पाकिस्तान व चीन का हर बड़ा शहर अब हमारी
तरकश की मार की पहुंच में है
हमारे देश में हर साल उग आते हैं अनेकों अरबपति
सासंदों की आय हो जाती है हर साल दोगुना
एक अम्बानी अपनी पत्नी को उसके जन्म दिन पर
भेंट दे देता है एक उड़नखटोला……..
चन्द्रमा पर पानी की गम्भीर खोज में व्यस्त हैं हम
भारत के युवा अपनी मेधा से दुनिया में लोहा मनवा रहे हैं
लेकिन फिर भी 40 करोड़ से अधिक लोगों के चेहरे उदास क्यों हैं
क्यों कोई अग्नि, कोई त्रिशूल, या पृथ्वी भेद नहीं पा रही है
भ्रष्टाचार , गरीबी व कुपोषण को,,,,,,,,,,,
क्यों बहुमंजिली कोठियों के आगे झोपड़ियों की लम्बी कतारे हैं
क्यों सड़कों, रेलवे लाइनों पर मजदूरी करती माता-बहिनों के
झुण्ड के झुण्ड दिखाई देते हैं,,,,,,,,,
हम कब समझेंगे कि मां बहिनों व बच्चों के चेहरे पर मुस्कराहट
विश्व गुरु भारत की पूर्व शर्त है
बहिनें विज्ञान , आई.टी. व ,व्यवसाय में जौहर दिखाएं
कल्पना चावला, सुनिता विलियम व किरण बेदी बन
बुलंदियां छूएं इसमें हमारी शान है
लेकिन मजबूरीवश किसी के आगे हाथ फैलाएं
महाशक्ति भारत का यह अपमान है
हमें सोचना होगा…….
क्यों प्रतिवर्ष लाखों धरती पुत्र कर लेते जीने से तौबा
क्यों करोड़ों वनवासी बन्धु जीवन की मूलभूत
जरुरतों के लिए जूझते और
निहारते रहते हैं राजभवन की ओर
क्यों विकास व समृद्धि की गंगा शहरों में घूमते घूमते
गांवों का रास्ता भूल जाती है …….
क्यों हर साल हजारों निर्दोष नागरिक खो देते हैं
अपना बहुमुल्य जीवन आतंकवादियों के हाथ
क्यों देशवासियों के चेहरे पर हर हमारी उपलब्धि की बात सुन
फैल जाती है असहाय व ब्यंग्यात्मक मुस्कराहट
देश को तलाश है फिर किसी डा. हेडगेवार, नेताजी सुभाष या
किसी लाल बहादुर शास्त्री की
जो देश के दर्द में बेचैन हो कर कर दे न्यौछावर स्वयं को…
क्या वह तलाश हम पर आकर समाप्त हो सकती है ?
-विजय कुमार नड्डा
-विजय कुमार नड्डा जी सप्रेम आदर जोग
क्यों विकास व समृद्धि की गंगा शहरों में घूमते घूमते
गांवों का रास्ता भूल जाती है …आपकी कविता में एक दर्द है जो ब्याकुल है लड़ना चाहता है एक नये जीवन की ओर इसारा कर रहा है आपको हार्दिक शुभकामनाएँ ””””