पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-18

राकेश कुमार आर्य

वेद की बोलें ऋचाएं सत्य को धारण करें

गतांक से आगे….

मंत्र का अगला शब्द है-‘इंद्र’। इंद्र को हमारे वीरता और ऐश्वर्य का अर्थात समृद्घि का प्रतीक माना गया है। राजा का कत्र्तव्य है कि वह देश की प्रजा को वीर तथा ऐश्वर्यशाली बनाये। वीर्य रक्षा से वीर संतति का निर्माण होता है। राष्ट्र रक्षा के लिए बलवान, सभ्य और योद्घा पुत्रों की आवश्यकता अनुभव की जाती है। वह तभी संभव है, जब देश का राजा इंद्र, जैसा वीर तथा पराक्रमी हो क्योंकि देश की प्रजा अपने राजा का ही अनुकरण किया करती है। इसलिए विद्यालयों के पाठ्यक्रम में ब्रह्मचर्य रक्षा के सूत्रों को पढ़ाने की व्यवस्था राजा को करनी चाहिए। ‘ऊध्र्वरेता’ ब्रह्मचारियों का निर्माण जब तक हमारे विद्यालय करना आरंभ नही करेंगे, तब तक राष्ट्र में नारी का सम्मान हो पाना असंभव है। फिल्मों के माध्यम से अश्लीलता के प्रस्तुतीकरण से और फिल्मी हीरो-हीरोइनों के अश्लील प्रदर्शनों को प्रोत्साहित करने से देश में वीर संतति अर्थात बलवान सभ्य और योद्घा यजमान पुत्रों का निर्माण होना बाधित हो गया है। कारण कि हमने सत्य से मुंह फेर लिया है-वेदधर्म से, वेद ऋचाओं द्वारा प्रतिपादित धर्म व्यवस्था से हमने अपने आपको दूर कर लिया है।

राजा के लिए बृह्स्पति के समान होने की बात भी वेद मंत्र कहता है। बृहस्पति का आभामंडल एक अद्भुत प्रकाश के आवरण से आच्छादित होता है। यह प्रकाश बृहस्पति का ज्ञान प्रकाश है। जो उसे सबसे अलग और सर्वोत्तम बनाता है। इस प्रकार बृहस्पति का अभिप्राय है-ज्ञान में सर्वोत्तम होना महामेधा -संपन्न होना। राजा को या राष्ट्रपति को हमारे सम्मुख अपने ज्ञान का प्रकाश करते रहना चाहिए। वह किसी के लिखे हुए भाषण को पढऩे वाली कठपुतली ना हो, अपितु हरक्षेत्र का और हर विषय का वह गंभीर ज्ञान रखने वाला हो, उसके ज्ञान की गहराई उसकी योग्यता हो। इस योग्यता के कारण देश के लोग उसका स्वभावत: अनुकरण करने वाले हों। ऐसा शासन प्रमुख ही देश को सही मार्ग दिखा सकता है। राजा को चाहिए कि वह राष्ट्र में सत्यधर्म की वृद्घि के लिए और न्याय की रक्षा के लिए लोगों में ज्ञानवृद्घि करता रहे। बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों का निर्माण कराये, कौशल-विकास के लिए विभिन्न शोध संस्थान स्थापित करे, और विद्वत्मंडल का निर्माण करे-जिससे कि विद्वानों को गंभीर विषयों पर शास्त्रार्थ करते रहने का अवसर मिले और देश के ज्ञान-विज्ञान की सुरक्षा किया जाना संभव हो सके। राजा स्वयं किसी प्रकार के पाखण्ड या अंधविश्वास में आस्था रखने वाला न हो।

अब आते हैं ‘वरूण’ पर। वरूण दण्डशक्ति का प्रतीक है। राजा को राज्य में प्रजाजनों के शांतिपूर्ण जीवन व्यवहार में किसी भी आतंकी या उग्रवादी के प्रति न्याय करते समय किसी प्रकार का साम्प्रदायिक भेदभाव नही करना चाहिए। उसे आतंकवाद की एक निश्चित परिभाषा स्थापित करनी चाहिए। उस निश्चित की गयी परिभाषा के अनुसार अपने कठोर दण्डविधान का निर्माण करे और उस विधान का उल्लंघन करने वाले को कठोर दण्ड प्रदान करे। राजा को राज्य की मुख्यधारा में विघ्न डालने वाले हर व्यक्ति या व्यक्ति समूहों (उग्रवादी संगठनों) के प्रति कठोरता का व्यवहार करना चाहिए। उसे अपराधियों को यथायोग्य दण्ड देने में किसी प्रकार का संकोच या भय प्रदर्शित नही करना चाहिए।

Previous articleशंघाई के अखाड़े में भारत-पाक
Next articleयह आंदोलन , वह आंदोलन  ….!!
राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here