राष्ट्रीय दलों के लिए चुनौती बनते विधानसभा चुनाव

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निर्मल रानी

अगले महीने देश के 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों की तिथि ज्यों-ज्यों करीब आती जा रही है,राजनैतिक दल वैसे-वैसे अपने चुनाव प्रचार को और तेज़ करते जा रहे हैं। जहां राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टियां अपने दल के पक्ष में तमाम स्टार प्रचारको को अपने प्रत्याशियों के समर्थन में चुनाव प्रचार हेतु उतार रही हैं वहीं क्षेत्रीय व छोटे राजनैतिक दलों के मुखिया स्वयं चुनाव प्रचार के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। बिल्कुल शतरंज कि बिसात की ही तरह कहीं पैदल को पैदल से मात देने की कोशिश की जा रही है तो कहीं बादशाह और रानी को घेरने में पूरा ध्यान लगाया जा रहा है। मकसद सबका एक ही है। और वह यह है कि राजनीति की इस शतरंज रूपी बिसात पर अपने सबसे प्रमुख विरोधी को मात देते हुए सत्ता को किसी भी प्रकार से हासिल किया जाए। भले ही किसी राजनैतिक दल को अपनी सहायता के लिए दूसरे राज्य से नेताओं को ‘आयात ही क्यों न करना पड़े।

 

उदाहरण के तौर पर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश को ही ले लीजिए। यदि इस राज्य को हम भारतीय जनता पार्टी के लिहाज़ से देखें तो हम देखेंगे कि पार्टी के सबसे वरिष्ठ व कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी कि राजनैतिक कर्म भूमि उत्तर प्रदेश ही रही है। वे अपने जीवन मं लगभग सभी चुनाव उत्तर प्रदेश के विभिन्न संसदीय क्षेत्रों से लड़े हैं। पार्टी के दूसरे कद्दावर नेता पूर्व भाजपा अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री रहे मुरली मनोहर जोशी का संबंध भी उत्तर प्रदेश से ही है। इसके अतिरिक्त वर्तमान समय में राजनाथसिंह पूर्व भाजपा अध्यक्ष इसी राज्य से आज भी सांसद हैं तथा प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। राज्य के प्रमुख नेताओं में लाल जी टंडन तथा कलराज मिश्र भी इसी राज्य के नेता हैं । प्रदेश में भाजपा शासन के सदाबहार विधानसभा अध्यक्ष केसरी नाथ त्रिपाठी की जन्म व कर्मभूमि उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद जि़ला है। इतना ही नहीं बल्की महंत अवैधनाथ,स्वामी चिन्मयानंद,आदित्यनाथ योगी तथा विनय कटियार जैसे पार्टी के फायरब्रांड नेताओं का संबंध भी इसी राज्य से है। और तो और अब तो नेहरु परिवार के एक चश्मे-चिराग वरुण गांधी को भी पीलीभीत से सांसद बनाकर भाजपा ने अपने फायर ब्रांड नेताओं की सूची में यह नाम भी शामिल कर लिया है। इसी प्रकार और भी कई बहुचर्चित भाजपाई नेताओं का संबंध उत्तर प्रदेश से है। पार्टी के संरक्षक संगठन समझे जाने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व विश्व हिंदू परिषद् के अशोक सिंघल व रज्जु भैया जैसे प्रमुख नेता भी इसी राज्य के हैं।

 

जहां तक भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनावी मुद्दों की बात है तो पार्टी को संजीवनी प्रदान करने वाला अयोध्या विवाद भी उत्तर प्रदेश से ही संबद्ध है। सांप्रदायिक आधार पर मतों के धु्रवीकरण के लिहाज़ से भी भाजपा को उत्तर प्रदेश इसलिए भाता है क्योंकि यहां अल्पसंख्यक समुदाय के लोग पर्याप्त संख्या में रहते हैं इसलिए ज़रूरत पडऩे पर यहां नफरत की हांडी आसानी से चढ़ जाती है। लिहाज़ा कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि चाहे वह नेताओं से जुड़ा मामला हो या मुद्दों की बात हो, भाजपा उत्तर प्रदेश में अपनी अच्छी और मज़बूत पकड़ रखती हुई देखी जा सकती है। यहां तक कि यदि भाजपा को गिरगिट कि तरह अपना रंग बदलते हुए दिखाना हो तो उसके पास मुख्तार अब्बास नकवी के रूप में उत्तर प्रदेश का ही एक जनाधार रहित कथित मुस्लिम चेहरा भी है जिसे पार्टी देश व दुनया को दिखाने के लिए समय-समय पर प्रयोग करती रहती है। गोया भाजपा के पास प्रदेश में प्रयोग करने हेतु वाजपेयी से लेकर वरुण गांधी तक सभी प्रकार के ‘अस्त्र ‘ मौजूद हैं। और पार्टी इन सभी ‘अस्त्रों’ का प्रयोग ‘उचित’ समय पर करती ही रहती है। जैसे कि अटल बिहारी वाजपेयी इन दिनों शारीरिक अस्वस्थता के कारण पूर्ण रूप से विश्राम कर रहे हैं। परंतु भाजपा के नेता उनके चित्रों व उनकी आवाज़ में दिए गए भाषणों का अपने चुनाव प्रचार में बाकयदा इस्तेमाल कर रहे हैं।

 

सवाल यह है कि जब प्रदेश में भाजपा के पास सभी प्रकार के ‘अस्त्र’ मौजूद हैं फिर आखिर मध्य प्रदेश कि पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती कि ज़रूरत भाजपा को इस राज्य में क्यों महसूस हुई? और वह भी उस उमा भारती की जिसे कि पार्टी ने न केवल बदज़ुबानी व अनुशासनहीनता के चलते पार्टी से बाहर निकाल दिया था बल्कि कल्याण सिंह कि ही तरह उमा भारती ने भी अपनी भारतीय जनशक्ति नामक क्षेत्रीय पार्टी का गठन कर मध्य प्रदेश में तमाम सीटों पर चुनाव भी लड़ा था। और भाजश के चुनाव मैदान में पूरी तरह से स$फाया हो जाने के बाद उमा भारती को मध्य प्रदेश में अपनी ज़मीनी हैसियत का अंदाज़ा भी हो गया था। बहरहाल समय बीतने के साथ-साथ राजनैतिक हालात भी बदले और कमज़ोर होती भाजपा व अपना राजनैतिक अस्तित्व खोती जा रही उमा भारती दोनों को ही एक -दूसरे की ज़रूरत महसूस हुई। और अभी कुछ ही महीने पूर्व उमा भारती की भाजपा में वापसी हो गई। आज वही उमा भारती उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के खेवनहार के रूप में भेजी गई हैं। पार्टी को उमा भारती पर काफी भरोसा है। अपने विशेष साध्वी अंदाज़ में तथा चिरपरिचित कर्न्तिकारी लहजे के कारण प्रदेश के भाजपा कार्यकर्ता भी उनमें दिलचस्पी लेते व उनके साथ चलते दिखाई दे रहे हैं। अब तो बात प्रदेश में उनके पार्टी पर्यवेक्षक बने होने से भी आगे तक निकल गई है और खबरों के अनुसार पार्टी उन्हें उत्तर प्रदेश से विधानसभा का चुनाव भी लड़ाने जा रही है। सत्ता में आने पर उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाए जाने की सुगबुगाहट भी शुरु हो गई है।

 

इन हालात में यह सवाल ज़रूरी है कि भाजपा के प्रथम श्रेणी के कई नेताओं की कर्मभूमि होने के बाद भी आखिर पार्टी को मध्य प्रदेश से जुड़ी उमा भारती पर स्वयं को क्योंकर आश्रित रखना पड़ रहा है? क्या प्रदेश के नेताओं के चिरपरिचित व असरदार चेहरे मतदाताओं में अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं जिसके चलते पार्टी को उमा भारती जैसी मध्य प्रदेश की ‘पिटी-पिटाई’ नेत्री की बैसाखी की ज़रूरत पड़ी? हालांकि भाजपा के राज्य के वरिष्ठ नेताओं द्वारा उमा भारती का विरोध इस संदेह को लेकर किया जाने लगा है कि कहीं वे पार्टी द्वारा राज्य की मुख्यमंत्री प्रस्तावित न कर दी जाएं। बहरहाल भाजपा का प्रदेश में मुख्यमंत्री बनना तो बहुत दूर की कौड़ी है फिर भी भाजपा का स्थानीय नेतृत्व उमा भारती के नाम को मुख्यमंत्री की सूची में शामिल होते देखना या सुनना भी नहीं चाहता। फिर आखिर उमा भारती की प्रदेश में क्या आवश्यकता थी? क्योंकर पार्टी उनकी उपयोगिता को राज्य के लिए ज़रूरी समझ रही है?

 

दरअसल मुख्यमंत्री कु. मायावती को उन्हीं की भाषा और उन्हीं के अंदाज़ में जवाब देने वाले नेता शायद अन्य दलों के पास नहीं हैं । जबकी सन्यासिन उमा भारती जैसी मुंहफट व बेलाग-लपेट के अपनी बात कहने वाली नेत्री, मायावती का मुकाबला करने के लिए भाजपा के पास एक उपयुक्त अस्त्र है। उमा भारती व मायावती दोनों ही अविवाहित नेत्रियां हैं तथा भाजपा ने यही महसूस किया है कि मायावती को कोई अन्य महिला काबू कर पाए या न कर पाए परंतु मायावती कि हर बात का जवाब हर स्तर पर तत्काल देने की क्षमता क म से कम उमा भारती में तो ज़रूर है। इसके अतिरिक्त उमा भारती का इस्तेमाल अपने पूर्व सहयोगी एवं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को नियंत्रित करने के लिए भी किया जा रहा है। गौरतलब है कि कल्याण सिंह इस समय राज्य में जनकरांति पार्टी नामक अपना क्षेत्रीय दल बनाकर भाजपा को नुकसान पहुंचाने तथा राजनैतिक रूप से स्वयं को जीवित रखने हेतु संघर्ष कर रहे हैं। भाजपा को यह उम्मीद है कि अपनी तेज़-तर्रार छवि के कारण उमा भारती जहां मायावती को उनकी हर बात का सटीक जवाब दे पाने में कारगर साबित होंगी वहीं पिछड़े वर्ग की नेत्री होने के नाते न केवल कल्याण सिंह के जनाधार वाले क्षेत्रों में भी सेंध लगा सकेगी। और साथ-साथ अपने भगवे स्वरूप के चलते पार्टी के पारंपरिक मतदाताओं को जोड़े रखने व हिंदुत्व की विचारधारा को मज़बूती से प्रचारित व प्रसारित करने में भी सफल होंगी।

 

इसी प्रकार कग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी को भी उत्तर प्रदेश में इन दिनों नाको चने चबाने पड़ रहे हैं। उन्हें भी राज्य के कंग्रेस नेताओं के भरोसे कुछ होता दिखाई नहीं दे रहा है। इसीलिए राहुल उत्तर प्रदेश के लिए न केवल अपना दिन-रात एक किए हुए हैं बल्कि उन्हें यहां अपनी बहन प्रियंका गांधी कि मदद कि ज़रूरत भी महसूस हो रही है। कंग्रेस ने भी राज्य में मध्य प्रदेश से अपना खेवनहार दिग्विजय सिंह के रूप में आमंत्रित कर रखा है। पिछले संसदीय चुनावों में उत्तर प्रदेश में अप्रत्याशित रूप से अच्छा प्रदर्शन करने वाली कंग्रेस वर्तमान विधानसभा चुनावों में अपने विगत् लोक सभा चुनाव जैसे प्रदर्शन को दोहराने का प्रयास तो ज़रूर कर रही है परंतु राजनैतिक विशेस इसे एक कड़ी चुनौती मान रहे हैं। इन हालात में यह कहा जा सकता है कि यह विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय राजनैतिक दलों के लिए के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रहे हैं और यह चुनौती इन्हें क्षेत्रीय या छोटे राजनैतिक दलों द्वारा दी जा रही है।

निर्मल रानी

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