प्रधानमंत्री की बातों के मायने

-पीयूष द्विवेदी-  manmohan

अपने लगभग दस साल के कार्यकाल के दौरान ये तीसरा मौका था जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सीधे-सीधे मीडिया से मुखातिब हुए ! विकट से विकट स्थिति में भी आम तौर पर मौन रहने वाले मनमोहन सिंह के लोकसभा चुनाव से चंद महीने पहले मीडिया के सामने आकर सवालों के जवाब देने के राजनीतिक निहितार्थों को काफी हद तक समझा जा सकता है ! यूं तो प्रधानमंत्री ने इस प्रेसवार्ता के दौरान बहुत सारे सवालों के जवाब दिए, पर उन सब में मुख्यतः तीन बातें ऐसी थीं जिन्होंने आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र कांग्रेस की रणनीतियों और चुनौतियों को काफी हद तक स्पष्ट कर दिया ! पहली बात जो भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के विषय में कही गई कि नरेंद्र मोदी का पीएम बनना देश के लिए हानिकारक होगा ! दूसरी बात कि राहुल गांधी में पीएम बनने की पूरी योग्यता और क्षमता है और तीसरी बात कि मनमोहन सिंह कांग्रेस के अगले पीएम उम्मीदवार नहीं होंगे ! अब अगर इन बातों को आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में समझने का प्रयास करें तो प्रधानमंत्री ने खुद के पीएम उम्मीदवार न होने और राहुल गांधी की योग्यता-क्षमता की बात करके आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र राहुल के कांग्रेस का पीएम उम्मीदवार होने की भूमिका बना दी ! इसके अतिरिक्त नरेंद्र मोदी को देश के लिए विनाशकारी बताकर पीएम ने एक तरह से भाजपा द्वारा दी जा रही मोदी की चुनौती को स्वीकारने का भी प्रयास किया तथा ये भी स्पष्ट कर दिया कि कांग्रेस 2002 के गुजरात दंगों पर इतनी आसानी से मोदी को नहीं छोड़ने वाली !  चूंकि, मोदी व अन्य भाजपाइयों द्वारा प्रधानमंत्री पर ‘कमजोर’ जैसी टिप्पणी प्रायः की जाती रहती है ! बस इसी बात के जवाब में आम तौर पर मौन रहने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मोदी के लिए ये कहा कि क्या सशक्त प्रधानमंत्री वो होता है जो सड़कों पर खून बहता हुआ देखता रहे ! हालांकि अब से पहले कभी भी प्रधानमंत्री की तरफ से मोदी के लिए इतनी तल्ख़ टिप्पणी नहीं की गई थी ! पर अब जबकि लोकसभा चुनाव बेहद नजदीक हैं और मोदी और राहुल मुकाबले के दो ध्रुव बन चुके हैं, ऐसे में पीएम द्वारा गुजरात दंगों का उल्लेख करते हुए मोदी पर प्रहार करना मोदी के प्रति कांग्रेस की आक्रामक रणनीति का ही परिचायक है ! हालांकि मोदी पर प्रधानमंत्री के इस बयान से कांग्रेस महकमे में थोड़ी असहजता भी हो रही ! क्योंकि प्रधानमंत्री की ये प्रेसवार्ता मुख्यतः राहुल की पीएम उम्मीदवारी पर सभी संशयों को समाप्त करने के लिए थी ! पर मोदी पर पीएम के अबतक के इस सबसे बड़े हमले ने मोदी की हवा बना दी और राहुल कहीं दब से गए !

बहरहाल, उपर्युक्त बातें तो प्रधानमंत्री की कुछ बातों के राजनीतिक निहितार्थों की थीं ! पर इनके अलावा और भी बहुत सारे राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर प्रधानमंत्री ने सवालों के जवाब दिए ! भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी, अर्थव्यवस्था, अपराध, दंगा, विदेश नीति आदि तमाम वो मुद्दे हैं जिनपर प्रधानमंत्री से सवाल किए गए और उन्होंने कमोबेश सभी के जवाब दिए ! पर इनमें से अधिकाधिक सवालों का जवाब देते वक्त वो घिरे-घिरे और निरुत्तर से दिख रहे थे ! लग रहा था जैसे इन सवालों का उनके पास कोई ठोस जवाब नहीं है और वो बड़ी मुश्किल से कुछ भी बोलके इन सवालों को टालने की कोशिश कर रहे हैं ! इसी क्रम में बेरोजगारी, महंगाई आदि कुछेक मुद्दों पर तो उन्होंने ईमानदारी से अपनी नाकामी स्वीकारी भी ! पर बावजूद इसके अपनी अधिकाधिक नाकामियों पर वो खुद को बचाते ही नज़र आए ! अब चूंकि, प्रधानमंत्री के विषय में ये आम तौर पर कहा जाता है कि वो दस जनपथ के अधीनस्थ कार्य करते हैं और इसमें काफी हद तक सच्चाई भी है ! सो, प्रेसवार्ता के दौरान प्रधानमंत्री से एक सवाल दस जनपथ के अधीनस्थ कार्य करने पर भी पूछा गया ! इसपर प्रधानमंत्री का जो जवाब था उसने उनके कार्यकाल के अंतिम दिनों में इस बात की आधिकारिक पुष्टि कर दी कि वो यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के प्रति कितनी निष्ठा और समर्पण रखते हैं ! प्रधानमंत्री ने बड़े भोलेपन से कहा कि सोनिया और राहुल ने सरकार के काम-काज में बहुत सहयोग दिया है, इसलिए सरकार में उनकी बात को सम्मान दिया जाता है और इसमें कुछ भी गलत नहीं है ! अब जो भी हो, पर इतना तो तय है कि दस जनपथ के संबंध में प्रधानमंत्री का ये जवाब ‘कमजोर’ प्रधानमंत्री की उनकी छवि को आधिकारिक पुष्टि देने के अतिरिक्त और कुछ नहीं करेगा !

प्रधानमंत्री से एक सवाल यह भी किया गया कि आज उन्हें कमजोर प्रधानमंत्री कहा जाता है, सो इतिहास उन्हें किस रूप में याद रखेगा ! इस पर प्रधानमंत्री का कहना था कि आज की मीडिया से कहीं बेहतर इतिहास उन्हें समझेगा ! इस जवाब के जरिए प्रधानमंत्री ने शायद मीडिया के प्रति अपनी कोफ़्त को सामने रखने की कोशिश की ! शायद अपनी ‘कमजोर’ प्रधानमंत्री की छवि के लिए वो वर्तमान मीडिया को जिम्मेदार मानते हैं और उन्हें उम्मीद है कि इतिहासकार निष्पक्षता से उनका मूल्यांकन करेंगे ! वैसे, प्रधानमंत्री शायद ये भूल गए कि किसी की कोई छवि मीडिया के बनाए नहीं, बल्कि अपने कार्यों व निर्णयों से बनती है ! लिहाजा सही होता कि उन्होंने पूरी मजबूती से निर्णय लिए होते व बिना किसी दबाव के काम किया होता ! प्रधानमंत्री को समझना चाहिए था कि मीडिया वही सामने लाता है जो आप करते हैं और इतिहास भी आपका किया ही लिखेगा ! सो, अगर आपने मजबूती से निर्णय नहीं लिए है, मजबूत नेतृत्व नहीं दिखाया है तो आपका इतिहास से किसी भी उदारता की उम्मीद करना व्यर्थ है !

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