श्यामल सुमन
सच कहने की आदत है
मुश्किल होता सच सहना तो
कहते इसे बगावत है
बिना बुलाये घर आ जाते
कितनी बड़ी इनायत है
कभी जरूरत पर ना आते
इसकी मुझे शिकायत है
मीठी बातों में भरमाना
इनकी यही शराफत है
दर्पण दिखलाया तो कहते
देखो किया शरारत है
दर्पण झूठा कभी न होता
बहुत बड़ी ये आफत है
ऐसा सच स्वीकार किया तो
मेरे दिल में राहत है।
रोज विचारों से टकराकर
झुका है जो भी आहत है
सत्य बने आभूषण जग का
यही सुमन की चाहत है