राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति जैसे महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों के लिए चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों को लेकर की जा रही टीका टिप्पणी के चलते एक बार फिर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के बीच जुबानी युद्ध हो गया। असल में दोनों एक दूसरे पर जुबानी हमला करने का कोई मौका नहीं चूकते, ताकि प्रदेश का राजनीतक माहौल ठंडा न पड़ जाए।
हुआ यूं कि गहलोत ने मीडिया से कहा था कि भाजपा की ऐसी दुर्गति कभी नहीं हुई कि राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के लिए भी उम्मीदवार नहीं मिल रहे हैं, तो प्रधानमंत्री पद के लिए कहां से लाएंगे। राष्ट्रपति पद के लिए ऐसे व्यक्ति का साथ दे रही है जो जीवनभर कांग्रेस में रहा और उसे कांग्रेस से निकाला गया हो। इसी तरह जिन जसवंत सिंह को भाजपा ने 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित किया हो, उन्हें उप राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया है।
इस पर पलटवार करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कड़ा ऐतराज किया। वसुंधराराजे ने कहा कि वे लोग अब उम्मीदवार बन चुके हैं। राजनीतिक पार्टियों से अब उनका कोई संबंध नहीं रहा है। अच्छा नहीं लगता कि हम उनके बारे में इस तरह की बातें करें। विशेषकर मुख्यमंत्री जैसे जिम्मेदार लोगों को उनके बारे में बोलना ही नहीं चाहिए। नहीं तो हम लोग भी फाइनेंस मिनिस्टर के बारे में बोलने लगेंगे तो बात कहां तक जाएगी। जिन पदों के लिए वे लोग चुनाव लड़ रहे हैं, उनका हमें सम्मान करना चाहिए। इस तरह टीका-टिप्पणी करना ठीक नहीं है।
ऐसे में भला गहलोत कहां चुप रहने वाले थे। गहलोत ने इसके जवाब में कहा कि मैंने न तो किसी पर कोई आरोप लगाया और न ही किसी का चरित्र हनन किया है। अगर मैं कहूं कि उनकी पार्टी को उम्मीदवार नहीं मिल रहे हैं। राष्ट्रीय पार्टी होकर भी राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति पद के लिए कोई मेटेरियल नहीं है कि खुद अपना उम्मीदवार खड़ा कर सके। जसवंत सिंह को भाजपा ने 6 साल के लिए निष्कासित किया था, तो उन लोगों ने सोच समझकर ही निष्कासित किया होगा। मैंने तो निष्कासित किया नहीं था। निष्कासन रद्द करना अलग बात है, लेकिन उन्हें सीधे ही उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना दिया। तो क्या मेरा हक नहीं है कि मैं यह कह सकूं कि उनकी पार्टी को उम्मीदवार नहीं मिल रहा है।
बेशक, संवैधानिक पदों के लिए चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवारों के बारे में टीका-टिप्पणी करते वक्त मर्यादा का ख्याल रखा जाना चाहिए, मगर यह आचार संहिता सभी पर लागू होती है। सवाल ये उठता है कि अगर वसुंधरा को मर्यादा का इतना ही ख्याल है तो जब राष्ट्रपति पद के यूपीए उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी पर एनडीए समर्थित उम्मीदवार पी ए संगमा और टीम अन्ना के सेनापति अरविंद केजरीवाल हमला कर रहे थे, तब वे चुप क्यों रहीं? उन्होंने संगमा से ये क्यों नहीं कहा कि आप इस तरह के आरोप मुखर्जी पर न लगाएं? अच्छा नहीं लगता? केजरीवाल तो चिल्ला-चिल्ला कर मुखर्जी पर ताबड़तोड़ हमले कर रहे थे, उन्हें वसुंधरा ने नसीहत क्यों नहीं दी? सीधी-सीधी बात है, वसुंधरा गहलोत पर हमला करने का कोई भी मौका नहीं चूकतीं। आखिर जिस शख्स ने उनकी छोटी सी राजनीतिक चूक की वजह से कुर्सी छीन ली, वह और उसका बयान कैसे बर्दाश्त हो सकता है।
गौरतलब है कि खासकर जिन जसवंत सिंह को लेकर यह वाक युद्ध हुआ है, वे वही हैं जिन्हें कभी पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की तारीफ में पुस्तक लिखने पर भाजपा ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। बाद में जातीय राजनीति की मजबूरी के चलते उन्हें वापस लिया गया था।