हमारे ‘राजा’ की योजनाएं

हमारे देश में अपने संविधान को ही सर्वगुण संपन्न मानने वाले कई लेाग हैं। ये सज्जन इस संविधान को छेडऩे की या इसमें किसी प्रकार की त्रुटि निकालने की किसी भी कार्यवाही के कट्टर विरोधी हैं। ऐसी सोच उन लोगों की है जो धर्मनिरपेक्षता और पंथनिरपेक्षता में तथा धर्म और संप्रदाय में अंतर नही कर पाते हैं और भारत के अतीत को सर्वथा अंधकारमय मानकर चलने के अभ्यासी हैं।
वास्तव में हमारा संविधान विश्व के प्रथम संविधान ‘वेद’ के चिंतन की ऊंचाई की ओर देखने का भी साहस नही कर सकता। जैसे आदर्श गणतंत्र का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए ऋग्वेद (10-173-1) में आया है-‘‘मैं तुझे अर्थात राजा या राष्ट्रपति को प्रजा में से ही लाया हूं (पुरोहित राज्याभिषेक के समय जनता द्वारा निर्वाचित राष्ट्रपति को शपथ दिलाते समय कह रहा है) हमारे बीच राजा बनकर रह। स्थिर और अविचल होकर शासन कर, सब प्रजायें तुझे चाहती रहें, ऐसा न हो कि तुझसे (तेरी निर्बलता, शिथिलता, प्रमाद या पक्षपाती न्याय के कारण) यह राष्ट्र छीना जाए।’’

यजुर्वेद में वर्णित राजसूय यज्ञ में राजा का अभिषेक करते हुए कहता है-‘‘मैं तुझे चंद्रमा की कांति से, अग्नि की दीप्ति से, सूर्य के वर्चस् से, इंद्र के इंद्रत्व से अभिषिक्त करता हूं। तू क्षात्रबलों का अधिपति हो तथा शत्रु के शस्त्रों से हमारी रक्षा कर (यजु. 10-17)।’’ इस पर राजा उत्तर देता है कि-‘‘मैं अपने शासनकाल में सविता, सरस्वती, त्वष्टा, पूषा, इंद्र, बृहस्पति, वरूण, अग्नि, सोम, विष्णु इन दस देवताओं से प्रेरणा पाता हुआ राज्य का संचालन करूंगा।’’ (यजु. 10-30)

vedasइस मंत्र की व्याख्या में जायें तो पता चलता है ‘सविता’ उत्पत्ति का प्रतीक है, सविता से प्रेरणा लेकर राजा राष्ट्र में सब प्रकार के आवश्यक उत्पादों की ओर ध्यान दे। ‘सरस्वती’ वाणी का प्रतीक है, राष्ट्र की वाणी को (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को, अर्थात ऐसी स्वतंत्रता जो नये-नये अनुसंधानों को और नये-नये आविष्कारों को जन्म देने वाली हो और जिससे लोगों के मध्य किसी प्रकार की कटुता के बढऩे की तनिक भी संभावना ना हो, एक दूसरे को नीचा दिखाने वाली और एक दूसरे के विरूद्घ अपशब्दों का प्रयोग करने वाली साम्प्रदायिक भाषा न हो) राजा न रोके। ‘त्वष्टा’ रूप का प्रतीक है। राजा को चाहिए कि वह राष्ट्र में रूप रंग भर दे। कहने का अभिप्राय है कि सभी को प्रसन्नवदन रखने का हरसंभव प्रयास करे। सभी की त्वचा पर चमक हो और यह चमक जो कि रूप रंग का प्रतीक है तभी चमकीली रह सकती है, जबकि व्यक्ति समृद्घ और प्रसन्नवदन हो। ‘पूषा’ का अभिप्राय ‘पशुओं का रक्षक’ है। राजा राष्ट्र में पशुओं का रक्षक हो। अभिप्राय है कि सृष्टि के जीवन चक्र को समझने वाला हो, जिसके अनुसार प्रत्येक प्राणी का जीवित रहना दूसरे अन्य प्राणियों के लिए आवश्यक है। हर प्राणी के प्राणों की रक्षा का दायित्व राजा के ऊपर इसीलिए है कि वह सभी प्राणियों का संरक्षक है। जो लोग किसी पूर्वाग्रह के कारण या किसी साम्प्रदायिक मान्यता के कारण किन्हीं पशुओं की हत्या करते हैं उन्हें ‘पूषा’ रूप राजा दण्ड दे। ऐसे राजा को राष्ट्र को कृषि और पशुपालन की ओर ध्यान देना चाहिए। मंत्र का अगला शब्द है ‘इंद्र’। इंद्र वीरता का प्रतीक है, ऐश्वर्य और समृद्घि का प्रतीक है। राजा का कत्र्तव्य है कि वह देश की प्रजा को वीर तथा ऐश्वर्यशाली बनाये। वीर्य रक्षा से ही वीर संतति का निर्माण होता है। इसलिए ब्रह्मचर्य रक्षा के सूत्रों को विद्यालयों में बताने-पढ़ाने की व्यवस्था करें। ‘ऊध्र्वरेता’ ब्रह्मचारियों का निर्माण करने से ही राष्ट्र में नारी का सम्मान हो पाना संभव है। फिल्मों के माध्यम से अश्लीलता परोसने और फिल्मी हीरो हीरोइनों के भद्दे प्रदर्शनों को बढ़ावा देने से वीर संतति का निर्माण और नारी का सम्मान हो पाना संभव नही है। जो वीर है वही  ‘स्टार्ट-अप’ और ‘डिजिटल इंडिया’ या ‘मेक इन इंडिया’ के सत्य को समझ सकता है और वही ‘स्किल डेवलपमेंट’ में अपनी सक्रिय भूमिका निभाकर ऐश्वर्य संपन्न हो सकता है।

राजा के लिए ‘बृहस्पति’ होने की बात भी यह वेदमंत्र करता है। बृहस्पति का अर्थ ज्ञान से है। राजा को राष्ट्रपति को या हमारे शासन मुख को बृहस्पति के समान महामेधासंपन्न होना चाहिए। वह किसी के लिखे हुए भाषण को पढऩे वाली ‘कठपुतली’ ना हो अपितु हर क्षेत्र का और हर विषय का वह गंभीर ज्ञान रखने वाला हो, उसके ज्ञान की गहराई उसकी एक योग्यता हो, इस योग्यता के कारण देश के लोग उसका स्वभावत: अनुकरण करने वाले हों। ऐसा शासन प्रमुख ही देश को सही मार्ग दिखा सकता है। राजा राष्ट्र में ज्ञान-विज्ञान की उन्नति करने वाला हो। वह स्वयं किसी प्रकार के अवैज्ञानिक और अतार्किक पाखण्ड या अंधविश्वास में आस्था रखने वाला ना हो।

‘वरूण’ दण्ड शक्ति का प्रतीक है। राजा को राज्य के प्रजाजनों के शांतिपूर्ण जीवन-व्यवहार में किसी भी प्रकार का विघ्न डालने वाले किसी भी आतंकी या उग्रवादी के प्रति न्याय करते समय किसी प्रकार का साम्प्रदायिक भेदभाव नही करना चाहिए। उसे आतंकवाद की एक निश्चित परिभाषा स्थापित करनी चाहिए और उस परिभाषा के अनुसार दण्ड विधान का निर्माण कर विधान का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति या व्यक्ति समूहों (उग्रवादी संगठनों) के प्रति कठोरता का व्यवहार करना चाहिए। उसे अपराधियों को यथायोग्य दण्ड देने में किसी प्रकार का संकोच नही करना चाहिए।

‘अग्नि’ तेज का प्रतीक है। अग्नि अग्रणी को भी कहते हैं। अग्नि अर्थात आगे ही आगे चलने वाला। नेता को या राजा को सदा अग्निव्रत (आगे ही आगे चलना=नेतृत्व देना) का पालन करना चाहिए। अग्नि का अर्थ तेज भी है, इसलिए राजा को चाहिए कि वह राष्ट्र को तेजस्वी बनाये।

‘सोम’ सौम्यता का, आहलाद का तथा भेषज का प्रतीक है। राजा राष्ट्र में सौम्यता तथा आहलाद लाये तथा स्वास्थ्य विभाग को सदा सतर्क रखे। सोम औषधियों का भी प्रतीक है। इसलिए पूरा समाज निरोग और स्वस्थ रहे, यह भी राजा का दायित्व है। उसकी एक योग्यता है। ‘विष्णु’ पिता के लिए भी कहते हैं। पिता का अर्थ पालक से है। विष्णु का अर्थ व्यापक से भी है। जैसे ईश्वर सर्वत्र व्यापक है, ऐसे ही राजा अपने प्रभाव से, अपनी योग्यताओं से और अपने गुणों से सर्वत्र व्यापक रहे। वेद के देवों से ऐसी प्रेरणा लेकर जो राजा राज करता है, वही सफल होता है। वास्तव में वेद ने ‘राजा’ के लिए देवों की ये प्रेरणाएं उसकी योग्यता के रूप में वर्णित की है। हमारा संविधान इस प्रकार की कोई योग्यता हमारे जनप्रतिनिधियों या राष्ट्र प्रमुख के लिए निर्धारित नही कर पाया। आज आवश्यकता है कि देश के विद्यालयों में वेद के ऐसे सूक्तों को व्याख्या सहित पढ़ाया जाए और हमारे प्रधानमंत्री वेद की नैतिक शिक्षाओं को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करायें।


UGTA BHARAT

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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