कविता – आता हूँ प्रतिवर्ष

विमलेश बंसल

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन मैं आता हूँ प्रतिवर्ष।

जी हाँ मुझको कहते हैं नववर्ष॥

भरता हूँ नव जीवन सबमें,

विमल उमंग उत्कर्ष।

जी हाँ मुझको कहते हैं नववर्ष॥

1)मैं वसंत का प्राण निराला।

कर देता सबको मतवाला।

मुझसे सबको हर्ष॥

जी हाँ मुझको कहते हैं नववर्ष॥

2)नहीं ग्रीष्म में नहीं शीत में।

वीणा के मैं मधुर गीत में।

गाता हूँ प्रतिवर्ष ॥

जी हाँ मुझको कहते हैं नववर्ष॥

3)धरती करती मेरा स्वागत।

ओढ़ चूँदरी करती आरति।

बैठ योगिओं ॠषि मुनिओं में।

ध्याता हूँ प्रतिवर्ष ॥

जी हाँ मुझको कहते हैं नववर्ष॥

4)सभी फूल मुझसे हैं रिझाते।

पक्षी भी पिउ-2 कर गाते।

सिखलाता हूँ प्रतिवर्ष॥

जी हाँ मुझको कहते हैं नववर्ष॥

5)वीरों की मैं याद दिलाता।

जन्म और निर्वाण मनाता।

होकर नव कुछ नव कर जाओ।

दोहराता हूँ प्रतिवर्ष॥

जी हाँ मुझको कहते हैं नववर्ष॥

6)मुझको प्यारे भूल न जाना।

पश्चिम में तुम झूल न जाना।

सदा रहा हूँ सदा रहूँगा।

चाहे हो संघर्ष॥

जी हाँ मुझको कहते हैं नववर्ष॥

 

 

 

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