प्रदूषित आबोहवा से गौरेया के अस्तित्व पर संकट

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गौरेया
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गौरेया

सूरज का उजास फैलने की खबर देने और शाम को अंधियारे के दस्तक देने तक
इंसानों के साथ रहने वाली गौरेया लगता है रूठ गयी है।आज कहां चली जा रही
हैं ये गौरैया? हमारे आंगन, घरेलू बगीचे, रोशनदान, खपरैलों के कोनों को
अचानक छोड़ क्यों रही हैं गौरैया? ऐसा क्या हो गया है हमारे चारों ओर कि
हमें पूरी दुनिया में विश्व गौरैया दिवस मनाने की जरूरत पड़ गई? हमें आज
गौरैया बचाओ अभियान चलाने पड़ रहे हैं? इन सभी सवालों पर हम सभी को मंथन
करने की जरूरत है।उन कारणों को खोजने की जरूरत है जिनके चलते आज हमारी
सबसे प्रिय और पारिवारिक चिड़िया गौरैया हमसे दूर हो रही है। शायद उसको भी
हमारा यह प्रकृतिक अधाधुंध दोहन और जहरीली गैसों से भरा माहौल पसंद नहीं
आ रहा है।रूठी गौरैया के आंगन से दूर होने के पीछे सबसे बड़ा कारण पेड़
पौधों का कटना और हरियाली की कमी है। बढ़ते हुये शहरीकरण और कंक्रीट के
जंगल ने गौरैया के रहने की जगह छीननी शुरू कर दी है। आज लोगों के आंगन
में, घरों के आस-पास ऐसे घने पेड़ पौधे नहीं हैं जिन पर यह चिड़िया अपना
आशियाना बना सके इस लिये न पेड़ बचे और न उन पर निर्भर छोटे-छोटे
पक्षी।वहीं घरों में रोशनदान, खिड़कियों या छतों की खाली जगह को कूलर और
विण्डो एसी ने ले लिया जिस ने गौरैया के जीवन को और भी खतरे में डाल दिया
है।कोई ऐसी सुरक्षित जगहें नही बची हैं जहां चिलचिलाती धूप से बचने या
भोजन की खोज में गौरैया जा सके ।छोटे शहरों और कस्बों में पहले घरों के
आंगन में, बाहर दरवाजे के पास अनाज सूखने के लिये फ़ैलाये जाते थे,
महिलायें भी आंगन में अनाज फ़टकती थीं। इन्हीं में से गौरैया अपना आहार
खोज कर पेट भरती थी लेकिन नये जमाने के वैकल्पिबक फ़ास्ट फ़ूड और रेडीमेड
अनाज के बढ़ते चलन ने उसका यह हक भी छीन लिया । शहरों में बिजली,टेलीफोन
के तारों का मकड़जाल और मोबाइल टावरों की बढ़ती संख्या ने भी गौरैया के
लिये खतरा उत्पन्न किया है।जानकारों का कहना है कि मोबाइल टावरों के
रेडियेशन से गौरैयों की दिशासूचक प्रणाली और प्रजनन क्षमता दोंनों ही
प्रभावित हो रहे है।
गांव की किसानी संस्कृति में गौरैया
की चहचहाहट इतने गहरे तक समायी है कि उसके बिना ग्राम्य जनजीवन अब
अधूरा-सा नजर आता है। गांव देहात में मौसम की भविष्यवाणी उनके व्यवहार को
देखकर ही की जाती रही है।खेतिहर जीवन में रची-बसी गौरैया की चीं चीं की
लुप्त होती विरासत के बहाने कुछ सवाल के जवाब तलाशे जाने की अब जरूरत
महसूस की जा रही है । अब गौरैया भारत का सबसे संकटग्रस्त पक्षी है।गौरैया
का कम होना एक तरह का इशारा है कि हमारी आबोहवा, हमारे भोजन और हमारी
ज़मीन में कितना प्रदूषण फैल गया है। कीटनाशकों का पक्षियों पर क्या असर
है, ये ग्रामीण इलाक़ों में मोरों के मरने की आये दिन आने वाली ख़बरें
बताती हैं । लेकिन अंदेखाी के चलते गौरेया कभी भी ऐसी बड़ी ख़बर बन
पाती।ये सही है कि जंगलों को उजाड़ कर जो कंकरीटों का जाल बिछाया गया है
उससे ज़रूर शहरों के सौन्दर्य में चार-चांद लग गए हों, लेकिन ये भी कटु
सत्य है कि विकास के इस स्वरूप की हमने कई मायनों मे बड़ी कीमत भी चुकायी
है । दो दशक पीछे अगर हम चलें तो ये बांतें एक दम साबित हो जाती हैं जब
गौरेया के कलरव या फिर कोवे के कांव-कांव सुनकर लोग अपना बिस्तर छोड़
देते थे। अब उन आवाजों वा चहचाहट की जगह मोबाईल की टोन ने ले ली है।आखिर
क्यों, क्योंकि उनकी चहचाहट हम-आपने छीन ली है। बात केवल गौरया की ही
नहीं है,अब न तो कौवे दिखाई देते हैं न ही घरों की मुंडेरों पर गौरया की
सहेली मैना ही दिखती है।कोयल की कू- कू भी कानों को सुनाई नही पड़ती
है।यही नही तोते की मधुर सीटी की आवाजें भी गायब हो चुकी हैं।आखिर यह सब
क्यों, इसीलिए न कि हम सब प्रकृति से खुलकर खिलवाड़ जो करने लगे हैं इसका
फल भी तो हमें आप को ही भुगतना पड़ेगा। यह समस्या केवल भारत कि ही नहीं
बल्कि पूरे विश्व की है।
गौरेया मे प्राकृतिक आपदा का पूर्वानुमान लगा लने
की भी छमता है। जानकार बताते हैं कि अगर किसी गांव में महामारी या बीमारी
फैलने वाली होती है तो गौरेया पहले ही वह गांव छोड़ देती है। इससे लोग
पहले अनुमान लगा लेते थे कि कुछ अनहोनी होने वाली है। गौरेया मौसम का भी
पूर्वानुमान लगा लेने में भी सक्षम मानी जाती है। कहते हैं कि अगर गौरेया
धूल में नहाए तो समझिए रिमझिम बारिश होने वाली है। गौरेया प्रेम और वियोग
दोनों की प्रतीक है। अकेली गौरेया जहां अकेलापन व विशाद की प्रतीक है
वहीं समूह या जोड़े में गौरेया सक्रियता और चंचलता की प्रतीक हैं।कहा जाता
है कि विदेशों में गौरेया का टैटू बनवाने का प्रचलन है। यह असीमित प्रेम,
किसी एक के प्रति समर्पण और त्याग का भी प्रतीक है।गौरेया के जीवन की
बारीकी से पड़ताल करने वालों का तो यहां तक कहना है कि रूस और इंग्लैंड
में कैदी छूटने वाले दिन अपने कलाइयों पर गौरेया का टैटू बनवाते हैं।
माना जाता है कि यह टैटू उनको सही राह पर चलने का संदेश देता रहता। इसाई
धर्म में गौरेया पक्षी को दिव्य माना जाता है। पक्षी विज्ञानियों के
मुताबिक गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। यदि इसके
संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास की
चीज बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले।ब्रिटेन की
रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न
हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया
को रेड लिस्ट’ में डाला है। ब्रिटेन, इटली, फ़्राँस, जर्मनी और चेक
गणराज्य जैसे देशों में इनकी संख्या जहाँ तेज़ी से गिर रही है, तो
नीदरलैंड में तो इन्हें दुर्लभ प्रजाति के वर्ग में रखा गया है।आंध्र
विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक भारत मे गौरैया की आबादी
में करीब 60 फीसदी की कमी आई है। यह ह्रास ग्रामीण और शहरी दोनों ही
क्षेत्रों में हुआ है। भरतपुर स्थित केवलादेव घना पक्षी विहार में भी कभी
देसी चिड़ियों का बसेरा था। मगर आज इस उद्यान में देसी चिड़ियों की
संख्या न के बराबर रह गई है। हरियाणा में गुड़गांव स्थित सुल्तानपुर झील
और झज्जर स्थित भिंडावास झील परिसर में भी कई साल से घरेलू चिड़ियां नहीं
देखी गयीं हैं।
इसका वैज्ञानिक नाम फ्रिजिला डोमेस्टिका
है और घरों में रहने वाली 17 प्रजातियों सहीत कुल 26 प्रजातियां इनकी
बतायी जाती हैं।पूरी दुनिया भर में फ़ुदकने वाली यह चिड़िया एशिया और यूरोप
के मध्य क्षेत्र में ज्यादा पाई जाती है। हमारी सभ्यता के विकास के साथ
ही यह चिड़िया संसार के बाकी हिस्सों उत्तरी दक्षिणी अमेरिका, दक्षिणी
अफ़्रीका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड में भी पहुंच गयी। यह बहुत बुद्धिमान
और संवेदनशील पक्षी है। बताया जाता है कि गौरेया पासेराडेई परिवार की
सदस्य है, लेकिन कुछ लोग इसे वीवर फिंच परिवार की सदस्य भी मानते हैं।
इनकी लम्बाई 14 से 16 सेंटीमीटर होती है तथा इनका वजन 25 से 32 ग्राम तक
होता है। एक समय में इसके कम से कम तीन बच्चे होते हैं। गौरेया अधिकतर
झुंड में ही रहती है। भोजन तलाशने के लिए गौरेया का एक झुंड अधिकतर दो
मील की दूरी तय करता है। यह पक्षी कूड़े में भी अपना भोजन ढूंढ़ लेते
हैं।बहरहाल गौरैया की कमी तो सबने महसूस की है लेकिन गौरैया को बचाने के
लिए बहुत कम लोग आगे आए हैं। इस दिशा मे उत्तर प्रदेश सरकार और मुख्य
मंत्री अखिलेश यादव ने भी दिलचस्पीग दिखयी है ।विलुप्तत होते सारस को
बचाने के सरकारी प्रयास शुरू करा कर वह अपना पक्षीं प्रेम दिखा चुकें हैं
।यूपी सरकार ने गौरैयों का घर बसाने और इनकी संख्या बढ़ाने का निर्णय
लिया है।समूचे प्रदेश मे बड़े पैमाने पर बर्ड नेस्ट का वितरण किया गया है
।गौरैया के संरक्षण के लिए वन विभाग को प्रदेश स्तर पर अभियान चलाने के
निर्देश दिए गयें हैं ।इसके पहले साल 2012 मे दिल्ली मे गौरेया बचाने की
मुहिम शुरू की गयी थी और इसे दिल्ली के ‘राज पक्षी’ का दर्जा भी दिया गया
था।कुछ व्यदक्ति गत प्रयास भी हुयें हैं जैसे महाराष्ट्र के नासिक के
मोहम्मद दिलावर,वह पर्यावरण विज्ञानी हैं और लम्बे समय से बॉम्बे नैचुरल
हिस्ट्री सोसायटी से जुड़े हुए हैं।उन्होमने साल 2008 में गौरैया को
बचाने की मुहिम शुरू की और आज गौरेया को बचाने की उनकी मुहिम अब 50 देशों
तक पहुंच गई है।सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद मोहम्मद ई दिलावर जैसे लोगों के
प्रयासों से आज दुनिया भर में 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मानाया जाता
है, ताकि लोग इस पक्षी के संरक्षण के प्रति जागरूक हो सकें। विश्व गौरैया
दिवसपहली बार वर्ष 2010 में मनाया गया था।दिलावर द्वारा शुरू की गई पहल
पर ही आज बहुत से लोग गौरैया बचाने की कोशिशों में जुट रहे हैं।हमें और
आप को भी अपनी इस सदियों पुराने दोस्ता को अपने घर –आंगन मे वापस बुलाने
के लिये दिल से प्रयास करने होगें।हम अपने घर के आस-पास घने छायादार पेड़
लगायें ताकि गौरैया या अन्य पक्षी उस पर अपना घोसला बना सकें।सम्भव हो तो
घर के आंगन या बरामदों में मिट्टी का कोई बर्तन रखकर उसमें रोज साफ पानी
डालें जिससे यह घरेलू पक्षी अपनी प्यास बुझा सके। वहीं पर थोड़ा अनाज के
दानें बिखेर दें जिससे इस तरह के घरेलू पक्षियों को कुछ आहार भी मिलेगा।
बरामदे या किसी पेड़ पर किसी पतली छड़ी या तार से आप इसके बैठने का अड्डा
भी बना सकते हैं।देश की राज्य सरकारों को भी सार्थक प्रयास करने चाहिये
वास्‍तव मे अगर ऐसा असल मे हो जाये तो हमारे और आपके यहां फिर से गौरेया
फुदकती दिख सकती है।
** शाहिद नकवी

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