अम्बा चरण वशिष्ठ
राष्ट्रपति चुनाव शुरू होते ही विवाद के ग्रहण में फंस गया है। अब कौन सा ग्रह या कौन सा उपाय कब इससे छुटकारा दिला पायेगा, यह तो किसी कुशल राजनीतिक भविष्यवक्ता के बस की बात भी नहीं लगती। कल को क्या होगा यह तो समय ही बतायेगा।
हालांकि नामांकन तो कई औरों ने भी भरे थे पर अन्त में दो ही प्रतिद्वंद्वी मैदान में रह गये हैं। एक हैं कांग्रेस के प्रत्याशी पूर्व वित्त मन्त्री श्री प्रणव मुखर्जी, जिन्हें संप्रग के घटकों के साथ-साथ समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, जनता दल युनाइटेड और शिव सेना का समर्थन प्राप्त है। सुश्री ममता बैनर्जी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं और उन्होंने अभी तक सब को अभी तक विस्मय की स्थिति में रखा है।
दूसरे प्रत्याशी श्री पी ए संगमा हैं जो अनेक पदों पर रहने के बाद लोक सभा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वह राष्ट्रवादी कांग्रेस के संस्थापक नेताओं में थे पर अब उन्होंने उस दल से नाता तोड़़ लिया है। वह अब स्वतन्त्र प्रत्याशी हैं जिन्हें भाजपा, अकाली दल, बिजू जनता दल, सुश्री जयललिता की अन्ना द्रमुक, मिज़ो नैशनल फ्रंट, असम गण परिषद आदि कई दलों का समर्थन प्राप्त है। अब श्री मुखर्जी व संगमा में सीधी टक्कर है।
पर इस चुनाव ने तब दिलचस्प मोड़ ले लिया जब श्री संगमा ने आरोप लगाया कि श्री मुखर्जी अभी भी लाभ के पद भारतीय सांख्यिकी संस्थान कोलकाता के अध्यक्ष पद पर पदासीन हैं और इस कारण उनके नामांकन पत्र रदद कर दिये जायें। इस पर कांग्रेस ने तुरन्त प्रतिक्रिया देते हुये कहा कि श्री मुखर्जी ने अपने नामांकनपत्र दाखिल करने से पूर्व 20 जून को ही त्यागपत्र दे दिया था।
राष्ट्रपति पद के चुनाव के निर्वाचन अधिकारी के समक्ष श्री मुखर्जी का पक्ष प्रस्तुत करते हुये संसदीय कार्य मन्त्री श्री पवन बंसल व गृह मन्त्री श्री पी चिदम्बरन ने बताया कि श्री मुखर्जी का त्यागपत्र संस्थान के प्रेसीडैंट को भेज दिया गया है। श्री बंसल ने पत्रकारों को बताया कि निर्वाचन अधिकारी ने उनका तर्क स्वीकार कर लिया है। पर दोनों ही मन्त्री व श्री प्रण्व मुखर्जी अब तक इस बात पर मौन हैं कि क्या उनका त्यागपत्र स्वीकार कर लिया गया है ? यदि हां, तो कब और किस दिन? अभी तक न सरकार और न श्री मुखर्जी ही उस अधिसूचना की प्रति प्रस्तुत कर सके हैं।
निर्वाचन अधिकारी श्री वी के अग्निहात्री ने अपने निर्णय की कापी जारी नहीं की। पत्रकारों को केवल यही बताया कि राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव के प्रावधानों के अनुसार अपने तौर पर जांच करने, नामांकन पत्रों की जांच व दोनों पक्षों के तर्क-वितर्क सुनने के बाद उन्होंने श्री संगमा की आपत्तियों को खारिज कर दिया है क्योंकि उनमें कोई दम या तर्क नहीं था।
इस आदेश ने एक नये विवाद को जन्म दे दिया हैा संविधान की धारा 58(2) स्पष्ट से कहती है कि ”कोई व्यक्ति, जो भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन अथवा उक्त सरकारों में से किसी के नियन्त्रण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र नहीं होगा।” इसका स्पष्ट अर्थ है कि जिस दिन व जिस समय श्री मुखर्जी ने निर्वाचन अधिकारी के समक्ष अपने नामांकनपत्र प्रस्तुत किये उस समय वह किसी लाभ के पद पर पदासीन नहीं होने चाहियें। मात्र त्यागपत्र दे देने से कोई भी व्यक्ति अपने पदभार से मुक्त नहीं हो जाता। वह अपने पदभार से केवल उस समय ही पदमुक्त होता है जब उसका त्यागपत्र स्वीकार हो जाता है। कोई मन्त्री या सांसद या विधायक मात्र त्यागपत्र दे देने से अपने पदभार से तब तक पदमुक्त नहीं माना जा सकता जब तक कि उसका त्यागपत्र राष्ट्रपति, राज्यपाल या सदन के अध्यक्ष उसे स्वीकार नहीं कर लेते। क्योंकि सरकार या श्री मुखर्जी ने अभी तक कोई भी दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं किया हे जो यह दर्शाता हो कि उनका त्यागपत्र किस दिन स्वीकार हुआ उन्हें पदमुक्त मान लेना ठीक नहीं होगा। यदि सरकार या संस्थान आज अधिसूचना जारी करता है कि श्री मुखर्जी का त्यागपत्र किसी पिछली तिथी से स्वीकार कर लिया गया है तो यह तो श्री संगमा के आरोप की ही पुष्टि करेगा। पत्रकारों को दी गई सूचना में भी श्री अग्निहोत्री ने यह स्पष्ट नहीं किया कि श्री मुखर्जी का त्यागपत्र स्वीकार हो चुका है और कब से।
इसी बीच चुनाव आयोग ने 4 जुलाई को श्री अग्निहोत्री को अपने निर्णय की एक प्रति श्री संगमा को देने की अनुमति दे दी है।
दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने तो यह भी आरोप लगा दिया है कि श्री मुखर्जी के त्यागपत्र पर हस्ताक्षर ही जाली हैं। उसने प्रमाणस्वरूप श्री मुखर्जी के सही और गलत हस्ताक्षर भी जारी कर दिये हैं। सच क्या है यह तो कोई निष्पक्ष जांच ही बता पायेगी।
ऐसी स्थिति में 19 जुलाई को परिणाम चाहे कुछ भी निकले ऐसा लगता है कि चुनाव का असल संग्राम तो परिणाम के बाद अदालत में ही लड़ा जायेगा जब कोई भी पार्टी इस चुनाव को चुनाव याचिका द्वारा चुनौति दे देगी। इसकी सम्भावना अवश्यमभावी लगती है। श्री संगमा और उनका समर्थन कर रही भाजपा ने तो इस ओर इशारा भी कर दिया है। यह सर्वविदित है कि अदालतें गलत ढंग से किसी प्रत्याशी के नामांकनपत्र स्वीकार या अस्वीकार कर देने के कारण अनेकों चुनाव रदद कर चुकी हैं । जहां मुकाबला दो प्रत्याशियों के बीच हो तो एक का चुनाव रदद कर दूसरे को निर्वाचित घोषित भी कर दिया जाता है।
अब प्रतीक्षा करें राष्ट्रपति चुनाव की इस शतरंजी खेल में अगली शह और मात की चाल का।