कविता – अगली सदी-मोतीलाल

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बहुत संभव है

चक्कियोँ के पाट से

कोई लाल पगडंडी निकल आये

और आँसूओँ के सागरोँ पर

कोई बादल उमड़ता चला जाये

 

गिरते पानी मेँ

कदमोँ की आहट

प्रायद्वीप बनने से रहे

बहुत संभव है

कोहनियोँ पे टिका जमीन

पानी मेँ घुले ही नहीँ

और बना ले

प्रकृति की सबसे सुन्दर आकृति

 

इन आयामोँ मेँ

खिड़की दरवाजोँ से निकलकर

लुहार की निहाई की तरह

लावण्य की अनुकृति

कहीँ दूर से चमक उठे

और संभव है

आग के कुएँ मेँ

ढेरोँ प्रकाश के गिरने की आहट से

कोई किताब का पन्ना चीख उठे

और सज जाए

हमारे रेत मेँ कई धूमकेतु ।

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