कुछ तलाशता हुआ मैं कहाँ आ गया हूँ …..
बहुत कुछ पीछे छूट गया है …..
मेरी बस्ती ये तो नहीं थी …..
मट्टी की वो सोंघी महक …
कोयल के वो मधुर गीत …
वो आम के पेड़ो की ठंडी ठंडी छांव ..
वो मदमाती आम के बौरो की खुशबू …
वो खेतो में बहती सरसराती हवा ….
उन हवा के झोंको से बहलता मन ..
वो गायो के गले बंधी घंटियाँ …
वो मुर्गियों की उठाती हुई आवाजे ….
वो बहुत सारे बच्चो का साथ साथ चिल्लाना ….
वो सुख दुःख में शामिल चौपाल ….
लम्बी लम्बी बैठके ,गप्पो की …
और सांझ को दरवाजे पर टिमटिमाता छोटा सा दिया …..
वो खपरैल की छप्पर से उठता कैसेला धुआ…
वो चूल्हे पर पकती रोटी की खुशबू …
वो आँगन में पोते हुए गोबर की गंध …
वो कुंए पर पानी भरती गोरिया …
वो उन्हें तांक कर देखते हुए छोरे…
वो होली का छेड़ना , दिवाली का मनाना …
वो उसका; चेहरे के पल्लू से झांकती हुई आँखे;
वो खेतो में हाथ छुड़ाकर भागते हुए उसके पैर ;
वो उदास आँखों से मेरे शहर को जाती हुई सड़क को देखना
वो माँ के थके हुए हाथ
मेरे लिए रोटी बनाते हाथ
मुझे रातो को थपकी देकर सुलाते हाथ
मेरे आंसू पोछ्ते हुए हाथ
मेरा सामान बांधते हुए हाथ
मेरी जेब में कुछ रुपये रखते हुए हाथ
मुझे संभालते हुए हाथ
मुझे बस पर चढाते हुए हाथ
मुझे ख़त लिखते हुए हाथ
बुढापे की लाठी को कांपते हुए थामते हुए हाथ
मेरा इन्तजार करते करते सूख चुकी आँखों पर रखे हुए हाथ …
फिर एक दिन हमेशा के हवा में खो जाते हुए हाथ !!!
न जाने ;
मैं किसकी तलाश में शहर आया था ….