निजी क्षेत्र बनाम सूचना का अधिकार

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सतीश सिंह

बिहार की राजधानी पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हाल में हाल ही में सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया था। दो दिन के इस सम्मेलन में देश भर से आए आरटीआई कार्यकताओं ने शिरकत की। सम्मेलन में आरटीआई के जानकारों के द्वारा इस कानून के गुण-दोष की विवेचना की गर्इ। इसके बरक्स में कारपोरेट घरानों और चंदा लेने वाले संस्थानों को आरटीआई के दायरे में लाने की वकालत करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बयान को सम्मेलन की सबसे बड़ी उपलबिध माना जा सकता है। इस बयान ने एक नये मुददे को जन्म दिया है। देश भर में इस पर व्यापक बहस-मुबाहिसे की जरुरत है। बावजूद इसके यह खबर हाशिये में चली गर्इ। गौरतलब है कि नीतीश कुमार के इस क्रांतिकारी बयान को मीडिया में कोर्इ खास जगह नहीं मिल सकी।

राज्य में आरटीआई कानून को सशक्त बनाने के लिए नीतीश कुमार के द्वारा फिर से पुरानी प्रतिबद्धता को दुहराया गया है, जिसे प्रांत के आरटीआई कार्यकर्ता और जनता नये चश्मे से देख रहे हैं। नीतीश कुमार का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब मोटे तौर पर राज्यों में आरटीआई कानून अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल रहा है, क्योंकि वहां मांगी गर्इ सूचना समय-सीमा के अंदर नहीं दी जा रही है। गलत और भ्रामक सूचना देने के मामले भी प्रकाश में आए हैं। आरटीआई कार्यकर्ताओं को उत्पीडि़त करने वाली घटनाओं में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है। पुलिस-प्रशासन और सूचना आयोग के बीच तालमेल के अभाव के कारण घोर अराजकता का माहौल है।

सूचना का अधिकार कानून को बिहार में 2006 में अमलीजामा पहनाया गया था। किंतु यहां के हालत भी अन्य राज्यों की तरह हैं। अक्टूबर, 2006 से जनवरी, 2012 तक आरटीआई के अंतगर्त कुल 70353 आवेदन प्राप्त हुए हैं, जिसमें से महज 65455 आवेदनों का ही निष्पादन हो सका है। आरटीआई कार्यकर्ताओं और सूचना का अधिकार के अंतगर्त सूचना मांगने वाले आम आवेदकों को राज्य में परेशान किया जा रहा है। अक्सर दोषी अधिकारियों को सजा नहीं दी जाती है। आर्थिक जुर्माना लगाया जाता है, पर उसका अनुपालन नहीं होता है।

इस तरह की अव्यवस्था की स्थिति में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा आरटीआई कानून पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन करवाना राज्य की जनता के लिए एक अच्छी खबर है। मुख्यमंत्री के इस पहल से राज्य में आरटीआई कानून के प्रति आम जनता के बीच जागरुकता बढ़ेगी और साथ ही साथ उनके मन-मस्तिष्क में सकारात्मक संदेश का संचार होगा।

ज्ञातव्य है कि निजी क्षेत्र में चल रहे कार्यकलापों के बारे में हम कोर्इ भी सूचना आरटीआई कानून के माध्यम से प्राप्त नहीं कर सकते हैं। इसमें दो मत नहीं है कि सरकारी संस्थानों में भ्रष्टाचार का शुरू से ही बोलबाला रहा है, लेकिन इस मामले में निजी क्षेत्र अपवाद नहीं है। लिहाजा आरटीआई कानून को लागू करने की जरुरत निजी संस्थानों में उतना ही है, जितना सरकारी संस्थानों में।

नीतीश कुमार का मानना है कि जिन संस्थानों में जनता का पैसा लगा हुआ है, उनको आरटीआई के दायरे में लाया जाना चाहिए, लेकिन मुख्यमंत्री के इस तर्क को अधूरा ही माना जा सकता है, क्योंकि कोर्इ संस्थान निजी है, सिर्फ इस वजह से आम जनता को सही सूचना प्राप्त करने से महरुम नहीं किया जा सकता है, एक लोकतांत्रिक देश में सही सूचना पाने का हक हर व्यक्ति को है।

आज की तारीख में आम आदमी अपनी दिनचर्या में कारपोरेट घरानों के अनेक उत्पादों का उपभोग करता है। साबुन-तेल से लेकर हरी सबिजयां तक निजी घराने बेच रहे हैं। इतना ही नहीं शिक्षा के क्षेत्र में भी कारपोरेटस ने अपना पैर पसार रखा है। स्वास्थ क्षेत्र, जो सीधे तौर पर आम आदमी के जीने-मरने से जुड़ा हुआ है, उसमें भी कारपोरेटस का दखल है। नि:संदेह, काफी हद तक आम आदमी का जीवन निजी घरानों के रहमों-करम पर निर्भर है। ऐसे में निजी क्षेत्र को आरटीआई के दायरे से बाहर रखना आम आदमी के असितत्व को खतरे में डालने के समान है।

आरटीआई के कारण आज हमारे समाज का उपेक्षित वर्ग अपना काम आसानी से करवाने में सक्षम है। सरकारी काम-काजों में पारदर्शिता के दर्शन होने लगे हैं। भ्रष्टाचार पर भी धीरे-धीरे लगाम लग रही है।

अभी हाल ही में ऐसा ही एक वाकया देखने में आया था। बिहार के आरा प्रांत के रहने वाले श्री अवध बिहारी सिंह ने अपने पेंशन के पुनरीक्षण हेतु संबंधित बैंक शाखा में आरटीआई के तहत आवेदन दिया, पर लोक सूचना अधिकारी के द्वारा 30 दिनों के अंदर संबंधित सूचना मुहैया नहीं करवार्इ गर्इ। इतना ही नहीं आवेदन को केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी के पास अग्रतर कार्रवार्इ के लिए अग्रसारित भी नहीं किया गया।

श्री सिंह ने हारकर सूचना पाने के लिए प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के पास अपील की, पर वहां भी उनका आवेदन संबंधित अधिकारी के पास नहीं पहुँचा। तत्पश्चात श्री सिंह ने मुख्य केन्द्रीय सूचना आयुक्त के पास अपील की, तब बैंक का आरटीआई महकमा हरकत में आया। उसके बाद प्रथम अपीलीय प्राधिकारी ने अपने निर्णय में केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को निर्देश दिया कि वे सात कार्यदिवस के अंदर अपीलकर्ता को मांगी गर्इ सूचना उपलब्ध करवायें, लेकिन अपनी गलती सुधारने के बजाए केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी और लोक सूचना अधिकारी ने अपने जबाव में श्री सिंह के आवेदन के उनके कार्यालय में प्राप्त नहीं होने की बात कही।

अब श्री सिंह ने आरटीआई के तहत पोस्ट आफिस से लोक सूचना अधिकारी और केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी के कार्यालय में, किस-किस तिथि में उनके आवेदन की प्राप्ति हुर्इ, से संबंधित सूचना दस्तावेज के रुप में प्राप्त करके प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के पास उक्त अधिकारियों के खिलाफ कार्रवार्इ करने की गुजारिश के साथ पुन: अपील की है। क्या अब संबंधित अधिकारी सजा पाने से बच सकेंगे? निश्चित तौर पर नहीं। इस घटना से स्पष्ट हो जाता है कि अब सूचना को कोर्इ छुपा या दबा नहीं सकता है।

पूर्व मुख्य केन्द्रीय सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह का मानना है कि आरटीआई के माध्यम से समाज के वंचित तबके को उसका अधिकार मिल सकता है। यही वह हथियार है, जिसके जरिये आम आदमी शासन में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर सकता है। मुख्य केन्द्रीय सूचना आयुक्त सत्यानंद मिश्रा भी कहते हैं कि आरटीआई शासन को आम जनता के प्रति जवाबदेह बनाता है।

जाहिर है कि शासन के साथ-साथ आम जनता अपने दैनिक जीवन में निजी घरानों से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रुप से गहरार्इ से जुड़ा हुआ होता है। ऐसे में कारपोरेटस को आरटीआर्इ के दायरे से बाहर रखना सरासर आम जनता के साथ धोखा है। लिहाजा आज जरुरत इस बात की है कि कारपोरेटस के अलावा अन्यान्य निजी संस्थानों को भी आरटीआर्इ के दायरे में लाया जाए। ताकि आम जनता श्री अवध बिहारी सिंह की तरह अपने हक की लड़ार्इ स्वंय लड़ सके और जीत भी हासिल करे।

 

 

1 COMMENT

  1. सब दिखावा ही है बड़े लोग व प्रभावशाली कार्यालय पर कोई असर नहीं
    दंड न दिये जाने के कारण सब मस्त हैं कम से कम यू। पी। मे तो ….

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