आज ईद है। मुबारक हो सबको। हर धर्म हमें प्यारा हो। हम ईद भी मनाये, दीवाली भी। बड़ा दिन भी। सब त्यौहार हमारे है। मैंने कभी रमजान पर लिखा था, दो शेर ही याद आ रहे है. देखे- रोजा इक फ़र्ज़ मुसलमान के लिए/ तकलीफ जो सहते है रमजान के लिए/ बाद मरने के ही ज़न्नत मिलेगी/ थोडी तो हिद्दत सहो दय्यान के लिए..। दय्यान यानि स्वर्ग का वह आठवा दरवाज़ा जो रोजेदारों के लिए खुलता है। बहरहाल, ईद पर बिल्कुल ताज़ा रचना पेश है, इस विश्वास के साथ की हम सकल्प ले की जाती-धर्म की दीवारे तोडेंगे । मिलजुल कर रहेंगे। ऐसा समाज बनाना है, जहा लोग कहे-सुबह मोहब्बत, शाम मोहब्बत /अपना तो है काम मोहब्बत / हम तो करते है दोनों से / अल्ला हो या राम मोहब्बत / देखिये मेरे शेर। ईद मुबारक….मीठा खाए, मीठा बोलें…जीवन में हम मिसरी घोलें।
आज ईद है…..
आओ, सबको गले लगाओ आज ईद है
सेवई खाओ और खिलाओ आज ईद है
बैर न कोई दिल में पालो मेरे भाई
दुश्मन को भी पास बुलाओ आज ईद है
कोई इक त्यौहार किसी का नही रहे अब
सारे बढ़ कर इसे मनाओ आज ईद है
रोजे रख कर हुई इबादत देखो भाई
सुबह-शाम केवल मुस्काओ आज ईद है
ईद, दीवाली, होली सब त्यौहार हमारे
पागल दुनिया को समझाओ आज ईद है
-गिरीश पंकज
गीरिश् जी
आपकॆ विचार अच्छॆ लगॆ
डा शरीफ
कराची
बहुत सुन्दर…
ईद मुबारक हो…