प्रभाष जोशी वर्तमान हिन्दी पत्रकारिता के सर्वमान्य हस्ताक्षर हैं । जनसत्ता में उनको करीब ५ सालों से पढ़ रहा हूँ । कभी भी जोशी जी के आलेखों में किसी वाद की छाया प्रतिबिंबित नहीं देखी है । सुनते हैं कि जनसत्ता वामपंथी विचारधारा का समाचार पत्र है परन्तु आज तक इस पर कोई निर्णय नहीं कर पाया हूँ । किसी अखबार के अथवा पत्रकार के एकाध आलेखों / ख़बरों से उसके विचार /सोच/ मानसिकता को चिन्हित कर पाना मुझ जैसे अनाड़ी के लिए मुश्किल काम है । हाँ , हमारे कुछ वामपंथी मित्र इस मामले में बड़े चतुर और पारखी हैं ! आज हीं एक सज्जन ने ब्लॉग पर रविवार में छपे प्रभाष जी के साक्षात्कार को उधृत करते हुए उन्हें संघ -प्रेमी करार दे दिया । उक्त वामपंथी मित्र ने अपनी पोस्ट में जो शीर्षक दिया है जरा उसे भी देखिये “प्रभाष जोशी! शर्म तुमको मगर नहीं आती” ।इस तरह की भाषा से इनका टुच्चापन और अधिकाधिक पाठक खिंच लाने की मंशा साफ़ हो जाती है । जोशी के आलेख केसन्दर्भों को जाने -बुझे बगैर ऐसी टिप्पणी उनके कच्चे लेखक होने की बात को पुष्ट करता है । पोस्ट के आरम्भ में जोशी जी को पुरुषवादी , ब्राह्मणवादी, मनुवादी, संघप्रेमी आदि संबोधनों (जो आज कल बौद्धिक जगत में गाली के रूप में प्रयुक्त होते हैं ) से अलंकृत कर नीचे उक्त साक्षात्कार को चेपा गया है । प्रभाष जोशी के वक्तव्यों को बिन्दुवार लेते हुए तार्किक खंडन करने के बजाय खाली गाल बजाने का काम तो इन महाज्ञानी लोगों के ही वश में है।अगर इन्होने जरा भी प्रभाष जोशी को पढ़ा होता तो ऐसा अनर्गल प्रलाप कदाचित नहीं करते । गुजरात दंगा , बाबरी मस्जिद, शाहबानों प्रकरण,सिख दंगा हो अथवा नंदीग्राम का मामला हर जगह जोशी जी ने निष्पक्ष रुख अपनाए रखा । ऐसे बेदाग़ छवि वाले पत्रकार को अपनी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर किसी खास वाद का पैरोकार बताना ब्लॉगर के मानसिक दिवालियेपन की निशानी है । आप भी पूरे प्रकरण को यहाँ देखिये और इस बेतुकी बहस में सर खपाईये । समय हो तो जरुर बताइए क्या प्रभाष जोशी संघी और ब्राह्मणवादी हैं ?
Thank you! You often write very interesting articles. You improved my mood.
बिना पढ़े ही कुछ भी लिख देना आदत रही है लोगों की, इसी का पालन हल्ला-मुहल्ला वाले कर रहे हैं. जोशी जी की कुछ चीजें गलत हो सकती हैं तो बाकी सही भी हैं.
जब आपने खुद ही इसे बेतुकी बहस कह दिया है, तब इसमें पड़ने का क्या फ़ायदा…