Be practical Mama

home            मेरी भांजी हैदराबाद विश्वविद्यालय में हिन्दी की प्रोफ़ेसर है। कभी-कभी बनारस आती है, मुझसे मिलने। उसे लेने और छोड़ने कभी मैं बाबतपुर हवाई अड्डे और कभी रेलवे स्टेशन जरुर जाता हूं। उसने कई बार मुझसे हैदराबाद आने का आग्रह किया, सो सेवा से अवकाश प्राप्ति के बाद पिछली ९ तारीख को मैं हैदराबाद गया। पूर्व सूचना मैंने दूरभाष से दे दी और ट्रेन का नंबर तथा नाम भी बता दिया। उसने लिंगमपल्ली स्टेशन पर उतरने की सलाह दी क्योंकि स्टेशन उसके घर से सिर्फ़ ५ कि.मी. की दूरी पर था। लिंगमपल्ली पहुंचने के आधे घंटे पहले मैंने उसे सूचना भी दे दी और यह भी बता दिया की ट्रेन राइट टाईम है। उसने मुझे स्टेशन से बाहर आकर थ्री-व्हीलर पकड़कर मसीद बन्डा चौराहे के पास रेलायंस बिल्डर के अपार्टमेन्ट में आने का रास्ता बता दिया। मैंने उसकी सलाह का अनुकरण किया और आटो वाले को मुंहमांगा भाड़ा (५० रुपए की जगह ३००) देकर मसीद बन्डा पहुंच ही गया। आटो वाले ने मुझे चौराहे पर ही छोड़ दिया। खैर, लोगों से पूछ-पूछकर मैं गन्तव्य तक पहुंच ही गया। काल-बेल बजाने पर मेरी भांजी बाहर आई। नमस्ते के बाद पहला प्रश्न किया – “आपको आने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई, मामा।” “नहीं बेटा, कोई खास नहीं। बस मसीद बन्डा से तुम्हारे घर तक आने में इस भारी सामान के साथ पूछ-पूछकर आने में थोड़ी परेशानी हुई। तुम स्टेशन आ गई होती, तो पहुंचना आसान हो जाता,” मैंने उत्तर दिया। “Be practical Mama. Receive करना और See off करना बीते जमाने की बात है,” उसने मुझे समझाया। मैं समझ गया – यह जेनेरेशन गैप है।

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विपिन किशोर सिन्हा
जन्मस्थान - ग्राम-बाल बंगरा, पो.-महाराज गंज, जिला-सिवान,बिहार. वर्तमान पता - लेन नं. ८सी, प्लाट नं. ७८, महामनापुरी, वाराणसी. शिक्षा - बी.टेक इन मेकेनिकल इंजीनियरिंग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय. व्यवसाय - अधिशासी अभियन्ता, उ.प्र.पावर कारपोरेशन लि., वाराणसी. साहित्यिक कृतियां - कहो कौन्तेय, शेष कथित रामकथा, स्मृति, क्या खोया क्या पाया (सभी उपन्यास), फ़ैसला (कहानी संग्रह), राम ने सीता परित्याग कभी किया ही नहीं (शोध पत्र), संदर्भ, अमराई एवं अभिव्यक्ति (कविता संग्रह)

5 COMMENTS

  1. मेरे विचार से इस लेख को लेखक और उनकी भांजी से व्यक्तिगत रूप से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए।
    ये लेखक की स्पष्टवादिता और प्रवक्ता को अपना परिवार समझने की पहचान है कि राय साहब ने अपना निजी अनुभव हम लोगों के साथ शेयर किया है।
    हम में से कोई भी इस बात की गारन्टी नहीं ले सकता कि हमारे सारे रिश्तेदार हमारे साथ कभी ऐसा बर्ताव नहीं करते जैसा लेखक की भांजी ने उनके साथ किया। एक सच और है जो लेखक ने अब तक नहीं बताया कि उनके सारे रिश्तेदार भी उनके साथ उनकी भांजी जैसा व्यवहार नहीं करते होंगे।
    अब आते हैं मूल बात पर। दरअसल लेखक की भांजी आज की भौतिकवादी और पूंजीवादी उस युवा पीढ़ी का प्रतीक है जो आधुनिकता और तरक्की का ये गलत मतलब समझ बैठी है। ये सारे समाज की समस्या है अगर नहीं है तो नैतिक मूल्यों में गिरावट और संस्कृति के पतन से बन जायेगी। मेरा तो कहना है सब मिलकर सोचिये ऐसी भांजियों को कैसे सिखाया जाए कि संस्कारों से हटना be practical mama नहीं होता बेटी।

  2. इस प्रकार का व्यवहार निंदनीय है, हमारे परिवारों मे तो कोई जवान लड़का लड़की ऐसी बात करने की हिम्मत नहीं कर सकता।

  3. यह जेनेरेशन गैप वाला मामला थोड़ा ज्यादा खिंचा हुआ लग्रता है और यह मैं पहली बार सुन रहा हूँ,,वह भी उस भांजी के मुंह से जिसका वयोवृद्ध मामा उसे हमेशा लेने और छोड़ने गया है, मेरा अनुभव इससे बहुत भिन्न है.आज भी मेरा बेटा,दिल्ली में रहते हुए भी ,अपने किसी भी सम्बन्धी को स्वयं लेने जाना चाहता है. किसी कारण बस नहीं जा सका,तो चाहता है कि मैं ड्राइबर के साथ जाऊं हो सकता है कि संस्कार का अंतर हो. रही बात इतना ज्यादा भाड़ा वसूलने की ,तो लगता है,पिछले कुछ वर्षों में हैदरावाद भी बदल गया है नहीं ,तो अस्सी के दशक के उत्तरार्द्ध और नब्बे के दशक के प्रारम्भ में जब मैं हैदरावाद के पास ही रहता था और बाद में आता जाता था, कोई ऐसा सोच भी नहीं सकता था.

  4. विपिन जी, घटना दुःख दे गयी।
    मुझे दो-चार बिंदुओं पर जगह लेकर,अधिक कहना है।

    (१) समाज के, संबंधों का ताना बाना भी अंततोऽगत्वा स्मृतियों की संवेदनक्षमता और भावभीने व्यवहार की गुणवत्ता पर आधार रखता है।
    व्यवहार की शुष्कता जितनी बढेगी उतना समाज और उसी की छोटी इकाई संयुक्त परिवार, परस्पर कटता रहेगा। और उसीके अनुपात में, पीडा अनुभव करेगा।
    ==>सुखी होने के उद्देश्य से जो किया जा रहा है; अंतमें दुःख ही प्राप्त करेगा। जड वस्तुओं को प्राप्त करनेवाला चेतन का त्याग करेगा। यह मृगमरीचिका ही सिद्ध होगी।
    (२) दूसरा अचरज, आप की भांजी हिन्दी की पी. एच. डी. अंग्रेज़ी में उत्तर दे रही है। “Be practical Mama. Receive करना और See off करना बीते जमाने की बात है।”
    (३) स्वतंत्रता की अति, व्यक्ति-व्यक्ति को तोडकर अलग कर देती है। इसीका कुल योग -परिणाम समाज का, संवेदनहीन भीड बन जाना है।
    आपकी अनुभूति समझ में आती है।कुछ अधिक ही कह गया, शायद इतनी गम्भीर बात ना हो।कुल अनेक स्मृतियों की गठरी निर्णायक होती है;एक घटना नहीं।
    (४) पर हमें चेतना चाहिए।हमारी क्रिया-प्रतिक्रिया सकारात्मक ही रहनी चाहिए।हम सकारात्मकता के जनित्र हैं।

    पर, लाल बत्ती की चेतावनी है, आपका छोटा आलेख।
    धन्यवाद

    • मैं पूरी तरह आपसे सहमत हूँ. यह लेख मैंने समाज की आँख खोलने के लिए ही लिखा था – व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर. जहाँ तक हिंदी के एक प्रोफ़ेसर के अंग्रेजी में उत्तर देने का प्रश्न है, मुझे भी यह खटका था. हिंदी जिनकी रोजी-रोटी है, वे भी आधुनिक दिखने के चक्कर में टूटी-फूटी ही सही, अंग्रेजी ही बोलने का प्रयास करते हैं. यह बीमारी भारत में और विशेष रूप से उत्तर भारतीयों में अधिक है. स्वभाषा के प्रति सम्मान और गौरव में ह्रास भी चिंतनीय विषय है.

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