काला पानी का सच
जो थे राष्ट्रभक्त
और स्वतंत्रता सेनानी
उन्हें तो
उठानी पड़ी थी
अनेकानेक परेशानी।
भेज देते थे उन्हें
बर्बर गोरे अंग्रेज
भोगने काला पानी।
तथापि,
वे सत्याग्रह करते गए
बेशक इस क्रम में
अनेक मर गए,
तो कुछ
गुमनामी के अँधेरे में
खो गए।
लेकिन,
देश को यही लोग
स्वाधीन कर गए।
आजाद हुआ देश
तो
बदलने लगा परिवेश।
सब कुछ हो अपना
यही तो था
सबका सपना।
अपना कानून,
अपना संविधान,
अपनी बोली,
अपना परिधान।
इस बीच,
गुजर गई आधी शताब्दी
और
विकास के साथ
बढती गई हमारी आबादी।
परन्तु,
साढ़े छह दशक बाद भी
काला पानी ने
न छोड़ा हमारा साथ
काला पानी पेश करना तो अब
हो गई है
शिष्टाचार की बात।
वैज्ञानिक कहते रहें
इसे खराब
स्टार तो हमारे
कहते हैं इसे लाजवाब।
हो कोई क्रिकेटर
या हो कोई फ़िल्मी एक्टर
सबके लिए पैसा है
बहुत बड़ा फैक्टर।
काला पानी से
देखिए उनका अपनापन,
हर तरफ आजकल
छाया है उसी का विज्ञापन।
काला पानी अब
हम भोगते नहीं
बल्कि
खूब पीते हैं
जिंदगी को ऐसे ही
खूब मस्ती में जीते हैं।
गरीबों/ ग्रामीणों को
मिले न मिले
पीने को पानी
पर, हर जगह
मिल रहा है काला पानी,
काला पानी ।