वर्ष 1947 में विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक डेसिगनेटेड ने भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखकर कहा था कि भारत स्वतंत्रता का संघर्ष कर रहे इजराइल का सहयोग करे. नेहरू ने उस समय कुछ कारण बताते हुए सहयोग करनें से मना कर दिया था, जिसे बाद में इजरायल के समाचार पत्रों ने भारत में बड़ी मुस्लिम आबादी की वजह से नेहरू की अरब देशों से नजदीकी को जिम्मेदार बताया था. इस संदर्भ में नेहरू 1949 में लंदन यात्रा के समय आइंस्टीन के घर भी गए और उन्हें अपनी मजबूरी समझाई थी. इतिहास सत्तर वर्षों तक स्वयं को दोहराता रहा व भारत में बढ़ती हुई मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति तथाकथित तौर पर वैश्विक स्तर पर भी दुर्भाग्यपूर्ण आचरण अपनाए रही. इस छोटी सी कथा में भारत-इजराइल सम्बंधों का सत्तर वर्षीय इतिहास, इतिहास के कारण व उसकी पृष्ठभूमि सभी कुछ समावेशित है. इस कथा का एक उभय पक्ष और भी है, उसे भी पढ़िए –
1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत की स्थिति ठीक नहीं थी, नेहरू ने इजराइल से सहयोग माँगा तो इजरायल तैयार हो गया. भारत-इजराइल के मध्य हुई इस चर्चा का श्रेय अमेरिका में तत्कालीन भारतीय राजदूत रहे बी के नेहरु को जाता है. इस दिशा में आगे हथियारों की कुछ खेप भारत पहुंची भी, लेकिन नेहरू नहीं चाहते थे कि इजरायल से हथियार मंगाने की बात सार्वजनिक हो, इसलिए उन्होंने इजरायल से शर्त रख दी कि एक तो जिस जहाज से इजराइली हथियार आ रहे हैं, उन जहाजों पर इजरायल का राष्ट्र ध्वज न लगा हो, दूसरे सभी हथियारों पर इजरायल का नाम या ठप्पा लगा हुआ न हो. तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री बेन गुरियन ने नेहरु की इन शर्तों को माननें से मना कर दिया और बढ़ती बात बीच में ही रूक गई. बाद में बेन गुरियन ने इजराइली संसद में भारतीय प्रम नेहरु की इस विषय में आलोचना करते हुए यह भी कहा था कि –“ नेहरू ने मध्य पूर्व के देशों की यात्राओं में इजरायल जानें से परहेज किया”. भारत द्वारा निर्गुट आन्दोलन के नाम पर भी इजराइल की अनावश्यक अनदेखी की जाती रही. नेहरू के निधन के बाद बाद 1971 के भारत-पाक युद्ध में भारतीय प्रम इंदिरा गांधी ने भी इजरायल से सहयोग माँगा. इंदिरा जी के तत्कालीन सहयोगी पी.एन. हक्सर ने इजराइल से चर्चा की व तब 1965 के इस भारत-पाक युद्ध हेतु भारत को इजराइल ने हथियार उपलब्ध कराए थे. भारत-पाक युद्ध में तब इजराइल द्वारा उपलब्ध कराए गए ये हथियार महत्वपूर्ण घटक सिद्ध हुए थे.
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व इजराइली प्रधानमन्त्री नेतन्याहू के गलबहियां करते, हास-परिहास करते व समुद्र में नंगे पाँव चलते विभिन्न मैत्रीपूर्ण चित्रों को देखते हुए इन कथाओं को आज सुनानें का सार यह कि – इस प्रकार के सम्बंधों की पीठ पर भारत के किसी भी प्रधानमंत्री की पहली एतिहासिक इजराइल यात्रा संपन्न हुई और नरेंद्र मोदी व बेंजामिन नेतन्याहू इस सत्तर वर्षीय बर्फ को तोड़ने में सफल हुए. इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इजराइल प्रवास को इस दृष्टि से स्मरणीय व महत्वपूर्ण बनाया कि वे समस्त परम्पराओं व प्रोटोकाल को तोड़ते हुए मोदी का स्वागत करनें हेतु व उन्हें विदाई देनें हेतु हवाई अड्डे पहुंचे. इजराइली प्रोटोकाल में ऐसा केवल पोप व अमेरिकी राष्ट्रपति के आगमन पर किया जाता है. नेतन्याहू ने मोदी की इस यात्रा के बाद जो ट्वीट की है वह इस यात्रा का निष्कर्ष बतानें हेतु एक अर्थपूर्ण व भविष्य सूचक वाक्य है, उन्होंने ट्वीट में कहा – “यात्रा समाप्त, यात्रा शुरू. आगे अवसरों का सागर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अभूतपूर्व यात्रा पूरी हुई.”
भारत के प्रथम गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय नए दृष्टिकोण व प्रमुखता से प्रारंभ हुए भारत इजराइल सम्बंध इतिहास में कई उतार चढ़ाव झेल चुकें हैं. नरेंद्र मोदी की 4-5-6 जुलाई17, की यह इजराइल यात्रा वैसे तो दोनों देशों के राजनयिक सम्बंधों के पच्चीस वर्ष पूर्ण होनें के उपलक्ष्य पर आयोजित की गई है, किन्तु दूसरी ओर यह भी सत्य है कि पिछले पच्चीस वर्ष ही नहीं अपितु स्वतंत्र भारत के पुते सात दशक भारत-इजराइल की दूरियों के दशक रहें हैं. भारत में सत्तर वर्षों में पली बढ़ी तुष्टिकरण की राजनीति का पर्याप्त असर भारत-इजराइल-फिलिस्तीन त्रिकोण में देखनें को मिला है. कहनें की आवश्यकता नहीं कि किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली इजराइल यात्रा केवल और केवल नरेंद्र मोदी के गत तीन वर्षों की व अटल बिहारी वाजपेयी के समय हुई इजराइली प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के समय बनी पूर्व पीठिका का परिणाम है. भारत की विदेश नीति में भारतीय सुरक्षा को पैनेपन, दृढ़ता व स्पष्टता से स्थान दिलानें वाले भारतीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल अपनी मार्च,17 की इजराइल यात्रा में इस मोदी-नेतन्याहू भेंट का ब्लू प्रिंट तैयार कर चुके थे. कहनें की आवश्यकता नहीं कि अजीत डोभाल जिस प्रकार की दृढ़ता, संकल्पशीलता के साथ साथ कल्पनाशीलता को अपनी कार्यशैली में समावेशित किये रहते हैं उससे इस यात्रा के दूरगामी व ठोस परिणाम अवश्यंभावी हैं.
नमो की इस इजराइल यात्रा में दोनों पक्षों की ओर से नवोन्मेष, विकास, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा अंतरिक्ष के क्षेत्र में कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए. जल एवं कृषि क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के अलावा भारत और इस्राइल लोगों के बीच आपसी संपर्क, हवाई संपर्क और निवेश में मजबूती पर भी चर्चा हुई. आश्चर्यजनक यह रहा कि मोदी के इजराइल जानें पर उतनी चर्चा नहीं हुई जितनी कि उनके फिलिस्तीन न जाने की चर्चा हुई. भारत के भीतर व भारत के बाहर के कुछ नेताओं के व्यक्तव्य मोदी के इजराइल जानें की अपेक्षा फिलिस्तीन न जानें की पीड़ा के परिचायक बनकर सुनने में आये हैं.
आज भारत को अमेरिका के पश्चात सबसे अधिक हथियार प्रदाय करनें वाला देश इजराइल है. कृषि क्षेत्र में भी इजराइल बहुत अग्रणी तकनीक वाला राष्ट्र है. इजराइल की कृषि तकनीक गजब की जल बचत की तकनीक है जिसकी आवश्यकता भविष्य में समूचे विश्व को पड़ने वाली है. कृषि क्षेत्र में भारत द्वारा बनाए जा रहे 26 सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में से 15इजराइल के सहयोग से विकसित किये जा रहे हैं. हरियाणा में इजराइल की मदद से एक कृषि फॉर्म में 65 प्रतिशत कम पानी खर्च करके उपज 10 गुना बढ़ाने में सफलता हासिल की गई है. 125 करोड़ से अधिक जनसँख्या वाले कृषि प्रधान देश में पीने और सिंचाई दोनों के लिए पानी का महत्त्व अत्यधिक है. जल प्रबंधन के क्षेत्र में इजराइल काफी विकसित है इसलिए इस क्षेत्र में वो भारत का बड़ा सहयोगी सिद्ध होगा. जल प्रबंधन के क्षेत्र में भारत-इजराइल साथ साथ बड़ी योजनाओं को पिछले दिनों धरातल पर उतार चुकें हैं. जल प्रबंधन के इस मिशन में ही चार करोड़ डालर की लागत का, भारत की पूज्य नदी गंगा की सफाई का अभियान भी इजराइल के सहयोग से शीघ्र पूर्ण किया जाना है.
अंत में एक बात जो नरेंद्र मोदी के भारत व नेतन्याहू के इजराइल में उच्च स्तर का साम्य दिखाती है- वह है राष्ट्रवाद. इजराइली सेना में वहां के स्थानीय नागरिकों की जीवंत भागीदारी इन दिनों भारत के सोशल मीडिया में चर्चा का एक बड़ा विषय है. इजराइल की आयु व स्वतंत्र भारत की आयु एक समान है. विपरीत परिस्थितियों में सतत युद्धों व संघर्षों का सामना करते हुए इजराइल का विश्व में अग्रणी राष्ट्र बन जाना एक विजय गाथा है जिस पर भारत को उसका अनुगामी बनना चाहिए. यदि भारत इजराइल जैसा शक्तिशाली राष्ट्र बनना चाहता है तो इसका एकमात्र मार्ग है – प्रखर राष्ट्रवाद. अंततः प्रखर राष्ट्रवाद के मार्ग से ही तो यह नन्हा सा राष्ट्र इजराइल विश्व के शक्तिशाली राष्ट्रों की कतार में आ बैठा है.