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कविता - महानगर के मायने - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
मोतीलाल यहाँ मुझे कोई नहीँ पहचानता आकाश की तरह शून्य यहाँ मुझे कोई नहीँ जानता हवाओँ की तरह मुक्त यहाँ मुझे कोई नहीँ दिखता फूलोँ की तरह सौम्य यहाँ मुझे कोई नहीँ सुनता नदी की तरह उनमुक्त यहाँ मुझे कोई नहीँ महसूसता आँच की तरह तपन…