सरकार पर अनुचित दबाव बनाना गलत

-सिद्धार्थ शंकर गौतम-
israel gaza

इजराइल के गाजा पट्टी पर तेज होते हमलों के मद्देनज़र पूरी दुनिया का ध्यान इनकी तात्कालिक स्थिति पर आकृष्ट होना स्वाभाविक है किन्तु हमारे देश में विपक्ष और सोशल मीडिया पर सक्रिय कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने फलस्तीन में मारे जा रहे मुस्लिमों की दुर्दशा पर घड़ियाली आंसू बहाना शुरू कर दिए हैं| फलस्तीन के गाजा क्षेत्र में आतंकी संगठन हमास का शासन है और निश्चित रूप से उनकी कार्रवाइयां आतंकवाद को बढ़ावा देती हैं| इजराइल-फलस्तीन संघर्ष पिछले ६० वर्षों से बदस्तूर जारी है और जब-तब इसमें तेजी आती रहती है| दरअसल, गाजा पट्टी मध्य-पूर्व में मिस्र और इजराइल के बीच जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा है जिसका कुल क्षेत्रफल लगभग 360 वर्ग किलोमीटर है| इसकी आबादी लगभग १८ लाख है। इजराइल ने १९६७ के मध्य-पूर्व युद्ध के बाद गाजा पर क़ब्ज़ा कर लिया था और लगभग चार दशक बाद २००५ में वहां से अपने सैनिक हटाए| गाजा की दक्षिणी सीमा को मिस्र नियंत्रित करता है| इजराइल द्वारा अपने सैनिक हटाये जाने के बाद हमास ने इस क्षेत्र में अपने पैर पसारने शुरू किए और अंततः इजराइल के लिए सिरदर्द बन गया| इस बार इजरायल-फिलिस्‍तीन विवाद की तात्‍कालिक जड़ जून माह में तीन इजरायली युवकों का आतंकी गुट हमास द्वारा अपहरण है, जिनकी बाद में हत्‍या कर दी गई| इस बर्बर कार्रवाई के बाद इजरायल ने अपने तीन नागरिकों की हत्‍या के खिलाफ गाजा पर कार्रवाई शुरू कर दी| इजराइल की कार्रवाई के दौरान दो जुलाई को एक फिलिस्‍तीन युवक का शव भी बरामद हुआ, जिससे विवाद और बढ़ गया। गाजा की ओर से हमास ने इजरायल पर रॉकेट दागने शुरू कर दिए और हवाई हमले भी किए। दरअसल हमास के अनुसार वह इजरायल का नामो-निशान दुनिया से मिटाने को प्रतिबद्ध है| इजराइल का कहना है कि यदि हमास ने अपने हमले नहीं रोके तो वह जमीनी कार्रवाई करने से भी नहीं चूकेगा वहीं हमास का कहना है कि वो तभी संघर्ष विराम को स्वीकार करेगा जब इसराइल पश्चिमी तट, यरुशलम और गाजा पट्टी में हमले बंद करे। दोनों पक्षों की जिद के चलते २०० से अधिक फलस्‍तीनी नागरिक मारे जा चुके हैं लेकिन हमास की हठधर्मिता देखिए कि अब वह उन क़ैदियों की रिहाई की मांग कर रहा है जिन्हें २०११ में इजराइली सैनिक गिलात शालित की रिहाई के बदले छोड़ा गया था। गौरतलब है कि इजराइल ने उन्‍हें अपने सैनिक की जान बचाने के लिए छोड़ तो दिया था, लेकिन बाद में कार्रवाई कर उन्‍हें फिर से गिरफ्तार कर लिया था| चूंकि इजराइल-फलस्तीन संघर्ष में दुनिया हमेशा दो धड़ों में बनती नज़र आती है लिहाजा भारत सरकार से भी यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपना पक्ष रखे किन्तु भारत सरकार के समक्ष यह स्थिति अत्यंत दुष्कर है| भारत के अरब देशों से मधुर संबंध हैं जो फलस्तीन के पक्ष में हैं और भारत ही वह पहला देश था जिसने इजराइल के गठन को औपचारिक मान्यता दी थी| किसी एक का पक्ष लेना भारत जैसे देश के लिए कठिन है लिहाजा भारत सरकार गुटनिरपेक्षता की नीति के तहत चुप है| पर शायद देश का एक वर्ग विशेष और विपक्ष इस स्थिति को नजरअंदाज करते हुए सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग करने लगा है| विपक्ष ने तो बाकायदा राज्य सभा में इस मुद्दे पर चर्चा की मांग कर डाली जिसके चलते सदन की कार्रवाई बाधित हुई| यहां सरकार की भीरुता की भी निंदा की जानी चाहिए कि उसने अल्पमत विपक्ष के समक्ष घुटने टेकते हुए इस मामले पर चर्चा की अनुमति दी| सरकार को समझना होगा कि उसके पास बहुमत है और यह बहुमत जनता ने उसे विपक्ष की अनुचित मांगों को मानने हेतु नहीं दिया है| भारत की संसद में देश की समस्याओं से जुड़े मुद्दों पर ही बहस होनी चाहिए| फिर जब इस बार इजराइल-फलस्तीन संघर्ष में न तो अमेरिका कुछ बोल रहा है और न ही रूस की कोई प्रतिक्रिया आई है| यहां तक की दोनों पक्षों के मित्र एवं शत्रु भी इस संघर्ष के प्रति मौन धारण करना बेहतर समझ रहे हैं तो भारत सरकार से यह अपेक्षा क्यों की जा रही है कि वह किसी एक पक्ष का साथ देकर दूसरे को अपना दुश्मन बना ले?

दूसरी ओर सोशल मीडिया पर जिस धर्म विशेष के एक वर्ग द्वारा यह मांग की जा रही है कि भारत सरकार फलस्तीन का पक्ष लेते हुए इजराइल पर आंखें तरेरे, बहुत ही घटिया मानसिकता का परिचायक है| इस्लाम के झंडाबरदारों का भी यह मानना है कि मध्य-पूर्व एशिया की घटनाओं को धर्म के चश्मे से न देखकर मानवता के नजरिए से देखें| ज़रा गौर करें, इराक में सुन्‍नी आतंकियों को शिया पसंद नहीं हैं तो फलस्तीन के हमास को गैर इस्‍लामी इजराइली पसंद नहीं है| अब इसमें मानवता कहां है? यह तो विशुद्ध रूप से धर्म से जुड़े मामले हैं जिन्हें बेशक धर्म की नजर से ही देखा जाना चाहिए| उदार मुस्लिम समुदाय यदि मानवता की बात करे तो समझ भी आता है किन्तु कट्टर मुस्लिम समुदाय जो बात-बात में धर्म को ढाल बनाता है, आज यदि मानवता की दुहाई दे तो बात कुछ हजम नहीं होती है| हिन्दू धर्म सहष्णु और सह-अस्तित्व के सिद्धांत के अनुसार सभी धर्मों में समभाव रखता है किन्तु बात जब धर्म संघर्ष की हो तो उसमें चुप रहना ही श्रेष्ठ है| भारत सरकार भले ही अरब संघर्ष में गुटनिरपेक्षता की नीति को अपना रही हो, किन्तु यही गुटनिरपेक्षता संतुलन साधने की विधा है और कूटनीति भी यही कहती है| अतः भारत सरकार को चाहिए कि वह बिना किसी दबाव में आए अपने संबंधों के आधार पर निर्णय ले और देखो, सोचो और निर्णय करो की नीति का पालन करे| वर्ग विशेष का जो गुट सोशल मीडिया पर इस मामले को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रहा है उसे भी यह समझना चाहिए कि भारत सरकार १२५ करोड़ हिन्दुस्तानियों की है और मात्र वर्ग विशेष की तुष्टि हेतु कोई भी कदम उठाना देश और उसकी विदेश नीति के हितकर नहीं होगा|

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

1 COMMENT

  1. सत्ता से हटने के बाद और कुछ बचा नहीं है , इसलिए मुसलमानो का झंडा उठा कांग्रेस अपने वजूद को बचाये रखने के लिए यह सब कर रही है , इसमें राजनीति की बू ज्यादा है नैतिकता , मानवता से कोई वास्ता नहीं

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