सामाजिक उल्लास का पर्व पोंगल

लोक, परिवेश और प्रकृति भी नहाती है उत्सवी धाराओं में

अनिता महेचा

उत्सव प्रियाः मानवाः यानि मानव उत्सव प्रिय होते हैं। महाकवि कालिदास का यह कथन मानव-स्वभाव पर पूर्णतः लागू होता है क्योंकि पर्वों से हमारे जीवन की एकरसता और नीरसता दूर होती है तथा रोचकता, उल्लास और आनन्द की अभिवृद्धि होती है।

 

लोक जीवन में लाता है उल्लास का ज्वार

 भारत धार्मिक एवं आध्यात्मिक देश हैं। भारत में मनाए जाने वाले कई ऎसे पर्व है। जिनकी नींव में मुख्य रूप से धर्म व आध्यात्मिक भावनाएं समाहित हैं। पोंगल दक्षिण भारत का मुख्य रूप से तमिलनाडु का प्रमुख आध्यात्मिक त्योहार है। वहां इस उत्सव को बड़े धूमधाम सेे मनाया जाता है। पोंगल का त्योहार लगभग एक हजार वर्ष से भी अधिक प्राचीन काल से मनाया जा रहा है।

इसके मूल में दो भावनाएं कार्य करती हैं। एक कृषि संबंधी दूसरी आध्यात्मिकता संबंधी। भारत एक कृषि प्रदान देश है। कृषि का मुख्य आधार गाय और बैल रहे हैं। पोंगल के दिन तमिलनाडुवासी गाय व बैल की पूजा अर्चना करके पशुओं के प्रति अपनी अपार श्रद्धा को प्रकट करते हैं, यह उनकी आध्यात्मिक भावना की भी प्रतीक है।

 

उफान देता है भविष्य के संकेत

पोंगल के दिन तमिलनाडु के लोग गाय के दूध के उफान को ज्यादा महत्त्व देते हैं। वे दूध के उफान से यह अर्थ निकालते हैं कि जिस प्रकार दूध का उफान शुद्ध और शुभ है, उसी प्रकार उनका मन और अन्तः करण भी शुद्ध और उज्ज्वल होना चाहिए। वे मन की शुद्धता के लिए इन्द्र, सूर्य, वरुण आदि देवताओं विशेषकर सूर्य देवता की पूजा-अर्चना कर अघ्र्य अर्पण करते हैं।

पोंगल प्रतिवर्ष पौष माह के प्रारंभ में मनाया जाता है। इन दिनों में उत्तर भारत में संक्राति पर खिचड़ी का पर्व मनाया जाता है, उन्हीं दिनों तमिलनाडु के लोग बड़े जोश-खरोश के साथ पोंगल मनाते हैं। इसकी तैयारियां बहुत दिनों पहले से शुरू हो जाती हैं। घराें को लीप-पोत कर आकर्षक ढंग से सजाया और संवारा जाता है। यह त्योहार एक दिन नहीं बल्कि पूरे चार दिन तक मनाया जाता है। अगहन के महिने में जब धानों में सुनहरी बालें लग जाती है, तब लोगों का मन मयूर पोंगल की याद से नाचने लगता है। वे पाेंगल की तैयारी में जुट जाते हैं। पहला दिन भोगी पोंगल कहलाता है। इस दिन नई फसल के नए चावलों को पकाकर खाया जाता है। आन्ध्र प्रदेश में इस दिन घरों को रंगोली से अलंकृत किया जाता है।

 

मौज-मस्ती का पैगाम देमा है थाई पोंग

दूसरा दिन सूर्य पोंगल या थाई पोंगल के रूप में मनाया जाता है। यह उत्सव का मुख्य दिन होता है। पूरा दिन मौज-मस्ती के साथ व्यतीत होता है। लोग रंग-बिरंगे वस्त्र धारण करते हैं। युवक-युवतियाँ, बच्चे सभी सज-धज कर पर्व का आनन्द उठाते हैं। सब लोग अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार नई-नई वस्तुएं और सामान खरीदते हैं। खूब खाना-पीना और दावतें होती हैं। बच्चे फूलों भरी टोकरियों के साथ समूह में नाचते हैं। लड़कियां इस अवसर पर गीत गाती हैं। बच्चे उबले चावलों के चारों और घेरा बनाकर, घंटिया बजाकर जोर-जोर से बोलते हैं – पोंगलों-पोंगल, पोंगलों-पोंगल। सब तल्लीनतापूर्वक निहारते हैं कि सबसे पहले पतीली या मिट्टी की हाण्डी में किस तरफ का पानी उबलता है। इस प्रकार लोग भविष्य को बाँचते हैं। जब भोजन तैयार हो जाता है तब सूर्य की पूजा-अर्चना की जाती है। इस अवसर पर गन्ना चूसना आवश्यक समझा जाता है। इस दिन आग पर हाण्डी या पतीला शुभ मुहूर्त में चढ़ाया जाता है। इस पर्व का नामकरण ही सूर्य को चढ़ाए जाने वाले ‘पोंगल’ नामक प्रसाद से हुआ है।

 

पशुओं के नाम समर्पित है मट्टू पोंग

तीसरे दिन मट्टू पोंगल मनाया जाता है मट्टू का अर्थ है- पशु। यह दिन बैलों के दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गाय या बैलों को खूब नहला-धुलाकर स्वच्छ एवं पवित्र कर उनकी पूजा की जाती है। उन्हें कुमकुम का तिलक लगाया जाता है। गले में कौड़ियों की मालाएं तथा घण्टियां पहनाई जाती हैं उन्हें अच्छा भोजन ‘न्योमुड‘ खिलाया जाता है। सार्वजनिक स्थानों पर या खुले मैदानों में संध्या के वक्त बैलों की आपस में लड़ने की प्रतियोगिता का आयोजन होता है जिन्हें देखने के लिए बड़ी तादाद में पुरुष और स्ति्रयां, किशोर और किशोरियां आती हैं। इस अवसर पर प्रमत्त बैल जो भड़क जाते हैं, उन्हें अपने बाहुबल और कौशल से वश में करने वाले युवकों तथा पुरुषों को ईनाम भी दिया जाता है। शौर्य का प्रदर्शन करने वाले युवकाें को किशोरियाँ पति के रूप में वरण भी करती हैं। युवकों के लिए अपने बाहुबल और शौर्य प्रदर्शन का यह बेहतर मौका होता है।

 

रोमांच बिखेरती है बैलगाड़ियों की दौड़

गाँव के गरीबाे, पिछड़ों और सेवकों को इस अवसर पर अनाज और वस्त्र बांटे जाते हैं। तीन या चार वर्ष के सांडों को बधिया करने का भी यही दिन शुभ माना जाता है। कहीं कहीं गांवों में बैलगाड़ियों की दौड़ भी आयोजित की जाती है। पोंगल का चौथा दिन कानूम पोंगल कहा जाता है।

 

भारतीय संस्कृति का महान पर्व है पोंगल

तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में इसके मनाने में थोड़ा अन्तर दिखाई देता है। आंध्र में स्ति्रयां आमंत्रित मेहमानों पर रंग-बिरंगी अबीर गुलाल उड़ाती हैं। वे तिल व गुड़ से बनाए लड्डु, बैर और रूमाल उपहार में देती हैं। अंयगर वैष्णवों के यहां इस दिन घी मिली खिचड़ी खिलाने की परम्परा है। पोंगल यद्यपि तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश का पर्व है, पर इसके अन्दर जो भावना कार्य करती है, उसे दृष्टिगत रखकर पोंगल को भारत का सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पर्व कहा जा सकता है।

अनिता महेचा

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