नीलगायों की हत्या से सियासी बवंडर

Nilgai-antelopeडा.राधेश्याम द्विवेदी
नीलगाय एक बड़ा और शक्तिशाली जानवर है। कद में नर नीलगाय घोड़े जितना होता है, पर उसके शरीर की बनावट घोड़े के समान संतुलित नहीं होती। पृष्ठ भाग अग्रभाग से कम ऊंचा होने से दौड़ते समय यह अत्यंत अटपटा लगता है। अन्य मृगों की तेज चाल भी उसे प्राप्त नहीं है। इसलिए वह बाघ, तेंदुए और सोनकुत्तों का आसानी से शिकार हो जाता है, यद्यपि एक बड़े नर को मारना बाघ के लिए भी आसान नहीं होता। छौनों को लकड़बग्घे और गीदड़ उठा ले जाते हैं। परन्तु कई बार उसके रहने के खुले, शुष्क प्रदेशों में उसे किसी भी परभक्षी से डरना नहीं पड़ता क्योंकि वह बिना पानी पिए बहुत दिनों तक रह सकता है, जबकि परभक्षी जीवों को रोज पानी पीना पड़ता है। इसलिए परभक्षी ऐसे शुष्क प्रदेशों में कम ही जाते हैं। वास्तव में “नीलगाय” इस प्राणी के लिए उतना सार्थक नाम नहीं है क्योंकि मादाएं भूरे रंग की होती हैं। नीलापन वयस्क नर के रंग में पाया जाता है। वह लोहे के समान सलेटी रंग का अथवा धूसर नीले रंग का शानदार जानवर होता है। उसके आगे के पैर पिछले पैर से अधिक लंबे और बलिष्ठ होते हैं, जिससे उसकी पीठ पीछे की तरफ ढलुआं होती है। नर और मादा में गर्दन पर अयाल होता है। नरों की गर्दन पर सफेद बालों का एक लंबा और सघन गुच्छा रहता है और उसके पैरों पर घुटनों के नीचे एक सफेद पट्टी होती है। नर की नाक से पूंछ के सिरे तक की लंबाई लगभग ढाई मीटर और कंधे तक की ऊंचाई लगभग डेढ़ मीटर होती है। उसका वजन 250 किलो तक होता है। मादाएं कुछ छोटी होती हैं। केवल नरों में छोटे, नुकीले सींग होते हैं जो लगभग 20 सेंटीमीटर लंबे होते हैं।
मृगजातिय नीलगाय:- नीलगाय भारत में पाई जानेवाली मृग जातियों में सबसे बड़ी है। मृग उन जंतुओं को कहा जाता है जिनमें स्थायी सींग होते हैं, यानी हिरणों के शृंगाभों के समान उनके सींग हर साल गिरकर नए सिरे से नहीं उगते। नीलगाय दिवाचर (दिन में चलने-फिरने वाला) प्राणी है। वह घास भी चरती है और झाड़ियों के पत्ते भी खाती है। मौका मिलने पर वह फसलों पर भी धावा बोलती है। उसे बेर के फल खाना बहुत पसन्द है। महुए के फूल भी बड़े चाव से खाए जाते हैं। अधिक ऊंचाई की डालियों तक पहुंचने के लिए वह अपनी पिछली टांगों पर खड़ी हो जाती है। उसकी सूंघने और देखने की शक्ति अच्छी होती है, परंतु सुनने की क्षमता कमजोर होती है। वह खुले और शुष्क प्रदेशों में रहती है जहां कम ऊंचाई की कंटीली झाड़ियां छितरी पड़ी हों। ऐसे प्रदेशों में उसे परभक्षी दूर से ही दिखाई दे जाते हैं और वह तुरंत भाग खड़ी होती है। ऊबड़-खाबड़ जमीन पर भी वह घोड़े की तरह तेजी से और बिना थके काफी दूर भाग सकती है। वह घने जंगलों में भूलकर भी नहीं जाती। सभी नर एक ही स्थान पर आकर मल त्याग करते हैं, लेकिन मादाएं ऐसा नहीं करतीं। ऐसे स्थलों पर उसके मल का ढेर इकट्ठा हो जाता है। ये ढेर खुले प्रदेशों में होते हैं, जिससे कि मल त्यागते समय यह चारों ओर आसानी से देख सके और छिपे परभक्षी का शिकार न हो जाए।
वितरण:- नीलगाय राजस्थान, मध्य प्रदेश के कुछ भाग, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश में पाई जाती है। वह सूखे और पर्णपाती वनों का निवासी है। वह सूखी, खुरदुरी घास-तिनके खाती है और लंबी गर्दन की मदद से वह पेड़ों की ऊंची डालियों तक भी पहुंच जाती है। लेकिन उसके शरीर का अग्रभाग पृष्ठभाग से अधिक ऊंचा होने के कारण उसके लिए पहाड़ी क्षेत्रों के ढलान चढ़ना जरा मुश्किल है। इस कारण से वह केवल खुले वन प्रदेशों में ही पाई जाती है, न कि पहाड़ी इलाकों में।
स्वभाव :- नीलगाय में नर और मादाएं अधिकांश समय अलग झुंडों में विचरते हैं। अकेले घूमते नर भी देखे जाते हैं। इन्हें अधिक शक्तिशाली नरों ने झुंड से निकाल दिया होता है। मादाओं के झुंड में छौने भी रहते हैं।नीलगाय निरापद जीव प्रतीत हो सकती है पर नर अत्यंत झगड़ालू होते हैं। वे मादाओं के लिए अक्सर लड़ पड़ते हैं। लड़ने का उनका तरीका भी निराला होता है। अपनी कमर को कमान की तरह ऊपर की ओर मोड़कर वे धीरे-धीरे एक-दूसरे का चक्कर लगाते हुए एक-दूसरे के नजदीक आने की चेष्टा करते हैं। पास आने पर वे आगे की टांगों के घुटनों पर बैठकर एक-दूसरे को अपनी लंबी और बलिष्ठ गर्दनों से धकेलते हैं। यों अपनी गर्दनों को उलझाकर लड़ते हुए वे जिराफों के समान लगते हैं। अधिक शक्तिशाली नर अपने प्रतिद्वंद्वी के पृष्ठ भाग पर अपने पैने सींगों की चोट करने की कोशिश करता है। जब कमजोर नर भागने लगता है, तो विजयी नर अपनी झाड़ू-जैसी पूंछ को हवा में झंडे के समान फहराते हुए और गर्दन को झुकाकर मैदान छोड़कर भागते प्रतिद्वंद्वी के पीछे दौड़ पड़ता है। यों लड़ते नर आस-पास की घटनाओं से बिलकुल बेखबर रहते हैं और उनके बहुत पास तक जाया जा सकता है।
प्रत्येक नर कम-से-कम दो मादाओं पर अधिकार जमाता है। नीलगाय बहुत कम आवाज करती है, लेकिन मादा कभी-कभी भैंस के समान रंभाती है। नीलगाय साल के किसी भी समय जोड़ा बांधती है, पर मुख्य प्रजनन समय नवंबर-जनवरी होता है, जब नरों की नीली झाईवाली खाल सबसे सुंदर अवस्था में होती है।मैथुन के बाद नर मादाओं से अलग हो जाते हैं और अपना अलग झुंड बना लेते हैं। इन झुंडों में अवयस्क नर भी होते हैं, जिनकी खाल अभी नीली और चमकीली नहीं हुई होती है। मादाओं के झुंडों में 10-12 सदस्य होते हैं, पर नर अधिक बड़े झुंडों में विचरते हैं, जिनमें 20 तक नर हो सकते हैं। इनमें छोटे छौनों से लेकर वयस्क नरों तक सभी उम्रों के नर होते हैं। ये नर अत्यंत झगड़ालू होते हैं और आपस में बार-बार जोर आजमाइश करते रहते हैं। जब झगड़ने के लिए कोई नहीं मिलता तो ये अपने सींगों को झाड़ियों में अथवा जमीन पर ही दे मारते हैं। नीलगाय चरते या सुस्ताते समय अत्यंत सतर्क रहती है। सुस्ताने के लिए वह खुली जमीन चुनती है और एक-दूसरे से पीठ सटाकर लेटती है। यों लेटते समय हर दिशा पर झुंड का कोई एक सदस्य निगरानी रखता है। कोई खतरा दिखने पर वह तुरंत खड़ा हो जाता है और दबी आवाज में पुकारने लगता है।
छौने सितंबर-अक्टूबर में पैदा होते हैं जब घास की ऊंचाई उन्हें छिपाने के लिए पर्याप्त होती है। ये छौने पैदा होने के आठ घंटे बाद ही खड़े हो पाते हैं। कई बार जुड़वे बच्चे पैदा होते हैं। छौनों को झुंड की सभी मादाएं मिलकर पालती हैं। भूख लगने पर छौने किसी भी मादा के पास जाकर दूध पीते हैं। नीलगाय अत्यंत गरमी भी बरदाश्त कर सकती है और दुपहर की कड़ी धूप से बचने के लिए भर थोड़ी देर छांव का सहारा लेती है। उसे पानी अधिक पीने की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि अपनी खुराक से ही वह आवश्यक नमी प्राप्त कर लेती है। नीलगाय भारत के उन अनेक खुशनसीब प्राणियों में से एक है जिन्हें लोगों की धार्मिक मान्यताओं के कारण सुरक्षा प्राप्त है। चूंकि इस जानवर के नाम के साथ “गाय” शब्द जुड़ा है, उसे लोग गाय की बहन समझकर मारते नहीं है, हालांकि नीलगाय खड़ी फसल को काफी नुक्सान करती है। उसे पालतू बनाया जा सकता है और नर नीलगाय से बैल के समान हल्की गाड़ी खिंचवाई जा सकती है।
रोजड़-घोड़परास नामों से जाना जाता है:- नाम में भले ही ‘गाय’ शब्द लगा हो लेकिन वास्तव में यह पशु गाय नहीं बल्कि हिरण की प्रजाति है. इसे एशिया का सबसे बड़ा हिरण होने का गौरव प्राप्त है. इसे ब्लू बुल भी कहा जाता है. नर नीलगाय कद में घोड़े के बराबर होता है. यह उन चुनिंदा वन्यजीवों में शामिल है जो जंगल और जंगल के बाहर भी आसानी से रह लेते हैं. इनकी ऊंचाई 4-5 फुट और लंबाई 6 फुट तक होती है. इनका वजन 120 से 240 किलोग्राम तक होता है. नीलगाय का गर्भावस्थाकाल 8 महीने का होता है. यह एक बार में दो या तीन बच्चों को जन्म देती है. नीलगाय की औसत आयु 21 वर्ष होती है.
मोदी सरकार ने एक साल के लिए दी अनुमति:- नीलगायों को मारने के अधिकार के लिये बिहार के चंपारण में 2007 से ही आंदोलन शुरू हो गये थे। 2010 में इस संगठन के अध्यक्ष ने पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की थी। इस पर हाईकोर्ट ने सरकार तो तीन महीने का वक्त भी दिया था। आखिरकार केंद्र की मोदी सरकार ने नीलगायों को मारने के संबंध में आदेश जारी कर ही दिया। एक लंबे संघर्ष के बाद यूपी में भी संबंधित जिलों में उन्हें कुल संख्या के 70 फीसदी तक मारे जाने का आदेश दिया गया।1 दिसम्बर,2015 को केन्द्र सरकार ने एक साल के लिए मारने की अनमुति दी है।साल 2015 के अंत में जैसे ही केंद्र सरकार ने नीलगाय को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची 3 से हटाकर अनुसूची 5 में फसलों को नुक्सान पहुंचाने वाले जीवों (वर्मिन)  की श्रेणी में डाला, राज्य सरकारों  के लिए इस पशु को खत्म करने का रास्ता भी साफ हो गया. मार्च 2016 में मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने नीलगाय का आधिकारिक नाम ‘रोजड़’ रख दिया और इसे मारने की इजाजत दे दी. फसल उजाडऩे के लिए कुख्यात नीलगायों से निजात पाने के लिए महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड समेत कई राज्य केंद्र सरकार से इसे वर्मिन घोषित करने की मांग कर रहे थे। ”फसल को होने वाली क्षति और किसानों की परेशानी को समझते हुए केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय को वन्यजीव संबंधित कानून में ढील देने का सुझाव दिया था. जिन राज्यों ने इस आशय का प्रस्ताव भेजा था उन्हें प्रभावित इलाकों में शिकार की अनुमति दी गई.”
वन्यजीव संरक्षण संस्थाओं ने दी सलाह:- इस मसले पर वन्यजीवों के संरक्षण पर काम करनेवाली संस्थाओं का मानना है कि नीलगायें जंगलों के बाहर ही रहती हैं। बेहतर होता कि इनको मारने के बजाये व्याघ्र परियोजनाओं में भेज दिया जाना चाहिए। ऐसे में बाघों को भोजन भी मिलता और किसानों की समस्याओं का भी समाधान हो जाता। यह नुकसानदेह साबित होगा। विशेषज्ञों के मुताबिक यह हिरण की प्रजाति से संबंधित है। एशिया प्रायद्वीप का यह सबसे बड़ा हिरण माना जाता है। इसका एक नाम ब्ल्यू बुल भी है। घोड़े की तरह का भी यह दिखता है। 250 से ज्यादा नीलगायों की हत्या:- बिहार के मोकामा में हुए 250 से ज्यादा नीलगायों की हत्या ने एक अलग सियासी बवंडर उठा दिया है। केंद्र ने बिहार सरकार के आग्रह पर हैदराबाद से दो शार्प शूटरों को बिहार में भेजा है। प्रकाश जावड़ेकर ने मेनका के बयान पर कहा, ‘जब किसानों को नुकसान होता है. ..बहुत तकलीफ होती है। अगर राज्य सरकार प्रस्ताव भेजती है तो ही हम किसी विशेष कार्य के लिए साइंटिफिक मैनेजमेंट के लिए राज्य सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी दी जाती है। ये केंद्र का कार्यक्रम नहीं है। यह पहले से बने कानून के हिसाब से हो रहा है। बिहार के मोकामा में सरकार के आदेश पर 4 दिन में ढाई सौ से ज्यादा नीलगायों की हत्या कर दी गई है। ऑपरेशन नीलगाय के तहत हैदराबाद से शूटर बुलाए गए है। जो नीलगायों को निशाना बना रहे है। तर्क ये है कि नीलगाय फसलों को नुकसान पंहुचा रही है। जिससे किसान परेशान है। इसकी के चलते बिहार सरकार ने केन्द्र सरकार से अनुमति ली, जिसके बाद इस ऑपरेशन को अंजाम दिया गया।
मोदी सरकार के दो मंत्री आमने-सामने:- इस मामले में मं’जूरी देने को लेकर केन्द्र के दो मंत्रियों मेनका गांधी और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर में ठन गई है। मेनका गांधी ने मीडिया को बताया कि बिहार में आजादी के बाद सबसे बड़ा संहार हुआ है। पर्यावरण मंत्रालय हर राज्य को चिट्ठी लिखकर कह रहा है इस जानवर को मारो, उस जानवर को मारो। जवाब में जावड़ेकर बोले कि बिहार सरकार ने नीलगायों को मारने की अनुमति मांगी थी, और हमने कानून के मुताबिक ही मंजूरी दी है। ये हमारा कार्यक्रम नहीं है। मेनका ने कहा कि पर्यावरण मंत्रालय हर राज्य को लिख रहा है कि आप बताओ किसको मारना है। हम इजाजत दे देंगे। बंगाल में उन्होंने कह दिया कि हाथी को मारें। हिमाचल को कहा कि हाथी को मारें। गोवा में कह दिया कि मोर को। अब कोई जानवर नहीं छूटा। चांदपुर में इतना अनर्थ हो रहा है कि उन्होंने 53 जंगली सुअर मारे हैं। अभी और 50 की इजाजत दी है। इस घटना के लिए पर्यावरण मंत्रालय जिम्मेदार है।
पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि राज्य सरकार प्रस्ताव देती है तो हम राज्य सरकार को मंजूरी देते हैं। ये केंद्र सरकार का नहीं राज्य सरकार का काम है। इसके लिए पहले से ही कानून बना हुआ है। बिहार के मोकामा में हैदराबाद से आए शूटरों ने तीन दिनों में 250 नीलगायों को मार दिया है। हालांकि नीलगाय को मारे जाने से किसान खुश हैं लेकिन इस घटना के बाद राजधानी दिल्ली में बवाल मच गया है। केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने इसके लिए पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को जिम्मेदार ठहराया है।
मारने पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार:-सुप्रीम कोर्ट ने बिहार, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में नीलगाय, जंगली सूअर और बंदरों को मारने पर रोक लगाने से फिलहाल इनकार कर दिया। केंद्र के नोटिफिकेशन्स के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर की गई थी। बेंच ने सोमवार को इस पर सुनवाई करते हुए पिटीशनर्स से कहा कि वे अपना विरोध राज्य सरकारों और केंद्र के सामने दर्ज कराएं। इस मामले पर पिटीशन पर डिटेल में सुनवाई 15 जुलाई से शुरू होगी। केंद्र ने पिटीशन में बिहार में नीलगाय और जंगली सूअर को नुकसान पहुंचाने वाले पशु (वर्मिन) घोषित करने के लिए 1 दिसंबर 2015 को नोटिफिकेशन जारी किया था। इसी तरह 2 फरवरी को उत्तराखंड में जंगली सूअरों को मारने का नोटिफिकेशन जारी हुआ था। 24 मई हिमाचल प्रदेश में बंदरों को मारने के लिए नोटिफिकेशन जारी हुआ।तीनों नोटिफिकेशन एक साल के लिए हैं। इनके जरिए नीलगाय, जंगली सूअर और बंदरों को वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के दायरे से हटा दिया गया है। इन्हीं के खिलाफ दायर पिटीशन्स में पिटीशनर गौरी मौलेखी ने नोटिफिकेशन को गैरकानूनी बताया गया है। इसमें कहा गया है कि सरकार ने बिना किसी आधार और साइंटिफिक स्टडी के ये नोटिफिकेशन जारी किया है, जबकि सचाई यह है कि न तो इन जानवरों की संख्या के बारे में सरकार को कोई जानकारी है और न ही कोई रिपोर्ट। पिटीशन में कहा गया है कि सरकार जंगलों में माइनिंग भी नहीं रोक पाई है। इसकी वजह से जानवर रिहायशी इलाके में घुसने को मजबूर हो गए। पिटीशन पर जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की बेंच ने कोई इंटरिम ऑर्डर देने से इनकार कर दिया। लेकिन कहा कि इस मामले में 15 जुलाई को सुनवाई होगी।
हर्बल घोल छिड़काव करने से फसल की रक्षा:- अन्नदाताओं को अब नीलगाय के आतंक से परेशान होने की जरूरत नहीं है। अब उन्हें बिना मारे ही इनके आतंक से छुटकारा मिलेगा, वहीं फसलों की भी सुरक्षा होगी। नीलगाय को खेतों की ओर आने से रोकने के लिए हर्बल घोल तैयार किया जाता है जिसके प्रयोग करनें से नीलगाय फसलों को नुकसान नहीं पहुचती है
1. खेत के चारों ओर कंटीली तार, बांस की फंटियां या चमकीली बैंड का प्रयोग करके फसल की सुरक्षा की जा सकती है।
2. खेत की मेड़ों के किनारे पेड़ जैसे करौंदा, जेट्रोफा, तुलसी, खस, जिरेनियम, मेंथा, एलेमन ग्रास, सिट्रोनेला, पामारोजा का रोपण करके फसलों को नीलगाय से सुरक्षित रखा जा सकता है।
3. खेत में आदमी के आकार का पुतला बनाकर खड़ा करने से रात में नीलगाय देखकर डर जाती हैं। रात में खेत की रखवाली करके भी फसलों की सुरक्षा की जा सकती है।
4. नीलगाय के गोबर का घोल बनाकर मेड़ से एक मीटर अन्दर फ सलों पर छिड़काव करने से अस्थाई रूप से फ सलों की सुरक्षा की जा सकती है।
5. एक लीटर पानी में एक ढक्कन फिनाइल के घोल के छिड़काव से फसलों को बचाया जा सकता है।
6. गधों की लीद, पोल्ट्री का कचरा, गोमूत्र, सड़ी सब्जियों की पत्तियों का घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करने से नीलगाय को फसलों से दूर रखा जा सकता है।
7. देशी जीवनाशी मिश्रण बनाकर फसलों पर छिड़काव करने से नीलगाय दूर भागती हैं।
दरअसल, जिले के लगभग हर विकास खंड में नीलगाय का आतंक है। किसानों की फसलों को ये नीलगाय खाकर और पैरों से रौंदकर नष्ट कर देते है। जिससे किसानों को खेती को लेकर काफी नुकसान उठाना पड़ता है। इन्हें खेतों में न घुसने देने के लिए किसान प्रयास तो करते हैं, लेकिन सफलता नहीं मिलती है।
इस तरह घोल बनायें:-
1. नीलगाय को खेतों की ओर आने से रोकने के लिए 4 किग्रा मट्ठा में आधा किग्रा छिला हुआ लहसुन पीसकर मिलाकर इसमें 500 ग्राम बालू डालें। इस घोल को पाच दिन बाद छिड़काव करें। इसकी गंध से करीब 20 दिन तक नीलगाय खेतों में नहीं आएगी।इसे 15 ली. पानी के साथ भी प्रयोग किया जा सकता है
2. 20 लीटर गोमूत्र, 5 किग्रा नीम की पत्ती, 2 किग्रा धतूरा, 2 किग्रा मदार की जड़, फल-फूल, 500 ग्राम तंबाकू की पत्ती, 250 ग्राम लहसुन, 150 लालमिर्च पाउडर को एक डिब्बे में भरकर वायुरोधी बनाकर धूप में 40 दिन के लिए रख दें। इसके बाद एक लीटर दवा 80 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करने से महीना भर तक नीलगाय फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाती है। इससे फसल की कीटों से भी रक्षा होती है।

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