निजी बैंकों का काला कारोबार

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private banksप्रमोद भार्गव

देश के निजी बैंक कठघरे में हैं। ये बैंक संबंधी पारदर्षिता से खिलवाड़ करते हुए देश के भीतर ही काले धन को बड़े पैमाने पर सफेद करने के कारोबार में लगे हैं। यह आर्थिक भ्रष्टाचार देश की अर्थव्यवस्था को चौपट करने के साथ मंहगार्इ बढ़ाने का काम भी कर रहा है। न्यूज पोर्टल कोबरापोस्ट ने एक सिटंग आपरेशन कर इस बात का खुलासा कर दिया है कि देश के तीन शीर्शस्थ निजी बैंक बेखौफ काली कमार्इ को सफेद करने में लगे हैं। ये बैंक एचडीएफसी, आर्इसीआर्इसीआर्इ और एकिसस बैंक हैं। इन बैंकों के अधिकारी – कर्मचारी बिना किसी कानूनी भय के कुटिल चतुरार्इ बरतते हुए, आयकर, बैंकिंग, विदेशी मुद्रा प्रबंधन, मनीलांडिंग और हवाला कारोबार को अंजाम देते हैं, यह हैरतअंगेज है। स्टिंग आपरेशन में लगे पत्रकारों को जिस बेहिचक के साथ बैंक-कर्मियों ने कालेधन के निवेश के सुरक्षित तरीके बताए, उससे साफ है कि हजारों करोड़ रुपए का कालाधन अपने देश के ही निजी बैंकों में खुलेआम सफेद किया जा रहा है। इस पर भी आश्चर्य है कि हम इन बैंकों के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को औधोगिक जगत का आदर्श मानते हैं और उनकी सफलता की कहानियां रचते हैं। जिससे युवा पीढ़ी को इनके पदचिन्हों पर चलने की प्रेरणा मिलती रहे।

देश में इस समय सार्वजनिक क्षेत्र के 26 और निजी क्षेत्र के 22 बैंक हैं। 10 निजी बैंकों को 1993 में बैंकिंग कारोबार के लिए लायसेंस दिए गए थे। 2004 में यश बैंक, आखिरी लाइसेंस पाने वाला बैंक था। इसके साथ निजी बैंकों की संख्या 22 हो गर्इ थी। अब संसद में बैंकिंग कानून संषोधन विधेयक पारित होने के दो महीने के भीतर ही नए बैंक लाइसेंस देने के दिशा-निर्देश भी जारी कर दिए हंै। मजबूत आर्थिक साख वाली कंपनियां 500 करोड़ रुपए की अंश पूंजी के साथ नए वाणिजियक बैंक स्थापित कर सकेंगी। भारतीय डाक विभाग और सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनी, भारतीय जीवन बीमा निगम को भी बैंक खोलने की इजाजत दी गर्इ है।

लाइसेंस पाने की होड़ में महिन्द्रा एंड महिन्द्रा, टाटा, अनिल अंबानी, लार्सन एंड टुब्रो, रेलिगेयर और आदित्य बिरला समूह लगे हैं। इन बैंकों में विदेशी संस्थागत निवेशक, प्रवासी भारतीय और प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश का भी प्रावधान है। जाहिर है, आने वाले समय में काले धंधे का सफेद कारोबार बढ़ने वाला है। क्योंकि अब तक जिन-जिन निजी बैंकों के गड़बड़ घोटाले सामने आए हैं, सरकार ने उन पर कानूनी शिकंजा कसने की बजाए पर्दा डालने का काम किया है। बीते साल अमेरिकी सीनेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक बि्रटेन के हांगकांग एंड षंघार्इ बैंक कार्पोरेशन यानी एचएसबीसी बैंक के खिलाफ मनीलांडिंग के गंभीर आरोप लगे थे। रिपोर्ट में कहा गया था कि इस बैंक के कर्मचारियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गैरकानूनी तरीके से कालेधन का हस्तांतरण किया है। कुछ धनराशि का लेनदेन आतंकवादी संगठनों को भी किया गया है। इस खुलासे के बाद रिजर्व बैंक ने अपने स्तर पर पड़ताल की। लेकिन इस पड़ताल के क्या निष्कर्ष निकले कोर्इ नहीं जानता। जबकि अमेरिकी सीनेट ने अपनी जांच में पाया था कि एचएसबीसी ने सउदी अरब के अल रजही बैंक के साथ भी कारोबार किया है। इस बैंक के मुख्य संस्थापक को पहले आतंकवादी संगठन अलकायदा का वित्तीय संरक्षण मिला हुआ था। इन गैरकानूनी गतिविधियों की वजह से ही अमेरिका एचएसबीसी पर शिकंजा कस रहा है। इस कार्रवार्इ के तहत डेढ़ अरब डालर का जुर्माना एचएसबीसी पर लगाना लगभग तय है।

पिछले साल नवंबर में आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल और उनके वकील साथी प्रशांत भूषण ने भी दस्तरवेजी साक्ष्यों के साथ आरोप लगाया था कि एचएसबीसी बैंक भारतीयों की काली कमार्इ को सिवटजरलैंड भेजने में मदद कर रहा है। यही नहीं यह भी आरोप था कि यह बैंक देश में अपहरण, भ्रष्टाचार और आतंकवाद को प्रोत्साहित कर रहा है। हवाला और मनीलांडिग का रैकेट चला रहा है। इसलिए इस बैंक के भारत स्थित आला-अधिकारियों को तत्काल हिरासत में लेने की जरुरत है। अपने खुलासे में अरविंद ने जिन भारतीयों का काला धन विदेशी बैंकों में जमा होने का प्रमाण 700 लोगों के नाम की सीडी जारी करके की थी। यह सीडी इसी बैंक के हर्व फेलिसयानी नाम के कर्मचारी ने गोपनीय ढंग से बनार्इ थी। तय है निजी बैंक भारत की जमीन पर एक नए आंतरिक खतरे का जंजाल रच रहे हैं। नए निजी बैंक खोलने की ताजा अनुमति इस खतरे को और बढ़ावा देगी। इसीलिए सार्वजनिक बैंकों के कर्मचारी संगठन औधोगिक घरानों और देशी-विदेशी कंपनियों द्वारा बैंक खोले जाने के विरोध में हैं।

कुछ महीने पहले वॉशिंग्टन स्थित शोध संस्थान ‘ग्लोबल फाइनेंस इंटीगि्रटी ने 2001-2010 के बीच विकासषील देशों द्वारा काले धन के रुप विदेशों में जाने वाली रकम का आकलन करते हुए बताया था कि इन सालों के दौरान करीब 123 अरब डालर की रकम विदेशों में काले धन के रुप में पहुंचार्इ गर्इ है। इस धन में से करीब 25 लाख करोड़ भारत का है। इस लिहाज से भारत सरकार को सावधानी बरतने की जरुरत है। क्योंकि दिशा-निर्देषों में भले ही हवाला दिया गया हो कि ये बैंक बेहतर, व्यावहारिक और पारदशी कार्य-योजना को अमल में लांएगे। वित्तीय क्षेत्र में समावेषी गतिविधियों के लिए उचित लक्ष्य तय करेंगे। लेकिन ऐसा होना नामुमकिन लग रहा है। शर्तों के मुताबिक निजी बैंकों को एक चौथार्इ शाखाएं, बैंकिंग सुविधा से वंचित ग्रामीण क्षेत्रों में खोलना जरुरी है। केवल व्यवसाय और कालेधन को सफेद करने की मंशा से बैंकिंग क्षेत्र में आने वाले कारोबारी, उन क्षेत्रों में शाखाएं क्यों खोलेंगे, जहां न धन जमा करने वाले ग्राहक हों और न ही कर्ज लेने वाले ? अच्छा होता सरकार डाक बैंकों को प्रोत्साहित करती। देश में एक लाख 55 हजार डाक घर हैं। इनमें से 24000 विकास खण्ड और जिला मुख्यालयों पर हैं। ज्यादातर विकासखण्ड, दूरांचलों में स्थित कस्बार्इ व पिछड़े क्षेत्र हैं। एक कल्पनाषील व परिवर्तनकारी आर्इटी परियोजना के तहत इन डाकघरों को कोर बैंकिंग सोल्यूशन सुविधा से जोड़ दिया जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में जल्दी से जल्दी बैंक सुविधा पहुंचार्इ जा सकती है। यह सुविधा विष्वसनीय भी रहेगी और कालेधन को सफेद में बदलने का काम भी नहीं करेगी। लेकिन मौजूदा सरकार इस सुविधा को अंजाम नहीं देगी, क्योंकि उसकी प्राथमिकता तो औधोगिक घरानों व देशी-विदेशी बहु राष्ट्रीय कंपनियों को लाभ पहुंचाना है ?

 

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