की बात तो संपादक महोदय ने मेरी कविता की एक लाइन पता नहीं किस कारण से प्रकाशित नहीं की वर्ना मैंने आपके प्रश्न का उत्तर देने और उस भूमि की हिन्दुवों के लिए अहमियत क्या है यह बताने की कोशिश की थी, वो पंक्ति इस प्रकार है –
भाई-भाई में प्यार बढ़े ये पहल तुम्हें करनी होगी।
है अवध हिन्दुवों का “मक्का” वो जन्म भूमि देनी होगी.
जिस प्रकार मुस्लिमो के लिए मक्का का महत्वपूर्ण है उसी तरह हिन्दुवों के लिए अयोध्या, आशा है आप जैसे मुस्लिम लगभग १ अरब हिन्दुवों की इस आस्था का सम्मान करेंगे और राम मंदिर निर्माण के लिए आगे आएंगे जिसपर अब कोर्ट ने भी मुहर लगा दी है
धन्यवाद
मिश्र जी अब ज़रा बात सुन लो हमारी
राम में अगर आस्था है तुम्हारी
राम अयोध्या के राजा ये
ये भी दुनिया जाने सारी
दुनिया जाने सारी तो आप ही सुलह करा दो
बाबर के नाम कि क्यू राम नाम कि मस्जिद बनवा दो
आमीन
mukesh ji bemishal kavita ke liye dhanyvaad.kaliyoug ke ram ka banvaas kab khatm shayad ye baat bhagvaan shriram ji bhi nahi janate.