पोर्न साइटों से बढ़ रहे हैं यौन अपराध, या शराब से भी ?

इक़बाल हिंदुस्तानी

सरकार अपना नाकारपन छिपाने के लिये तो बहाना नहीं ले रही?

दिल्ली में पांच साल की मासूम गुड़िया के साथ वहशी रेप की हरकत करने वाले मनोज ने पुलिस को पूछताछ मंे बताया है कि यह नापाक और वीभत्स बलात्कार करने से पहले उसने मोबाइल पर पोर्न क्लिप देखी थी। सरकारी सूत्रों का यह भी कहना है कि 50 प्रतिशत यौन आरोपियों ने माना है कि पोर्न देखने के बाद वे भी ऐसा ही मज़ा लेने को पोर्न को वास्तविक दुनिया में दोहराना चाहते थे। सरकार ने इसी आधार पर ऐसी 546 पोर्न साइटों को ब्लॉक करने के लिये चुन लिया है जिनको देखकर खासतौर पर नौजवान बड़े पैमाने पर यौन अपराध कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट एक जनहित याचिका पर 15 अप्रैल को पहले ही सरकार से इस पर जवाब मांग चुका है कि वह पोर्नोग्राफी पर रोक लगाने को क्या कर रही है? जानकार सूत्रों का कहना है कि ग्लोबल इंटरनेट ट्रेफ़िक का 30 प्रतिशत पोर्न ही है।

साइबर अपराध शाख़ा और खुफ़िया विभाग की एक रपट में बताया गया है कि भारत में देखी जाने वाली कुल साइटों में 60 प्रतिशत अश्लील होती हैं। 1998 में इंटरनेट पर अश्लील पेज 1 करोड़ 40 लाख थे जो 2003 में बढ़कर 26 करोड़ हो चुके हैं। सरकारी सूत्रों का दावा है कि जापान में 1980 के बाद बड़े पैमाने पर पोर्न देखे जाने से यौन अपराधों में इज़ाफा हो गया था। इंटरनेट के भी फायदों के साथ दुरुपयोग के नुक़सान मौजूद हैं कुछ लोगों का कहना है कि  केवल इस एक वजह से अभिव्यक्ति और इंटरनेट को उसके वास्तविक रूप में देखने की आज़ादी पर रोक नहीं लगाई जा सकती। लेकिन यह भी सच है कि जब तक हमारा समाज इतना परिपक्व ना हो जाये कि पोर्न का कोई विपरीत असर ना पड़े तब तक इस पर रोक लगाने के अलावा कोई चारा भी नज़र नहीं आता है।

हमारे दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल जी सुना है वकील भी हैं। उनको यह भी पता होगा कि 11 अप्रैल 2011 को पास किया गया सूचना प्रोद्योगिकी कानून सोशल नेटवर्किंग साइटों पर होने वाली अश्लील और अपमानजनक गतिविधियों को रोकने के लिये पहले से बना हुआ है। इस कानून की धारा 66 ए के अनुसार सरकार द्वारा शिकायत करने पर सम्बंधित वैबसाइट को आपत्तिजनक सामाग्री हर हाल में 36 घंटे के अंदर हटानी होगी नहीं तो दोषी के खिलाफ सख़्त कानूनी कार्यवाही का प्रावधान है। सवाल उठता है कि जब इस तरह का पर्याप्त साइबर कानून पहले से ही मौजूद है तो फिर सिब्बल साहब ऐसी बात क्यों कर रहे हैं जिससे यह लगे जैसे यह बहुत बड़ी समस्या है कि किसी के इस मीडिया के द्वारा मनमानी करने पर क्या किया जाये? अगर पोर्न के कारण यौन अपराधों के बढ़ने को सही माना जाये तो यह भी सच है कि शराब के कारण भी ऐसे जुर्म बेतहाशा बढ़ रहे हैं।

दिल्ली में चलती बस में 16 दिसंबर को दामिनी के साथ जो बर्बरता हुयी उसके आरोपी भी शराब पिये हुए थे। गोहाटी में जिस लड़की को सरेआम नंगा किया गया था उसके आरोपी भी शराब पिये थे। जेसिका लाल का तो मर्डर ही बार में शराब ना देने केा लेकर हुआ था। ऐसे अधिकांश मामलों में शराब का रोल अकसर देखा गया है। क्या सरकार यह हिम्मत भी दिखायेगी कि शराब पर रोक लगायेगी ? कभी नहीं क्योंकि सिगरेट की तरह शराब लॉबी भी बेहद मज़बूत है। सरकार शराब से कर के रूप में अपनी आमदनी की दुहाई देगी जबकि उस पर ना केवल इंटरनेशनल दबाव शराब की बिक्री ना रोकने का है बल्कि राजनेताओं को इससे अप्रत्यक्ष रूप से भी चंदे से लेकर मोटी काली कमाई होती है इस वजह से बढ़ते यौन अपराधों के लिये अश्लील साइटों से ज्यादा शराब के ज़िम्मेदार होने के बावजूद सरकार ऐसा आत्मघाती कदम नहीं उठायेगी।

यह बात किसी हद तक मानी भी जा सकती है कि पोर्न से यौन अपराधों का अप्रत्यक्ष सम्बंध हो सकता है लेकिन ख़तरा यह है कि कल खाप पंचायतों की तरह सरकार यह भी ना कहने लगे कि लड़कियों के  पहनावे और चाल चलन से भी लड़के उनकी ओर आकृषित हो रहे हैं। सिनेमा को लेकर भी अकसर यह बात उठती है कि फ़िल्मों का समाज पर बुरा असर पड़ रहा है और नौजवान उसमें हीरो की नकल करके लड़की को पटाने या विलेन की तरह उसके राजी ना होने पर उठाने के तौर तरीके सीखते हैं। दूसरी तरफ फिल्म इंडस्ट्री के लोगों का दावा है कि दक्षिण भारत के राज्यों में दो तिहाई सिनेमाघर है लेकिन उत्तर के राज्यों के मुकाबले वहां यौन अपराध् आधे भी नहीं हैं तो इससे यह आरोप सही नहीं साबित होता है।

कल यह सवाल भी उठ सकता है कि सह शिक्षा और फेसबुक आदि सोशल साइटों से लड़के लड़कियां दोस्ती का प्रस्ताव देकर कई बार यौनसुख का आनंद ना मिल पाने पर सेक्स के लिये जोर ज़बरदस्ती करने पर उतारू हो जाते हैं जिससे ये चीजे़ भी रोकी जाने लायक हैं? मोबाइल को लेकर अकसर यह आरोप लगता है कि जब से यह सुविधा आई है लड़के लड़कियां इनका सहारा लेकर बहुत बिगड़ रहे हैं। खासतौर पर एसएमएस और एमएमएस को लेकर काफी हंगामा होता रहा है। ड्रैस कोड की बात भी बार बार  इसीलिये उठती रहती है।

हालांकि पेार्न की बात इसलिये भी समझ में आती है क्योंकि अमेरिका और यूरूप के देशों में पोर्न उपलब्ध् होने के साथ साथ जिस तरह की व्यक्तिगत आज़ादी और यौन स्वतंत्रता है उससे वहां बलात्कार और यौन उत्पीड़न के उतने मामले सामने नहीं आते हैं लेकिन हमारे भारतीय समाज में सभ्यता और संस्कृति के नाम पर आज भी जो नियम और परंपरायें लोक लाज की वजह से मौजूद हैं उससे पोर्न देखकर अगर किसी का मन ऐसा ही सेक्स करने को बेकरार हो जाये तो उसके पास यहां आसान विकल्प नहीं है। इससे जोर ज़बरदस्ती और मासूम बच्चियों को आसान शिकार बनाया जाता है। हमारे यहां भी अमीर और बलशाली लोग जबकि पैसे का लालच देकर या डरा धमकाकर अपनी जिस्मानी भूख गरीब और संसाधनविहीन आदमी के मुकाबले आसानी से मिटा लेते हैं लेकिन बाकी मामलों की चर्चा अधिक होती है।

कहने का मतलब यह है कि तकनीक और आध्ुानिक चीज़े तो हमने विदेशों से आयात कर लीं लेकिन हमारी सोच और मूल्य आज भी पुराने हैं जिससे यह विरोधाभास सामने आ रहा है। गुड़ खायेंगे तो गुलगुलों से परहेज़ कैसे किया जा सकता है? सरकार असली बात छिपा रही है कि कोई भी किसी भी कारण से यौन अपराध कर सकता है लेकिन पुलिस और हमारी सारी व्यवस्था भ्रष्ट और नाकारा होने से वह सज़ा पाने से चूंकि बच जाता है इसीलिये ऐसे हर अपराधी की हिम्मत ऐसा दुस्साहस करने की होती है। जब तक नये और सख़्त कानून और तरह तरह की रोकों के बावजूद हमारा सिस्टम अपराधी को जल्दी सज़ा देने के लायक नहीं बनेगा तब तक यह रोग की बजाये उसके लक्ष्णों का आधा अधूरा इलाज करना ही होगा।

मैं वो साफ ही न कहदूं जो है फर्क तुझमें मुझमें,

तेरा दर्द दर्द ए तन्हा मेरा ग़म ग़म ए ज़माना।

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

2 COMMENTS

  1. पता नहीं शराब से लोगों को इतना प्रेम क्यों है ? मैंने अक्सर पाया है क़ि शराब बंदी की बात कीजिये तो बिरले ही कोई आपका समर्थन करता है.

  2. इकबाल हिन्दुस्तानी जी, अगर शराब पर पावंदी लगा दी जाये तो यौन अपराध ही नहीं,अन्य बहुत अपराध भी कम हो जायेंगे. जैसे जैसे शराब की खपत बढ़ती गयी है ,उसी अनुआत में अपराध भी बढ़ते गए हैं.,पर आपने ठीक ही कहा है क़ि इस पर कभी भी पाबंदी नहीं लगेगी महात्मा गाँधी ने कहा था क़ि मुझे अगर आधे दिन के लिए भी शासन की बागडोर मिल जाए तो मैं सबसे पहले पूर्ण नशावंदी करूंगा. अन्य भारतीय नेताओं में केवल मोरारजी देसाई पूर्ण शराब वंदी के पक्ष में थे.

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