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कविता:खिलौना-श्यामल सुमन - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
देख के नए खिलौने, खुश हो जाता था बचपन में। बना खिलौना आज देखिये, अपने ही जीवन में।। चाभी से गुड़िया चलती थी, बिन चाभी अब मैं चलता। भाव खुशी के न हो फिर भी, मुस्काकर सबको छलता।। सभी काम का समय बँटा है, अपने खातिर समय कहाँ। रिश्ते…