– पंकज
देश में नक्सलियों, माओवादियों और अलगाववादियों की समस्या से दो चार हो रहे देश के लिए पडोसी चीन और आतंकवाद के लिए स्वर्ग माने जाने वाले पाकिस्तान के बीच कथित सांठगांठ चिंता का विषय बन गयी है लेकिन हमारे देश के रहनुमाओं को इस बात की तनिक भी चिंता नहीं है कि इन खतरों से कैसे निपटा जाये। उन्हें चिंता केवल वोट बैंक की है। वह चाहे देश और मातृभूमि की कीमत पर ही क्यों न हो।
आम लोगों के समक्ष सबसे बडी समस्या जो मुंह बाये खडी है वह महंगाई है। इस पर अंकुश कैसे लगाया जाएगा इस पर नेताओं के बीच कोई चर्चा नहीं होती। इस मुददे पर आरोप प्रत्यारोप के सिवा कोई विचार नहीं किया जाता। देश की जड. को दीमक की तरह चाट कर खोखला करने वाले नक्सलवाद की समस्या से कैसे निपटा जाए इस पर कोई मंथन नहीं होता।
सीमा पर से प्रायोजित अथवा देश के भीतर पनप रहे आतंकवाद से कैसे पार पाना है इसका जिक्र तक नहीं होता है। ऐसा होता भी है तो केवल कागजों में। मीडिया में। कभी हिंदू आतंकवाद, तो कभी भगवा आतंकवाद और कभी इस्लामिक आतंकवाद कह कर सनसनी फैला दिया जाता है। आम लोग आपस में लड. मरते हैं और इन रक्तरंजित शवों के साथ नेता जी की तस्वीर छप जाती है और उनका काम पूरा हो जाता है।
देश के ये रहनुमा किसके लिए नीतियां गढते हैं यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है। मेरे समझ से यह परे है कि जिस देश के चारों तरफ से हमला करने के लिए दुश्मन तैयार बैठा है उस देश के नेताओं को अपने वेतन बढोत्तरी की चिंता अधिक है। वह अपने लिए नौकरशाहों से सिर्फ एक रुपया अधिक की मांग करते हैं और अव्वल तो ये कि संसद में बिना किसी चर्चा के बेतन और भत्ते का विधेयक पारित कर दिया जाता है।
इन बेशर्म रहनुमाओं को यह जवाब देना चाहिए कि सडक पर और फलाइओवरों के नीचे जन्म लेने वाले बच्चों के लिए उनके पास कौन सी नीति है। उन बच्चों की माताओं के लिए वह क्या करते हैं। वातानुकूलित कमरों में बैठ कर मोटा वेतन लेने के लिए जिद करने वाले इन नेताओं के पास चैराहों पर रात गुजारने वाले बच्चों, महिलाओं और अन्य लोगों के लिए क्या व्यवस्था है।
पाक अधिकृत कश्मीर का गिलगित जो कभी हमारा हिस्सा था, पाक सरकार ने भारत के खिलाफ साजिश रचते हुए उसे चीन को दे दिया है। चीन वहां अपनी सेनायें तैनात कर रहा है। अपनी छावनी बना रहा है। चीन और पाक के नापाक इरादों को जान कर भी अंजान बनने की कोशिश की जा रही है। इस बारे में अमेरिका की रिपोर्ट आ रही है और सरकार चुप बैठी है।
देश के आंतरिक हिस्से में भी आतंकवाद है। नक्सलवाद, अलगाववाद, माओवाद और न जाने कौन कौन से वाद। इन सब समस्याओं से जूझते देश को बचाने के लिए इनके पास चर्चा करने का समय नहीं है लेकिन दिल्ली के पाश इलाकों में चौड़ी चौड़ी सडकों के किनारे बने सुविधा संपन्न सरकारी कोठियों में रहने वाले ये नेता अपने परिजनों को मुफत विमान यात्रा कराने पर मेहनत करते रहे हैं।
भारत संघ के सामने इतनी बडी बडी समस्यायें मुंह खोले बैठी है और यहां के नेता एक दूसरे पर आक्षेप करने से नहीं चूकते। सत्ता में आने के लिए ये किसी भी हद तक चले जाने से नहीं चूकत। कुछ लोग बाबरी मस्जिद और राम मंदिर का मुददा उठा कर सत्ता में आने की कवायद करते हैं तो कुछ लोग अनर्गल बयानबाजी कर ऐसा करते हैं।
सबसे अधिक राजनीति राम मंदिर, बाबरी मस्जिद और अयोध्या पर हो रही है। क्या इस देश में मंदिर और मस्जिद इतना जरूरी हो गया है कि उसके पीछे तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति के लिए हर मुददे को भुलाया जा रहा है। इस देश में क्या अब मंदिर और मस्जिद बनाने का ही काम लोगों के पास रह गया है।
देश में पहले से ही कई समस्यायें हैं। इन समस्याओं को दूर करने के लिए कभी चर्चा नहीं की गयी। बहस सिर्फ वेतन बढाने और माननीयों के संबंधियों को मुफ्त विमान यात्रा कराने पर होती रही है। बाबा रामदेव ने एक बार दिल्ली में कहा था कि कैसे चलेगा यह देश। कैसे नेता हैं यहां के जो कभी रिटायर ही नहीं होते। नौकरी करने वाले लोग एक समय में रिटायर हो जाते हैं लेकिन हमारे मुल्क के माननीय चल नहीं पाने की स्थिति में भी रिटायर नहीं होना चाहते हैं। जनसेवा का ऐसा जज्बा किसी भी मुल्क के नेताओं में नहीं जो व्हील चेयर पर बैठ कर और वैशाखी के सहारे चलते हुए भी लोगों की सेवा के लिए तत्पर रहने का दावा करते हैं।
अनाज का भंडार भरा हुआ है। देश में करोडों लोग रात को भूखे पेट सो रहे हैं लेकिन सरकार और सरकार के ओहदेदार तथा रहनुमा कभी जागने को तैयार ही नहीं हैं। उच्चतम न्यायालय ने जगाने की चेष्टा की तो सरकार के मुखिया ने कह दिया कि हमें मत जगाओ हम पहले से जागे हुए हैं।
कैसी विडंबना है कि उच्चतम न्यायालय के आदेशों के बावजूद सरकार भूखों में अन्न बांटने के लिए तैयार नहीं है। बयानबाजी में माहिर पूर्व गृह मंत्री की तरह बयानबाजी करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री ने भी कह दिया था कि इतने बडे देश में लोगों को मुफ्त में अनाज बांटना संभव नहीं है।
देश की समस्याओं से निजात पाने के लिए भी इन रहनुमाओं को एक न एक बार अपने स्वार्थ से उपर उठ कर एक मंच पर आना होगा और उन्हें चीन, पाकिस्तान और आंतरिक आतंकवाद, अलगाववाद, नक्सलवाद, माओवाद की समस्या पर गंभीरता पूर्वक विचार करने के लिए सही दिशा मे प्रयत्न करना होगा तभी देश बचेगा।
पाकिस्तान की मंशा से सभी वाकिफ हैं और चीन की उस मंशा को कभी भुलाया नहीं जा सकता, जिसमें उसके एक रक्षा विशेषज्ञ ने कहा था, भारत से आगे बढने के लिए पडोसी मुल्क को 26 टुकडों में बांटना होगा।
हमें इन बातों को नहीं भूलना चाहिए और आने वाली पीढी को ध्यान में रख कर उनके लिए काम करना चाहिए ताकि हम उन्हें सुरक्षित भारत और बेहतर भविष्य दें सकें।
इतने लंबे समय से नेता भगवा आतंकवाद, केसरिया आतंकवाद, हिंदू आतंकवाद और इस्लामिक आतंकवाद कहते आ रहे थे। मुसलमानों के साथ हमेशा धोखा करने वाली एक पार्टी के महासचिव ने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए और उनका वोट बटोरने के लिए यह कह कर हंगामा खडा करा दिया कि देश को आतकंवादी संगठन लश्कर ए तोयबा से नहीं बल्कि हिंदुओं से खतरा है।
क्या करना है इस आरोप प्रत्यारोप का। लोगों को स्वयं ही समझना होगा। ऐसे भी लोग आरोप प्रत्यारोप की बजाए केवल विकास चाहते हैं। चाहे वह किसी भी वर्ग के लोग क्यों न हों। सभी शांति पूर्वक रहना चाहते हैं। हिंसा कोई नहीं चाहता।
आखिर में एक बात कहना चाहूंगा कि एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने एक बार कहा था कि भारतीय राजनीति में राजनेता कोढ के समान है। इस पर बडी प्रतिक्रिया हुई थी। आज यह बात चरितार्थ हो रही है।
विलक्षण। बहुत ही संवदनशील और मार्मिक कटाक्ष।