-सुनील एक्सरे-
सिद्धार्थ जिन्हें संपूर्ण विश्व आज भगवान बुद्ध के नाम से जानता है। इनके बारे में मान्यता है कि वे एक बार अपनी रथ से यात्रा करने निकले और रास्ते में तीन तरह की घटना का परिदृश्य देखने को मिला । इन परिदृश्यों को देखकर तथा इनके बारे में अपने सारथी से जानकारी पाकर वे आहत हुए थे । पहला परिदृश्य में रास्ते में उन्हें एक बूढ़ा दिखाई दिया जिसकी कमर झुकी हुई थी, अपने सारथी से राजकुमार सिद्धार्थ ने पूछा कि यह कौन है ? उनके सारथी छन्न ने उत्तर दिया और राजकुमार की जिज्ञासा को पुरा करते हुए कहा यह बूढ़ा हो गया है और हम सब एक दिन इस अवस्था को प्राप्त करेंगे । दूसरे परिदृश्य में उन्होने एक रोगी को देखकर सारथी छन्न से फिर सवाल किया सारथी ने अपने राजकुमार को जवाब में कहा वह व्यक्ति रोग ग्रस्त है हर एक की ऐसी दशा हो सकती है । तीसरे परिदृश्य में राजकुमार ने एक मृत शरीर को देखा जिसे लोग अर्थी में लेटाकर मरघट ले जा रहे थे । सारथी से फिर सवाल किये सारथी ने उत्तर देते हुए कहा कि वह मर गया है और हम सबको एक दिन मरना ही होगा ।
मान्यता है कि इन घटनाओं से राजकुमार सिद्धार्थ को गहरा दुख हुआ और वे किसी को न मरने देने की बात सोचकर अमृत की खोज में निकल पड़े। प्रियवर जब सिद्धार्थ ने गृहत्याग के बारे में सोचा तो उस समय उनकी आयु 29 वर्ष की थी । क्या 29 वर्ष की आयु तक वे कभी किसी बूढ़े, रोगी और मृत शरीर नहीं देखे होंगे ? इतनी बातों से राजकुमार सिद्धार्थ का घर को छोड़कर जाना यह पर्याप्त नहीें हो सकता । बात अलग है जो उनके पूर्वजों द्वारा बनायी गई मर्यादा से संबंधित थी । ई. पूर्व छठी शताब्दी की बात है। उत्तर भारत में कपिलवस्तु नाम का एक राज्य हुआ करता था । यहां जयसेन नाम का एक शाक्य रहता था । सिनाहनु उसका पुत्र था । सिनाहनु के पाॅंच पुत्र थे जिनमें शुद्धोधन सबसे बड़ा था । सिद्धार्थ के जन्म के समय पिता शुद्धोधन कपिलवस्तु राज्य का राजा था, इसलिए सिद्धार्थ का राजकुमार कहलाना स्वाभाविक था । इनकी माता का नाम महामाया था जो पुत्र के जन्म के बाद 07 वें दिन चल बसीं । इनकी देख रेख महामाया की बड़ी बहन प्रजापति ने की जो उनकी दूसरी मां के रूप में थी । इसा पूर्व 563 को वैशाख पूर्णिमा के दिन जब बालक का जन्म हुआ, तो असित नाम के विद्वान मुनि इनके दर्शन करने आये थे और उन्होंने एक भविष्यवाणी की थी कि यह गृहस्थ रहेगा तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा और यदि गृहत्याग करेगा तो सम्यक सम्बुद्ध होगा । असित मुनि की वैकल्पिक भविष्यवाणी कि यदि राजकुमार गृहत्याग करेगा तो सम्यक सम्बुद्ध होगा। यह पूरी न हो जाय पिता शुद्धोधन के मन में हमेशा डर बना रहता था उन्होंने राजकुमार को हर तरह की शिक्षा दिलवायी । क्षत्रिय कुल होने की वजह से शस्त्र विद्या तक भी दिलवायी गई ,शस्त्र विद्या सीखने के बाद घर वाले तथा सगे संबंधी लोग उनको शसत्र विद्या का प्रयोग करने अर्थात् शिकार करने के लिए जंगल जाने को कहते थे। राजकुमार सिद्धार्थ ने कभी किसी भी प्राणी का शिकार करना स्वीकार न किया कभी जंगल न गये। सिद्धार्थ जब 17 वे वर्ष में पंहुंचा तो माता – पिता ने शादी की इच्छा व्यक्त की । माता – पिता की इच्छा पुरी करना स्वीकार करके वे दण्डपाणि की पुत्री यशोधरा के स्वयंबर में भाग लिये और यशोधरा के साथ उनका विवाह हो गया । सिद्धार्थ बचपन से ही साधु प्रवृत्ति का था। इसलिए लोग उनके दाम्पत्य जीवन की सफलता में सन्देह करते थे । वैवाहिक जीवन देने के बावजूद पिता ने राजकुमार के लिए ग्रीष्म ,वर्षा तथा शीत ऋतु के लिए अलग अलग महल बनवाये महलों को हर तरह की सुविधाओं और भोग विलास की साधनों से सुसज्जित कराया जिसमें अत्यधिक सुंदर स्त्रियों को भी नियुक्त किया गया । पत्नि को छोड़कर वे किसी भी स्त्री पर कभी आसक्त नहीं हुए, जबकि वे स्त्रियां उन्हीं के लिए नियुक्त थी ।
शाक्यों का एक संघ था जिसमें 20 वर्ष की आयु पूरी करने पर शाक्य संघ में दीक्षित होकर संघ का सदस्य बनना होता था सिद्धार्थ गौतम ने उसकी सदस्यता ली सिद्धार्थ ने आठ वर्षों तक संघ के कर्त्तव्यों का कुशलतापूर्वक निर्वहन किया । उनकी सदस्यता के आठवें वर्ष में एक ऐसी घटना घटी जो शुद्धोधन के परिवार के लिए दुखद और सिद्धार्थ के जीवन में संकटपूर्ण स्थिति पैदा हो गई । शाक्यों के राज्य की सीमा से सटा हुआ कोलियों का राज्य था, दोनों राज्यों को रोहिणी नाम की नदी अलग करती थी । इस नदी के पानी से दोनो अपने अपने खेत सींचते थे, पानी का उपयोग पहले कौन और कितना उपयोग करेगा इस पर हर बार विवाद होता था । एक बार यही विवाद शाक्यों के नौकरों और कोलियों के नौकरों के बीच झगड़े में बदल गया दोनों ओर के लोग घायल हो गये । शाक्य संध के सेनापति ने कोलियों के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। सिद्धार्थ ने इसका विरोध किया। कहा कि युद्ध से किसी प्रश्न का समाधान नहीं होता । सेनापति और सिद्धार्थ के बीच तर्क -वितर्क हुआ । संघ के विरोध करने के कारण सिद्धार्थ के सामने तीन दण्डों का विकल्प रखा गया जिसमें एक को चुनना था । 01 सेना में भर्ती होकर युद्ध में भाग लेना 02 फांसी पर लटकना या देश निकाला स्वीकार करना 03 अपने परिवार के लोगों का सामाजिक बहिष्कार और उनके खेतों की जब्ती के लिए राजी होना । सिद्धार्थ ने परिव्राजक बनकर देश को छोड़कर निकलना उचित समझा । सिद्धार्थ राजसी ठाठ-बाट माता -पिता, पत्नी तथा पुत्र राहुल को त्यागकर सन्यासी रूप में देश से निकल गये जो उनके परिवार के लिए अत्यंत कष्टप्रद था । सिद्धार्थ गौतम अब महात्मा कहलाने लगे एक राज्य के राजकुमार को भिक्षा मांगते देख मगध के राजा बिंबिसार अत्यंत दुखी हुए और अपना आधा राज्य ले लेने को कहा सिद्धार्थ ने विनम्रता पूर्वक अस्वीकार कर दिया इस तरह एक राजकुमार जीवन से सर्वोच्च संखों की कुर्बानी देकर भिक्खु बना तथा सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण में अपने जीवन को लगा दिया, इन्हीं के बताये गये रास्ते आज सम्पूर्ण विश्व में बौद्ध धम्म के नाम से जाने जाते हैं और लोग सिद्धार्थ गौतम को भगवान गौतम बुद्ध के नाम से याद करते हैं। 2578वां वर्ष के बाद भी सिद्धार्थ का जीवन प्रासंगीक है ।
सभी बौद्ध ग्रंथों और शिलालेखों में 28 बुद्धों का उल्लेख है। सारनाथ लेख में 4 बुद्धों का उल्लेख है जिनके जन्म स्थान की यात्रा के बाद अशोक ने इस स्तूप का आकार दोगुना कराया था। इन सबके जन्म स्थान का वर्णन फाहियान ने भी किया है। इसके बाद विष्णु अवतार बुद्ध मगध में 800 ईपू और गौतम बुद्ध इलाहाबाद में 550 ईपू में हुए। इन सबको 1887 ईपू के सिद्धार्थ बुद्ध से जोड दिया गया है।