पिछले एक दशक के भीतर,आए रेल बजटों में यह रेल बजट न केवल कमजोर है,बलिक जनता में हताशा,अविश्वास और आक्रोश पैदा करने वाला है। बीते साल दिनेश त्रिवेदी ने जब रेल बजट प्रस्तुत किया था,तब उसमें साफगोर्इ तो थी ही,र्इमानदारी की झलक भी थी। रेल मंत्री पवन बंसल से उम्मीद थी की उनके बजट में र्इमानदारी और निश्पक्षता झलकेगी। ऐसा तो कुछ हुआ नहीं,बलिक रेल के लाभ को संप्रग शासित राज्यों और रायबरेली,अमेठी व चण्डीगढ़ के लिए केंद्र्रीयकरण कर दिया गया। बजट भाषण देते हुए जब रेल मंत्री ने कहा कि इस बजट में अनिल काकोडकर और सैम पित्रोदा के सुझावों पर भी अमल किया गया है,तभी आषंका हो गयी थी कि इस बजट से निजी, आर्थिक सहभगिता के द्वार खोलने का सिलसिला शुरू हो जाएगा। हुआ भी यही। यही नहीं अनुभूति नाम से जिन वातानुकूलित कोचों के जरिए रेलवे को बेहतर बनाने का दावा किया गया है,वह भेदभाव बढ़ाने वाला प्रस्ताव है। इसी साल 22 जनवरी को 20 फीसदी यात्री किराया बढ़ाए जाने के बावजूद यदि र्इंधन की कीमतों में वृद्धि होती है,तो हमेशा किराया बढ़ाया जाता रहेगा। जाहिर है, देश के गरीब लोगों की जीवन रेखा को भी भूमण्डलीय आर्थिक उदारवाद के हवाले करने की तैयारी इस बजट प्रस्ताव में कर दी गर्इ है।
इस पूरे रेल बजट का केवल एक सकारात्मक पहलू है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए रेलवे महिला पुलिस की तैनाती करेगी। महिलाओं के लिए हेल्पलाइन सुविधा हासिल करना भी अच्छी बात है। लेकिन ये घोषणाएं अमल में आने के बाद कितनी कारगर साबित होती है,यह तो सुविधाएं लागू होने के बाद ही स्थिति साफ होगी। क्योंकि ज्यादातर लंबी यात्री गाडि़यो में अभी भी रेलवे पुलिस बल हासिल है,लेकिन उनकी भूमिका घटना, घटने के बाद ही सामने आती है। इसके पहले सब भाग्य और भगवन भरोसे चलता रहता है। जाहिर है, मनमानियों पर अंकुश के लिए कोर्इ प्रशासनिक तंत्र शिकंजा कसने के लिए तत्पर दिखार्इ नहीं देता।
रेलवे को वित्तीय रूप से मजबूत बनाना निशिचत रूप से एक चुनौती भरा काम है। बीते 10 साल में 4 हजार नर्इ रेलगाडि़यां पटरी पर उतारी गर्इ हैं। यही रेलें घाटे का सबसे बड़ा कारण बनी हैं। रेलवे की यह आर्थिक आपूर्ति योजना आयोग द्वारा 5.19 लाख करोड़ की वित्तीय मदद करके की गर्इ है। पिछले साल 24,600 करोड़ का घाटा रेलवे को हुआ है। इस घाटे की पूर्ति के लिए एक अरब टन माल भाड़े का लक्ष्य रखा गया है। इसके साथ ही डीजल व अन्य पैट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ते रहने से रेलवे का घाटा बढ़ रहा है। इन बढ़े दामों का असर रेलवे पर न पड़े इस दृष्टि से र्इंधन की तात्कालिक भरपार्इ के लिए,हर टिकट पर र्इंधन सरचार्ज साल में कम से कम दो बार लगना तय है। मसलन किराया सीधे ढंग से न बढ़ाने की वजाए,उसे घुमा-फिराकर बढ़ाने का प्रस्ताव बजट में कर दिया गया है। इससे अच्छा होता रेल मंत्री भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाते?तत्काल टिकटों में जो दलाली होती है,उसे रोकते?रेलवे ने ज्यादातर मालगडि़़यां लीज पर दे दी हैं। इससे रेलवे को दोहरा नुकसान हो रहा है। आमतौर में मालगड़ी के डिब्बे की भार उठाने की क्षमता 4 से 6 टन होती है,लेकिन ठेकेदार इनमें 10 से 12 वजन लाद रहे हैं। इस वजह से आमदनी तो कम हुर्इ ही है,क्षमता से अधिक माल लाद देने से डिब्बे भी पटरी पर कहीं भी पसर जाते है। इससे रख-रखाव का खर्च बढ़ रहा है। इन कारणों से मालगाडि़यो के साथ-साथ सवारी गाडि़यां भी घंटो बाधित होती हैं और रेलवे का घाटा भी बढ़ता है। यदि मालगाडि़यों के लीज पर देने की प्रथा ही बंद कर दी जाती तो रेलवे का लाभ की दिशा में एक कदम बढ़ता दिखार्इ देता।
रेल मंत्री ने रेलवे को दुरूस्त व सुविधाजनक बनाए की दृष्टि से घोषणाएं तो बहुत की है,लेकिन इन्हें अमल में लाने के लिए धन के स्त्रोत क्या है,यह साफ नहीं किया है। हांलाकि 63,300 करोड़ के पूंजी-निवेश और 600 करोड़ पीपीपी से जुटाने की उम्मीद जतार्इ है। लेकिन ये उम्मीदें कितनी फलीफूति होती है,यह तो वक्त आने पर ही पता चलेगा। क्योंकि रेल मंत्री ने जो दावे किए हैं,वे देशव्यापी हैं और उन्हें रेलवे के घाटे में चलते एकाएक पूरा कर लेना आसान नहीं है। तीन कांग्रेस शासित राज्यों के आलावा उत्तर प्रदेश के रायबेली में दूसरी रेलवे कोच फैक्ट्र्री लगाने का ऐलान किया है। बंदरगाहों को रेलवे से जोड़ने के नजरिए से 9000 करोड़ का प्रावधान रखा है। अरूणाचल और मणिपुर को पहली बार रेलवे की संरचना से जोड़ने की बात कही गर्इ है। भगवान परशुराम ने अतातर्इयों को पृथ्वी से नष्ट करने के बाद माणिपुर के जिस पशुराम कुण्ड में अपना रक्त रंजित परशु धोया था,वहां तक रेल के विस्तार का दावा करना अच्छी बात है। इसके साथ ही 750 कीमी नर्इ लाइन बिछाने और 450 किमी छोटी लाइन को बड़ी लाइन में बदलने का प्रस्ताव है। रायबरेली और अमेठी क्षेत्र से गुजरने वाली रेल लाइनों का दोहरी करण भी होगा। ये दोनों सोनिया गांधी और राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र हैं। जाहिर है,पवन बंसल ने अपने अकाओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट की है। छोटी रेल लाइनों का सबसे ज्यादा विस्तार राजस्थान में है और यहां फिलहाल कांग्रेंस की सरकार है। इसलिए कांगे्रसी रेल मंत्री की अनुकंपा बाजिब कही जा सकती है। दरअसल इस प्रस्ताव को नैतीकता के तकाजे पर खरा उतारने के लिए,संभवत राजस्थान ऐसा पहला राज्य होगा,जो इस योजना के अमल के लिए आर्थिक मदद करके पीपीपी को प्रोत्साहित करे ?
रेल मंत्री ने 67 नर्इ तेज गति की रेलगाडि़यां, 27 नर्इ सवारी गाडि़यां, 58 गाडि़यों की दूरी बढ़ाए जाने,और कर्इ गडि़यों की आवृति बढ़ाए जाने के प्रस्ताव भी बजट में रखे हैं। लेकिन ऐसा संभवत पहली बार हुआ है,जब किसी रेल मंत्री ने बजट भाषण पढ़ते हुए,यह उजागर नहीं किया कि नर्इ रेल गाडि़यां किस नगर से किस गंतव्य तक की हैं। शायद ऐसा इसलिए नहीं किया, जिससे संसद में हंगामा खड़ा न हो ? क्योंकि इनमें से ज्यादातर रेंलें काँग्रेस शासित राज्यों के साथ रायबरेली,अमेठी और चडीगढ़ को दी हैं। ऐसा हुआ है तो इसमें कोर्इ हैरानी नहीं होनी चाहिए,क्योंकि काँग्रेस के किसी मंत्री को 18 साल बाद रेल बजट पेश करने का चुनावी वर्ष में अवसर मिला है। ममता,लालू,नीतीश और माधवराव सिंधिया भी इसी परिपाटी पर चले हैं।
इस रेल बजट में आइटी सेक्टर को लाभ पहुंचाने की मंशा भी साफ दिखार्इ देती है। नंदन नीलकेणी के आधार कार्ड को भी इसी साल के अंत से रेलवे से जोड़ दिया जाएगा। यह व्यकित की पहचान के साथ,टिकट आरक्षण की सुविधा का भी आधार बनेगा। मोबार्इल फोन पर र्इ-टिकटिंग की सुविधा भी इसी साल के अंत तक उपभोक्ताओं को हासिल करा दी जाएगी। रेल में इंटरनेट चलाने वालों को वार्इ-फार्इ सुविधा भी मिलेंगी। इंटरनेट से टिकट बुकिंग की सुविधा भी अब 23 घंटे जारी रहेगी। लक्ष्यों की पूर्ति के लिए रेलवे में सवा लाख कर्मचारियों की भर्ती होगी और आर्इआरसीटीसी वेबसाइट को क्षमतावान बनाया जाएगा। इन उपायों से भले ही प्रौधोगिक कंपनीयों को फायदा हो,लेकिन जनता को भी इनके विस्तार की जरूरत है।
विपक्ष ने इसे अमेठी और बरेली का बजट कहकर निराशा व गुस्सा जताया है। जबकि काँग्रेस इसे राश्टीय चरित्र का बजट कहकर आत्ममुग्ध हो रही है। क्योंकि इस वजट में पहली बार रेल से वंचित पूर्वोत्तर राज्यों और उत्तर के दुर्गम कश्मीर क्षेत्र को रेलवे नेर्टवर्क से जोड़ने की घोषणा की गर्इ है। इस घोषणा पर अमल देश की संप्रभुता और अखण्डता के लिहाज से भी जरूरी है। बहरहाल यह बजट न तो चुनाव की दृष्टि से लोक-लुभावन बन पाया है और न ही सस्ती लोकप्रियता से रेलवे को उबारने में कामयाब हो पाया है। इसलिए यह बदलाव का बजट नहीं बन पाया हैं। हां, रेलवे को निजी हाथों में सौंपने के जरुर इस बजट में खुले संकेत हैं।