प्रेस की स्वतंत्रता पर गहराता संकट

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-रमेश पाण्डेय-
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भारत में अक्सर प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर चर्चा होती रहती है। प्रत्येक वर्ष 3 मई को मनाए जाने वाले विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर भारत में भी प्रेस की स्वतंत्रता पर बातचीत होना लाजिमी है। भारत में प्रेस की स्वतंत्रता भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 में भारतीयों को दिए गए अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार से सुनिश्चित होती है। विश्वस्तर पर प्रेस की आजादी को सम्मान देने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस घोषित किया गया जिसे विश्व प्रेस दिवस के रूप में भी जाना जाता है। यूनेस्को द्वारा 1997 से हर साल 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर गिलेरमो कानो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम प्राइज भी दिया जाता है। यह पुरस्कार उस व्यक्ति अथवा संस्थान को दिया जाता है जिसने प्रेस की स्वतंत्रता के लिए उल्लेखनीय कार्य किया हो। वर्ष 2014 का गिलेरमो कानो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम पुरस्कार तुर्की के अहमत सिक को दिए जाने का निर्णय लिया गया है। 1997 से अब तक भारत के किसी भी पत्रकार को यह पुरस्कार नहीं मिलने की एक बड़ी वजह कई वरिष्ठ पत्रकार पश्चिम और भारत में पत्रकारिता के मानदंडों में अंतर को बताते हैं। ऐसा तर्क दिया जाता है कि भारतीय पत्रकारिता में हमेशा विचार हावी होता है जबकि पश्चिम में तथ्यात्मकता पर जोर दिया जाता है। इससे कहीं न कहीं हमारे पत्रकारिता के स्तर में कमी आती है। इसके अलावा भारतीय पत्रकारों में पुरस्कारों के प्रति जागरुकता की भी कमी है वे इसके लिए प्रयासरत नहीं रहते। इन सब के बीच प्रेस की स्वतंत्रता पर गहराता संकट सबसे विचारणीय बिन्दु बन गया है। आंकड़े बताते हैं कि दक्षिण एशिया में गत वर्ष पत्रकारों को निशाना बनाकर किये गए हमलों में करीब 23 मीडियाकर्मी मारे गए। इसमें से 12 की मौत अकेले भारत में हुई। इंटरनेशनल फेडरेशन जर्नलिस्ट (आईएफजे) की 2013 से अप्रैल 2014 की अवधि के लिए दक्षिण एशिया में प्रेस की स्वतंत्रता पर जारी एक रिपोर्ट में कहा कि इस वर्ष मई तक दक्षिण एशिया में ऐसी 11 और हत्याएं हुई हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे परेशान करने वाला घटनाक्रम पाकिस्तान और भारत दोनों ही जगह निशाना बनाकर किये जाने वाली हिंसा में बढ़ोतरी है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पत्रकारों की हत्या के कई मामले अभी भी अनसुलझे हैं और गत एक वर्ष से पूरे दक्षिण एशिया में दंड मुक्ति एक प्रमुख खतरा बना रहना जारी है। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट द्वारा प्रकाशित 2014 दंड मुक्ति सूची में खुलासा किया गया है कि श्रीलंका, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत क्षेत्र में दंड मुक्ति के मामले में सबसे खराब उल्लंघनकर्ता हैं। इसमें कहा गया है कि श्रीलंका अनसुलझे नौ मामलों के साथ इस सूची में चौथे नम्बर पर, अफगानिस्तान पांच अनसुलझे मामलों के साथ छठे, पाकिस्तान 22 अनसुलझे मामलों के साथ नौंवें और भारत सात अनसुलझे मामलों के साथ 13वें स्थान पर है। रिपोर्ट में भारत पर अध्ययन में कहा गया है कि देश में पत्रकारों के लिए सुरक्षा चिंता का विषय बना हुआ है। इसके साथ ही देश में मीडियाकर्मियों के खिलाफ हिंसा के कई मामलों का उल्लेख किया गया है।

छत्तीसगढ़ के बासगुडा नगर में दिसम्बर 2013 में एक वरिष्ठ पत्रकार की सार्वजनिक स्थान पर हमला करके हत्या कर दी गई। छत्तीसगढ़ में तीन वर्ष की अवधि में यह पांचवें पत्रकार की हत्या थी। रिपोर्ट में मुजफ्फरनगर में 2013 में भीड द्वारा की गई हिंसा में न्यूज कैमरामैन और फ्रीलांसर की मौतों का भी उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट में उस 22 वर्षीय फोटो पत्रकार के मामले का भी उल्लेख किया गया है जिस पर अगस्त 2013 में हमला करके उससे सामूहिक बलात्कार किया गया था। इसमें कहा गया है कि कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध एवं निवारण) कानून 2013 कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए शिकायत निवारण प्रणाली होना आवश्यक बनाता है लेकिन कुछ ही मीडिया घरानों ने इसका पालन किया है। इस रिपोर्ट में उन कुछ मामलों का भी उल्लेख किया गया है जिसमें समाचार संगठनों ने वरिष्ठ पत्रकारों को हटाया। तहलका डाट काम के प्रधान संपादक तरुण तेजपाल ने जिस तरह से एक सहकर्मी के साथ यौन उत्पीड़न किया। राज्यसभा टीवी की एंकर अमृता राय और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के बीच के अनैतिक रिश्तों का खुलासा होने तथा पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार और केन्द्रीय मंत्री व कांग्रेस नेता शशि थरूर के बीच कं संबंधों को लेकर उठे विवाद ने भी प्रेस की गरिमा को प्रभावित करने का काम किया है। इन सभी बिन्दुओं पर प्रेस के जिम्मेदार साथियों के साथ ही शासन तंत्र को गंभीरता से विचार किए जाने की जरूरत है।

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