-राम सिंह यादव-
बहुत सारे चेहरे हैं
कुछ मुस्कुरा रहे हैं
कुछ चिल्ला रहे हैं
कुछ भोले से दिख रहे हैं…
कुछ चेहरों मे छिपा लोभ है
कुछ चेहरों में ठेकेदारी है
कुछ तो धर्म के पूरक हैं…
काटते, छांटते और बांटते आदमी
चिल्लाते हैं वोट दो….
पानी लो, बिजली लो, विकास लो,,,
मैं ट्रेन दूंगा, मैं रोड दूंगा,
मैं राष्ट्र दूंगा, मैं संस्कृति दूंगा,,
मैं विश्व गुरु का गौरव लाऊंगा,,
मैं मंदिर बनाऊंगा,,, मैं मस्जिद बनवाऊंगा,,
मैं सीमाएं सुदृढ़ करूंगा,,
मैं नौकरियां दूंगा,,, मैं लैपटॉप दूंगा,,,,
मै भ्रष्टाचार मिटाऊंगा,,,
मैं नक्सल खत्म करूंगा,, मैं आतंकवाद मिटाऊंगा…
इतने सारे नारे हैं,,,,
पर कोई यह नहीं कह रहा….
मैं आदमी बचाऊंगा……
इस शोर में
दब चुका है रुदन और मूक मृत्यु विदर्भ, मराठवाडा के किसानों की…..
कौन करे परवाह ,,
आधा भारत कुछ महीनों
बाद भूखा मरेगा…
लेकिन
वक़्त कहां है
विदीर्ण करते मौसम की खामोश आहट सुनने का…
अभी तो चुनावों से भरे
चैनल हैं…
फिर से चुनाव होंगे….
फिर से सरकार बनेगी….
मंत्री बनेंगे, चेहरे नए होंगे…
पर
काम तो वही होंगे…..
टेंडर उठेंगे,, पेड़ काटने और रोड बनाने के…
खेत बिकेंगे,, फैक्ट्रियां बनाने को…
सड़कें, पुल, बांध और बिल्डिंगें बनाने वाली
नेताओं की कंपनियां बनेंगी…
विदेशी – देशी कार्पोरेट्स आएंगे
कुछ पैसे देकर तुम्हें खरीदने,,,
तुम सवा अरब लोग – अब, एक बाज़ार बन चुके हो……
चकित–भ्रमित युवा भारत, क्या देख रहा है?
दौड़ती सड़कें हैं,,,
और उनपर बिछी असहाय जानवरों की लाशें,,,,
सूखते तालाब हैं,,,, दम तोड़ती नदियां हैं,,,,
बंजर होते खेत हैं,,
अन्न टटोलते – प्राण छोडते परिवार है,,,,
पुल हैं, बड़ी-बड़ी इमारतें हैं,,,
नशे और धुएँ में झूमते थिरकते रंगीन डिस्कोथेक हैं,,,
पूंजीवाद में डूबे शॉपिंग माल्स हैं,,,
हांफती सांसें हैं,,, कराहता – थमता सीना है,,,
डाइबिटीज़ से सड़ते अंग हैं,, कैंसर से सूखता तालु है…
कुछ दूरी पर दो सौ परमाणु बम भी पड़े हैं ।
शायद, कुछ लोग दुहाई देंगे पर्यावरण की….
पानी बचाना है, हवा बचाना है,
पेड़ बचाने हैं, जानवर बचाने हैं,
बड़े–बड़े एसी हाल मे गोष्ठियां होंगी…
पर इसमे भी कमीशन ढूंढ़ लिया जाएगा…
समझ नहीं आता
व्यवसायियों की राजनीति है या
राजनीतिज्ञों का व्यवसाय है…
मोदी सा प्रण, राहुल सा धैर्य,
मुलायम सा जमीन से जुड़ा, मायावती का अनुशासन,
ममता की सादगी, लालू का विनोद,
केजरीवाल की परख, जयराम की दूरदर्शिता,
सोनिया का त्याग, मेनका की करुणा,
अखिलेश सी सरलता, उमर सा साहस,
जयललिता की निडरता,
और पर्णिकर सा स्वभाव लिए
मेरा नेता कौन है?
क्या उम्मीद करूं, इस बिकती दुनिया में…
जहां बहुत छोटा सा आदमी
अपनी छोटी सी जिंदगी में
भगवान बनना चाहता है…
बिकते इन्सानों की और बेचते भगवानों की…
कहानियां गढ़ रहा है
आने वाला विनाश
सीमाहीन विश्व संस्कृति का वाहक
ये महाद्वीप,,
जंगलों में पनपा अखंड विज्ञान,,,
मानव और प्रकृति के चरम प्रेम
की साक्षी ये धरा–
क्या अगली पीढ़ी तक पहुंच पाएगी?