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कविता - राह - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
मोतीलाल वह सड़क जिस पर मैँ चल रहा हूँ तुम्हारे भीतर जाकर खत्म हो जाती है वह सड़क जिस पर तुम चल रही हो किसी चौराहे पर जाकर नहीँ मेरे मन के भीतर खत्म होती है सही है कि सड़क की कोई मंजिल नहीँ होती एक दिशा तो…