राजनीति की एक नई पारी

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-अंकित कुमार पांडेय-  politicians
आम आदमी पार्टी की सरकार आने से राजनीतिक गलियारों में एक नई और सकारात्मक सोंच उभरने लगी। मगर नए वर्श और नए राजनीतिक समीकरणों के बीच पुरानी स्थिती आज भी वैसे ही डरा रही है। हमारे आस-पास हर राजनीतिक गतिविधि को एक परिप्रेक्ष्य में परखा जाना चाहिए। आम आदमी पार्टी को दिल्ली चुनाव में मिली सफलता से तमाम भारतीय नागरीक मंत्रमुग्ध हैं। आम आदमी पार्टी का नेतृत्व 45 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल के हाथों में है। जो फिलहाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं। यह पार्टी महज एक साल पुरानी है। लेकिन इसकी अपार लोकप्रियता भारत के दो प्रमुख राजनीतिक दलों-वामनीतियों के प्रति झुकाव रखने वाली कांग्रेस व हिन्दु राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी की चुनौति पेश कर रही है। अपनी तमाम प्रशंसनीय विषेशताओं के बावजूद आप वो पार्टी नहीं है। जो अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सके, अथवा रोजगार या विकास के संबंध में भारत की क्षमताओं को बढ़ा सके। वास्तव में यदि आप आगामी चुनाव में सीट जीतती है तो यह प्रमुख प्रतिद्वंदी नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एक स्थिर सरकार की संभावनाओं को अस्थिर कर सकती है। बहुत कम समय में आप ने तमाम भारतीय नागरिकों को राष्ट्रीयता के संदर्भ में एक नया चमत्कारिक नजरिया दिया। आप ने जिस पारदर्शी तरीके से चुनावी चंदा इकट्ठा किया वो दूसरी तमाम पार्टियों के लिए शर्म का विषय होना चाहिए। इस पार्टी ने भ्रष्टाचार के मसले पर जिस तरह का कड़ा रूख अख्तियार किया, उसने संसद को भ्रष्टाचार विरोधी कानून लोकपाल को पारित करने के लिए विवश किया। इस पार्टी के सादगी भरे आचरण ने बड़े बंगलों में रहने वाले और भारी सुरक्षा का ताम-झाम रखने वाली दूसरी पार्टी के नेताओं को शर्मिंदा होने के लिए विवष किया। लेकिन दिल्ली और देश के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य और कुछ नहीं हो सकता कि एक मुख्यमंत्री ने खुद को अराजकातावादी तक बता दिया। इससे भी आर्षचयजनक यह है कि वो अपनी इस अराजकता को लोकतंत्र से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हे अराजकता का या तो मतलब ही नहीं मालूम है या फिर वह वाकई लोकतंत्र और अराजकता को एक ही मान बैठे हैं। एक सभ्य समाज में लोकतंत्र और अराजकता एक नहीं हो सकते। अराजकता का मतलब होता है- अव्यवस्था, गड़बड़ी किसी नियम कायदे पर भरोसा ना करना हर तरह की शासन और व्यवस्था को अस्विकार कर देना। अब इसमें संदेह नहीं है कि केजरीवाल का निषाना लोकसभा चुनाव है और वो निष्चित ही प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा भी रखते हैं। लेकिन दिल्ली में उनके तौर-तरीकों ने पूरे देश को बता दिया है कि वो अगर लोकसभा पहुंचे तो क्या हाल होगा। मुख्यमंत्री होने के बावजूद धरने पर बैठने वाले यह वही केजरीवाल हैं जिन्होंने जुलाई 2012 में अन्ना हजारे के साथ अनशन करते हुए यह ऐलान कर दिया था कि उनका अब अनशन आंदोलन पर भरोसा नहीं रहा। उन्होंने अनशन आंदोलन करने के बजाय एक राजनैतिक दल बनाने की घोशणा की और इस आधार पर अपने इस फैसले को सही साबित करने की कोशिश की।
आम आदमी पार्टी से जुड़ी परियोजनाओं का एक दुखद परिणाम ये निकला कि इसका पहला षिकार कांग्रेस ही बन गई। सर्वेक्षणों में यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि आप ने कांग्रेस को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। जबकि भाजपा को हल्की चोट पहुंचाई अन्य दृश्टीकोण से विचार करें तो यह संभव है कि आप ने मोदी विरोधी वोटों का इस हद तक विभाजन कर दिया है कि इससे भाजपा का संख्याबल बढ़ने की संभावना है। सेक्युलरिज्म पर जोर देने के साथ तीन हजार वर्षों की भारतीय सभ्यता के साथ एक सौ अठाइस साल पुरानी कांग्रेस को संवद्ध कर राहुल गांधी के भाषण लेखकों ने कमजोर पड़ती कांग्रेस की रीढ़ पर कुछ जान फुंकने की कोशिश की है। उनकी अपील की कुछ अहमियत हो सकती है क्योंकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार अपने भीतर की दो विरोधाभाशी धड़ों के समर्थकों के बीच की दूरी पाटने में विफल रही है। इस दल का समर्थन करने वाले मध्य वर्ग के लोग अवरोधमुक्त प्रवाहमय शासन चाहते हैं और दूसरा तबका एक्टीविस्टो का है जो आप की सरकार के बल पर अपनी समाजिक क्रांति को साकार करना चाहती है।
अगर बात की जाए आप की खास टीम के बारे में जिसने राजनीति को नए आयाम दिए, सम्पूर्ण भारत को आम आदमी की कीमत व राजनीति के बदलते स्वरूप को करीब से दिखाकर विपक्ष को नए स्तर से राजनीति गढ़ने की कला सिखा दिया है। यह सही है कि आप का असर दिल्ली के बाहर भी दिख रहा है लेकिन, फिलहाल उसकी हैसियत एक क्षेत्रिय दल सरीखी है । मौजूदा रूप स्वरूप में यह दल एक वोट कटवा दल की भूमिका ही अधिक निभाएगा। इतना ही नहीं वो जाने अनजाने राजनीतिक अस्थिरता में भी अपना योगदान देगा। ये माना जा रहा है कि लोक सभा चुनाव में आप राश्ट्रीय दलों यानी कांग्रेस भाजपा की तुलना में क्षेत्रिय दलों को कम नुकसान पहुंचाएगी। इसका मतलब है की वो तीसरे चौथे मोर्चे की सरकार के गठन की संभावना बढ़ाएगी?
क्या आप के नेता इसका श्रेय लेना चाहेंगे? मगर आप के बारे में कोई नई बात जोड़ना या फिर उसे लोक सभा चुनाव के बारे में राश्ट्रीय पार्टी के बारे में विचार करना अत्यंत ही जल्दबाजी होगी। लेकिन एक बात जरूर है कि आप को हल्के में लेने वाली पार्टीयां कहीं ना कहीं अपनी राजनीति का खुद शिकार बन सकती हैं आम आदमी पार्टी ने जनमत को अत्यंत प्रभावी ढंग से लेकर राजनीति की नई परिभाषा गढ़ ली है। देखना है, देश की राजनीति एक बार अटल राज स्थापित करेगी या फिर से लोग हाथ से हाथ मिलाकर चलेंगे या तीसरा मोर्चा कुछ नया करेगा, ये तो वक्त ही बताएगा। लेकिन जो करेगा आम आदमी ही करेगा सभी पार्टीया आम आदमी का मुह देख रही है कि ये अपने हैं या किसी और के हो जाएंगे। स्थितीयां अत्यंत रोचक हैं क्या बसंत के नए कोपल के साथ नया बजट पेश होगा या राजनीति नए ढंग से की जाएगी।

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  1. जनता का अब आप से मोहभंग होने लगा है,आप नेताओं की अपरिपक्वता व उनके द्वारा किये गए जनता को वादे उनके लिए कांटे बन रहे हैं.कांग्रेस ने भी कोई समर्थन मन से तो दिया नहीं केवल अपनी नाक बचने व जनता की निगाहों में अच्छा बनने के लिए दिया था. वह अब उसके गले की हड्डी बन गया है.जिस लाभ की अपेक्षा कांग्रेस को थी वह नुक्सान में बदलता जा रहा है.अंतिम समाचारों तक केजरीवाल शहीद होने की सोच रहें हैं धमकी भी दे रहें हैं,पर अब दुसरे चुनाव करने पर जनता उन्हें उनके किये कार्यों व क्षमताओं पर तौलकर ही वोट देगी.इस आपाधापी में लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को नुक्सान हो सकता है क्योंकि पुरे देश की निगाह इन पर है.जनता का मानस बदलते देर नहीं लगती.

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