जिह्रवा ऐसी बावरी कह गई स्वरग पाताल,
आप कही भीतर भई जूती खात कपाल ।
इन दिनों चल रहे सियासी व्यंगबाणों को देखकर ये दोहा आज और भी प्रासंगिक हो गया है । हो भी क्यों ना हमारे अनपढ़ या फर्जी डिग्री के बल पर खुद को शिक्षित बताने वाले जननायकों के ताजा बोल वचन तो यही साबित करते हैं । हैरत की बात ये है कि इस तरह के कुत्सित बयान देने वाले नेता राजनीति के मैदान के नये खिलाड़ी नहीं हैं । वरिष्ठ स्तर के राष्ट्रीय नेताओं के सदन में या मीडिया के सामने दिये गये विवादित बयान क्या साबित करते हैं ? अभी कुछ दिनों पूर्व ही कांग्रेस प्रवक्ता ने गुजरात के मुख्यमंत्री को यमराज बताया । हांलाकि ये कोई नयी बात नहीं है,मोदी को इससे पूर्व भी कांग्रेसी दिग्गजों ने मौत का सौदागर बताया था । अब इन माननीय जनों के इस अनर्गल प्रलाप को सुनकर मुझे रामचरित मानस की एक चौपाई याद आ रही है ।
जाकी रही भावना जैसी,हरि मूरत देखी तिन तैसी
अर्थात मनुष्य अपने भावों के अनुरूप ही दूसरे का आकलन करता है । उदाहरण के तौर पर यदि दुनिया को चोर के नजरिये से देखीये तो उसे समाज में कार्यरत प्रत्येक ईमानदार पुलिस अधिकारी यमराज के ही सदृश दिखायी देगा । कहना आवश्यक न होगा कि शायद अपनी ही चित्त की दुर्बलता के कारण नरेंद्र मोदी किसी को मौत का सौदागर तो किसी यमराज नजर आते हैं । वैसे भी घपले घोटालों की फैक्ट्री बन बैठी कांग्रेस को प्रत्येक ईमानदार प्रशासक काल की तरह ही नजर आएगा । कहने का आशय है कि जिसके शासन काल में कोई घपला घोटाला नजर न आए तो उसे किसी भी मामले में वांछित बनाना आवश्यक है । इस पुनीत कार्य में घरेलू संस्था सीबीआई कारगर हो जाती है । जहां तक अंतिम उद्देश्यों की बात की जाए तो वो मात्र इतना साबित करना है कि हमाम में सब नंगे हैं ।इस बात को अगर देशी मुहावरों से समझना है तो एक बड़ा ही उपयुक्त मुहावरा याद आ रहा है,पेशे खिदमत है ।
राड़ खुशी जब सब कर मरै, भईंस खुशी जब मड़िया परै ।
बहरहाल इस प्रसंग से आगे बढ़ते हुए हम अन्य प्रसंगों की बात करते हैं । अभी कुछ दिनों पूर्व ही सपा सुप्रीमो और केंद्रिय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के बीच चल रही नूरा कुश्ती तो आप सभी को याद होगी । कांग्रेस के काबिल मंत्री बेनी बाबू ने अपने एक बयान में मुलायम सिंह यादव को देशद्रोही और आतंकियों का संरक्षक तक कह डाला । खैर इस बोल वचन की श्रृंखला में मुलायम जी से ज्यादा उनके प्यादों ने बेनी बाबू के पर कतर डाले । सपा के एक सम्मानित नेता ने कहा कि बेनी प्रसाद वर्मा अफीम के तस्कर हैं । अब इस पूरी बोलवचन प्रतियोगिता के परिणाम जो भी हों लेकिन कुछ बातों ने मेरा दिमाग घुमाकर रख दिया ।
१. बेनी बाबू के कथनानुसार यदि मुलायम जी वाकई देशद्रोही हैं तो क्या वे संसद में बैठने के योग्य हैं ?
२. इस मामले में यदि इतनी जानकारी बेनी बाबू के पास है तो वे अब तक खामोश क्यों बैठे थे ? न्यायालय क्यों नहीं गए ?
३. सपा नेताओं के अनुसार यदि बेनी बाबू वाकई अफीम तस्कर हैं तो वे केंद्रीय मंत्री क्यों हैं ?
४. यदि ये आरोप निराधार है तो बेनी बाबू मान हानि का मुकदमा क्यों नहीं दर्ज कराते ?
५. अथवा सपा नेता उन्हे उनके योग्य स्थान तक पहुंचाने की व्यवस्था क्यों नहीं कर रहे हैं ?
६. हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली में देशद्रोही एवं तस्कर का निर्धारित स्थान क्या है ?
७. उपरोक्त सभी बातें अगर भूल भी जाएं तो इन बोलवचनों का देश की आवाम पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
और भी कई प्रश्न हैं,जो निरंतर हमें आहत कर रहे हैं । हमें ये सोचने पर विवश कर रहे हैं कि क्या वाकई हम पर अपराधी प्रवृत्ति के लोग अथवा निरे लंपट तथाकथित जननायक राज कर रहे हैं ।
खैर जनता पर कोई भी असर पड़े इससे नेताओं का क्या प्रयोजन । आपको शायद याद होगा कि इसके पूर्व भी यही बेनी प्रसाद अपने एक अन्य विवादित बयान के कारण चर्चा में आए थे । उन्होने कहा कि महंगाई बढ़ने से मुझे मजा आता है । इस तरह का असंवेदनशील बयान क्या साबित करता है ? एक ओर जनता को भरपेट भोजन दूभर हो रहा है दूसरी ओर मंत्रीजी को मजा आ रहा है । हैरान मत होईये इस फेहरिस्त में और भी कई नाम हैं । जी हां नेताओं की बात क्यों करें इस फेहरिस्त में मोंटेक सिंह, समेत अन्य भी कई नाम हैं जो कई बार अपने घटिया बयानों से राजकीय तंत्र की मिट्टी पलीद कर चुके हैं । अभी हाल ही में कांग्रेसी प्रथम परिवार के विश्वस्त नेता दिग्विजय सिंह मीडिया से ही पूछ बैठे कि मोदी ने ऐसा क्या किया है जो उनकी इतनी तारीफ हो रही है ? इस तरह के बचकाने सवाल क्या प्रदर्शित करते हैं ? अथवा उनका भगवा आतंकवाद वाला बयान जो आज भी सबको परेशान करता है । यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि ये वही दिग्विजय सिंह हैं जिन्होने अपना आधा जीवन प्रथम परिवार की सेवा में तो अब शेष जीवन मोदी की जांच पड़ताल में गुजार रहे हैं । मोदी की धर्मपत्नी को ढ़ूंढने में अपना समय बिताने वाले दिग्गी बाबू ने काश की इसका आधा समय भी पार्टी और इटली के कनेक्शन को जानने में लगाया होता तो वो शायद देश को घपले और घोटालों से निजात दिला सकते थे । बहरहाल जहां तक इस बोलवचन के पीछे छिपे मनोविज्ञान का प्रश्न है तो वो मात्र सिर्फ इतना किसी भी प्रकार से चर्चा में बने रहना चाहते हैं ।कहा भी गया है कि बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा । इस तरह के जुबानी जमाखर्च करने वाले नेताओं का यदि बायोडाटा खंगालिये तो आप पाएंगे कि इन्होने अपने संपूर्ण राजनीतिक जीवन में ऐसा कोई भी काम नहीं किया जिससे इन्हे अखबारों में स्थान मिले । सुर्खियों में बने रहने का एक मात्र आसान तरीका है बेरोकटोक बयानबाजी और धन्य है हमारा देश कुछ भी कहो सब स्वीकार्य हो जाता है । इस पूरी सतही प्रतिक्रिया से भले ही इन लोगों को सस्ती लोकप्रियता मिल जाती हो लेकिन उनके ये बोलवचन कई बार मानसिक दिवालियेपन की सारी हदें पार कर जाते हैं ।
आपने बहुत अच्छा और सटीक लिखा है ! इन सफेद posh खद्दर दरिओन्ने देश काबहुत नाश किया है अब और नहीं ………..!
नेताओं की अकाल का तो दिवाला ही निकल गया है.जब स्तर हीन सिधांत हीन.,बिना अच्छे बेक ग्राउंड के लोग राजनीति में आ जाते हैं,तो उन बेचारों का बोलने का यही स्तर होता है.वे अपने आकाओं को खुश करने, अपना अस्तित्व बनाये रखने , के लिए ऐसे ही हथकंडे अपनाते हैं.दिग्गी को मध्य प्रदेश में तो कोई पूछता नहीं,वहां सक्रिय राजनीति में उनका कोई स्थान नहीं,अब जरा सी भी किसी बात पर बकवास करने आ खड़े होतें हैं.मीडिया को तो तमाशा दिखाने के लिए किसी मदारी की जरूरत रहती ही है,ख़बरों में बने रहने के लिए ये नेता ऐसी उन्त्पन्ताग भाषा बोलते हैं ताकि कुछ दिन अनावश्यक बातें बनती रहें.मीडिया अपने चैनेल्स पर उन बैटन पर कुछ निठ्ले लोगों के साथ बेमतलब की बाल की खाल निकलता रहे.बेनी को भी उत्तरप्रदेश में कोई नहीं पूछता.कामो बेश यादव परिवार की हालत ऐसी ही है,जनता ने भी परेशां हो कर इन्हें चुन तो लिया क्योंकि कोई अन्य विकल्प नहीं,पर बाप से लेकर बेटे तक किसी में भी राजनितिक परिपक्वता नहीं.ये बेचारे अपनी व परिवार की खुशहाली के लिए आये हैं,जब जरूरत पड़ती है,सोनिया के पांव पकड़ लेते हैं,जब चाहे कांग्रेस सी बी आई की लगाम से इनको सीधा कर देती है,बेचारे मुलायम कुछ दिन पहले यह दर्द बयां कर ही chuke हैं.अपने किये कुकर्मों अंजाम भुगतने के कारण वे भी खिन्न हो कर ऐसी ही भाषा बोलते हैं.लेकिन इन सब को देख कर व सुन कर देश की राजनीति के भविष्य पर चिंता ही होती है.