पंजाब सरकार के गले की फांस बनी कृषि ऋण माफ़ी योजना

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पंजाब विधान सभा चुनावों में सभी पार्टियों ने अपने अपने लुभावने वायदे जनता के बीच परोसे थे ,परन्तु कामयाबी कांग्रेस को ही मिली,  चाहे इसके लिए उसे कोई भी घोषणा क्यों ना करनी पड़ी हो . उसने किसानों की कर्जा माफ़ी की घोषणा करी , तो युवाओं के लिए फ्री स्मार्ट फ़ोन देने का वायदा भी . और इन लुभावने नारों के बीच चुनाव  जीत भी गए . परन्तु अब यही वायदे उसके गले की फांस बन गए हैं .सरकार के पास न तो खजाने में इसके लिए पैसे हैं , न बजट में इसका पर्याप्त  प्रावधान और न ही कोई सरप्लस संसाधन . नई कांग्रेस सरकार  द्वारा पारित पंजाब के वितीय वर्ष २०१७-१८ के बजट पर एक नज़र डालें तो स्थिति स्वतः ही स्पष्ट हो जाती है . सरकार का कुल बजट १.१८ लाख करोड़ रूपए का है ,मगर उस पर इस वित्तीय वर्ष तक का बकाया  कर्जा आंकलन १.९५ लाख करोड़ रूपए  का है . सरकार का इस वर्ष का बजट में आंकलित वित्तीय  घाटा १४७८४ करोड़ रूपए है ,जो गत वर्ष के घाटे रूपए ११३६२ करोड़ से ३४२२ करोड़ अधिक है . सरकार ने अपने किसान कर्ज माफ़ी नारे को फलीभूत करने हेतु मात्र १५०० करोड़ रूपए का प्रावधान किया है , जबकि सरकार द्वारा तोड़ मरोड़ करने के बावजूद अभी तक के आंकलन के अनुसार माफ़ी योग्य यह राशी लगभग ९५०० करोड़ रूपए बैठ रही है, जो बजट प्रावधान से आठ हज़ार करोड़ रुपये  ज्यादा है  . वैसे तो किसानों के बीस हज़ार ऋण खातों में ऋण राशी बकाया ५९६२० करोड़ रूपए है .  पहले से ही खुद कर्जे में दबी और  हाथ में  घाटे का बजट लिए पंजाब सरकार कैसे करेगी किसानों के कर्जे माफ़ ? भाजपा की  केंद्र सरकार  तो बिलकुल भी नहीं चाहेगी कि प्रदेश की कांग्रेसी सरकार अपना चुनावी वायदा निभा पाए . बल्कि वो तो यही चाहेगी कि पंजाब  सरकार किसी भी तरह असफल हो और २०१९ के लोकसभा चुनावों में इसे कांग्रेस की विफलता और वादाखिलाफी का मुद्दा बनाकर भाजपा तथा अकाली गठबंधन अपनी जीत का मार्ग प्रशस्त कर सके . केंद्र सरकार का रूख तो केन्द्रीय वित्त मंत्री पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं . जब महाराष्ट्र सरकार ने किसान ऋण माफ़ी की घोषणा की थी उसी दिन केन्द्रीय  वित्त मंत्री अरुण जेतली ने साफ़ कर दिया था कि जो राज्य सरकारें ऋण माफ़ी  की घोषणायें कर रही हैं वे इसके लिए अपने संसाधन स्वयं जुटाएं . केंद्र सरकार इसमें उनकी कोई मदद नहीं करेगी . पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल भी स्वीकारते हैं कि मुझे नहीं लगता कि केंद्र सरकार कोई रियायत देगी . हो सकता है कि आगामी २०१९ के लोक सभा चुनावों को देखते हुए केंद्र सरकार कोई फैसला कर ले , परन्तु वर्तमान किसान कर्जा माफ़ी  योजना तो केवल पंजाब सरकार की है .

अब पंजाब सरकार के सामने केवल एक ही चारा है कि वो कहीं से भी ९५०० करोड़ रूपए का प्रबंध अपने स्तर पर ही  करे . ऋण ले तो किस से ले ? कर्जा उतारने के लिए कौन देगा कर्जा ? इसी असमंजस में फंसी है पंजाब सरकार .प्रान्त के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल कहते हैं कि पंजाब सरकार मंडी बोर्ड व आर डी एफ जैसे संस्थानों के जरिये लोन जुटाकर किसानों का यह कर्जा निपटाएगी . बादल कहते हैं कि सरकार ने किसानों से जो ऋण माफ़ी का वायदा किया है वह उसे जरूर निभाएगी . सूबे के मुख्यमंत्री ने बड़े जमींदारों से सरकार द्वारा किसानों को दी जा रही बिजली पर सब्सिडी को त्यागने की अपील की है .उल्लेखनिए है कि वर्ष २०१७-१८ के लिए १०२५५ करोड़ रूपए की पॉवर सब्सिडी का प्रावधान किया गया है . सरकार को आशा है कि बड़े जमींदारों द्वारा छोड़ी जाने वाली इस सब्सिडी से भी सरकार को कुछ राहत मिलेगी .

जुलाई माह के अंतिम सप्ताह  में राज्य के वित्त मंत्री ने अपने अफसरानों  सहित  मुंबई में नाबार्ड तथा आरबीआई के अफसरों से  मुलाक़ात की है ,जिसमे डाटा शेयरिंग , वन टाइम सेटलमेंट आदि पर बात चीत की गयी है . सरकार ने कुछ अन्य राहतें  भी चाही हैं  . कोआपरेटिव बैंकों के ३६०० करोड़ रूपए के ऋण को चुकाने के लिए एग्रीकल्चर काउंसिल से ऋण लेने के लिए आर बी आई से स्वीकृति मांगी गयी है . नाबार्ड का लोन चुकाने की अवधि को भी बढाने हेतु निवेदन किया गया है  , क्योंकि सरकार की माफ़ी घोषणा के कारण बैंकों की रिकवरी कम हो पाई है .

 

क्या है कर्जा माफ़ी घोषणा ?

कांग्रेस ने अपने २०१७ के विधान सभा चुनावी वायदे में कहा था कि यदि वह सत्ता में आती है तो किसानों के कर्जे माफ़ किये जायेंगे .  अब सरकार ने अपने बजट  भाषण में कहा है  कि छोटे व सीमांत किसानों , जिनकी जोत भूमि पांच एकड़ तक है , के दो लाख रूपए तक के फसली ऋण माफ़ किये जायेंगे . इस घोषणा से लगभग १०.२५ लाख किसानों को लाभ मिलेगा . परन्तु बजट में इस ऋण माफ़ी हेतु किये गए प्रावधान १५०० करोड़ रुपये की जगह अब यह राशी लगभग ९५००  करोड़ रुपये बैठ रही है .   देश में उत्तर प्रदेश तथा महाराष्ट्र  के बाद हाल ही  में  ऋण माफ़ी करने वाला पंजाब तीसरा प्रदेश है . उत्तर प्रदेश ने अप्रैल , २०१७ में  ३६३५९ करोड़ रूपए तथा महाराष्ट्र ने ३०५०० करोड़ रूपए की ऋण राहत किसानों के लिए घोषित की  थी . सरकार को लगता है कि कई किसानों ने अलग अलग बैंकों से फसली ऋण उठा रखे हैं , और सरकार एक किसान को अधिकतम दो लाख रूपए की ही माफ़ी देना चाहती है ,कहीं एक किसान अलग अलग सभी बैंकों में दो लाख रुपये प्रत्येक बैंक के हिसाब से ऋण राहत का नाजायज फायदा न उठा ले , इस डुप्लीकेसी को रोकने के लिए बैंकों से आग्रह किया है कि वे किसानों के ऋण खातों में आधार कार्ड अवश्य जोड़ दें . इस ऋण माफ़ी योजना के ‘नोर्म्स एण्ड मोडेलिटी’ तय करने एवं अन्य सुझाव देने  हेतु राज्य सरकार ने कृषि अर्थशास्त्री टी . हक  की अध्यक्षता में एक समिति का गठन भी किया है जो शीघ्र ही अपनी रिपोर्ट देगी .

 

अवरुद्ध हो गयी है बैंकों की वसूली

उधर बैंक किसानों पर दवाब बना रहे हैं कि कर्जे की वसूली दें .किसान सरकार की तरफ नज़रें गड़ाये बैठे हैं . इस चक्कर में बैंकों की वसूली अटक कर रही गयी है . माफ़ी की इस आस में सरकारी व प्राइवेट बैंकों का एन पी ए बढ़ता जा रहा है . पंजाब स्टेट लेवल बैंकर्स समिति के मुताबिक  ३१ मार्च ,२०१७ तक बैंकों ने ३१.२९ लाख खातों में से ११.६८ लाख खातों में ४९४० करोड़ रूपए की कर्जा राशी नॉन परफोर्मिंग एसेट ( एन पी ए ) घोषित की  है . बैंकों के साथ समस्या यह उठ खड़ी हुई है कि इस कर्जे माफ़ी घोषणा से अन्य किसान, जो वर्तमान योजना में नहीं आते हैं , वे  भी बैंकों की वसूली नहीं दे रहे हैं . जहाँ  मार्च ,  २०१६ की कृषि ऋणों की वसूली ८७.८८ प्रतिशत थी , जो अब मार्च ,२०१७ को १०.७६ प्रतिशत घटकर ७७.१२ प्रतिशत रह गयी है .  प्रान्त के कुछ बैंकों की वसूली तो दयनीय स्थिति में पहुँच गयी है , यथा –सिंडिकेट बैंक ( १.७७ %) , एक्सिस बैंक ( १.२३ % ) तथा देना बैंक ( १.३४ % ) . हालाँकि इस प्रकार की माफ़ी घोषणाओं का सबसे ज्यादा असर स्टेट कोआपरेटिव बैंकों पर ही पड़ता है, परन्तु आश्चर्य की बात है कि  पंजाब के कोआपरेटिव बैंक अपनी वसूली ७७.८७ % दर्शा रहे हैं .

क्या कर्जा राहत ही सही हल है ?

विभिन्न राजनैतिक पार्टियों ने किसानों की पीठ पर सवार होकर चुनाव वैतरणी पार करने हेतु समय समय पर ऋण माफ़ी के झांसे भी दिए हैं और ऋण माफ़ी  की भी  है . १९९० में किसान नेता  चौधरी देवीलाल के उप प्रधानमंत्रीत्व काल में कृषि ऋणों में  माफ़ी दी गयी थी . बाद में एक  एक अन्य कृषि ऋण राहत योजना के तहत कांग्रेस सरकार ने २००८ में लगभग ७६ हज़ार करोड़ की किसानों को राहत दी थी . परन्तु क्या इन राहतों से किसानों की स्थिति बदली ? प्रश्न वहीँ खड़ा है , किसान आज फिर राहत यानि माफ़ी के लिए संघर्ष कर रहा है . आखिर कब तक माफ़ी का लालीपोप किसानों को दिया जाता रहेगा ? कब तक किसान कर्ज से दबकर आत्महत्या जैसे निष्ठुर कदम उठाने को विवश होता रहेगा ? क्या किसान को इस संकट से बाहर निकालने का कोई स्थाई समाधान सरकारों के पास नहीं है या राजनैतिक पार्टियों को  किसान की यही स्थिति रास आ रही है ? प्रश्न जवाब तो मांगते हैं , पर कौन देगा इनके जवाब और कब ?

किसान यूनियनों के प्रतिनिधि पंजाब की इस ऋण राहत योजना को अपर्याप्त एवं गुमराह करने वाली बताते हैं .

पंजाब की कर्जा माफ़ी योजना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अखिल भारतीय किसान सभा  की पड़ौसी राज्य हरियाणा इकाई के प्रदेश कार्यालय  सचिव डॉ बलबीर सिंह कहते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर १५० से अधिक किसान संगठनों ने भूमि अधिकार आन्दोलन का गठन किया है . अखिल भारतीय किसान सभा इसका एक  मुख्य घटक है . मुख्य मांग किसानों की कर्जा मुक्ति व  राष्ट्रीय किसान आयोग रिपोर्ट लागू कर सभी फसलों के लागत मूल्य तय कर , उस पर ५० % मुनाफा तय कर , सभी फसलों की सरकारी खरीद सुनिश्चित करें . हरियाणा में हिसार , रोहतक , गुडगाँव  व करनाल आयुक्त कार्यालयों का घेराव चल रहा है और ३ से ६ अक्तूबर  तक हरियाणा के ही हिसार में उत्तर प्रदेश , महाराष्ट्र तथा पंजाब सरकारों द्वारा घोषित की गयी आधी अधूरी कर्जा माफ़ी योजनाओं तथा किसानों की अन्य समस्याओं पर विचार विमर्श  करने हेतु अखिल भारतीय किसान सभा का एक राष्ट्रीय सम्मलेन होगा , जिसमे देश भर से लगभग एक हज़ार डेलिगेट हिस्सा लेंगे .

भारतीय किसान यूनियन ( डाकोंदा  ), पंजाब  के प्रवक्ता डॉ दर्शन पाल कहते हैं कि कांग्रेस ने अपने चुनावी वायदे में कहा था कि किसानों के सभी प्रकार के सारे ऋण माफ किये जायेंगे , परन्तु अब अपने वायदे से मुकर कर केवल पांच एकड़ तक वाले किसानों के  दो लाख रुपये तक के केवल फसली ऋण माफ करने की  घोषणा  कर रहे हैं . वे कांग्रेस पर  किसानों को गुमराह कर  वोट लेने का आरोप लगाते हैं . अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं राजस्थान से विधायक  अमरा  राम कहते हैं कि जब तक पूर्ण कर्जा माफ़ी करके  स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागु कर किसान को लाभकारी मूल्य नहीं दिया जायेगा और खेती को लाभ दायक व्यवसाय नहीं बनाया जायेगा, किसान यों ही कर्जे के नीचे दबता रहेगा . इस प्रकार की अपूर्ण कर्जा माफ़ी योजनायें तात्कालिक राहत तो पहुंचा सकती हैं , परन्तु किसान की समस्या  का कोई स्थाई समाधान नहीं दे सकती .

 

क्या पंजाब की कर्जा माफ़ी योजना सही एवं पर्याप्त है ?

पर्याप्त कैसे हो सकती है ?  १५०० करोड़ के बजट प्रावधान से पंजाब के किसानों  को कैसे कर्जा मुक्त किया जा सकता है ? सरकार किसानों को पूर्णतया कर्जा मुक्त करे .चुनाव घोषणा पत्र में किसानो के सारे कर्जे माफ़ करने की बात कही थी ,फिर वे अब क्यों मुकर रहे हैं . चाहे कांग्रेस हो चाहे भाजपा कोई भी पार्टी किसान हित नहीं कर सकती . भाजपा ने भी लोकसभा चुनाव से पहले स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागु करने की बात कही थी और अब उसी भाजपा की सरकार सुप्रीम कोर्ट में इसे लागु करने से नकार रही है . किसानों के साथ मजाक किया जा रहा है .

कैसे उबरेगा किसान ?

सरकार की नीयत में ही खोट है , सभी सरकारें किसान को दबा हुआ ही रखना चाहती हैं ,उनको यही स्थिति रास आती है .हाथी के दांत खाने के और हैं दिखाने के और . राजनेता , अधिकारी और बड़ी कंपनियां  मालामाल हो रही हैं तथा लाचार किसान बेहाल हो रहा है . चारों तरफ किसान को लूटा जा रहा है . फसल बिजाई के  समय जब किसान बाज़ार से बीज विक्रेता से बीज खरीदता है तो चने का बीज उसे बारह हज़ार रूपए प्रति क्विंटल मिलता है और जब किसान अपनी फसल बाज़ार में बेचने जाता है तो उसे तीन से चार हज़ार रूपए प्रति क्विंटल बेचना  पड़ता है . जब किसान टमाटर मंडी  में लाता है तो उसे दो रुपये किलो का भाव मिलता है , परन्तु जब वही टमाटर आढ़तियों , व्यापारियों व स्टॉक धारियों के पारस हाथों  से गुजर कर वापस बाज़ार में बिकने आता है तो वह  सोने का हो जाता है और आम क्रेता , जिसमें किसान भी शामिल है , को नब्बे से सौ रूपए प्रति किलो के भाव से खरीदना पड़ता है . यह सब सरकार की पूंजीपति पोषक  पालिसी का फल है .

तुरंत स्वामीनाथन आयोग की  रिपोर्ट लागु हो , किसान को उसकी फसल की  उत्पादन लागत का डेढ़ सौ प्रतिशत मूल्य मिले और सरकार सारी  फसल इस मूल्य पर खरीदना सुनिश्चित करे . खेती को लाभकारी व्यवसाय बनाया जाए . जब तक देश  का किसान खुशहाल नहीं होगा देश कैसे खुशहाल हो सकता है ? अन्न दाता बचेगा तो ही देश बचेगा .

किसान हित के लिए किसान यूनियन क्या कर रही हैं ?

मंदसौर घटना के बाद किसान खुद संघर्ष के लिए खड़ा हुआ है , देश की सभी प्रमुख किसान यूनियन इकठ्ठी होकर आगे आई हैं . सरकार पर किसान विरोधी नीतियाँ बदलने के लिए दवाब बनाया जायेगा . संघर्ष करना पड़ेगा  , परन्तु निश्चित ही कोई रास्ता निकलेगा .

डॉ दर्शन पाल कहते हैं कि कांग्रेस ने अपने चुनावी वायदे में तो किसानों के सभी प्रकार के कर्जे माफ़ करने की बात कही थी . यहाँ तक कि  वे साहूकारों से भी ऋण मुक्ति की बात करते थे ,परन्तु सत्ता मिलते ही उन्होंने पैंतरे बदल लिए हैं . साहूकारों के कर्जे की बात तो दूर अब वे किसानों के बैंकों से लिए गए कृषि ऋणों की बात से भी कन्नी काट रहे हैं , अब केवल फसली ऋण माफ़ी की बात हो रही है . उसमे भी किन्तु परन्तु किया जा रहा है . फसली ऋण माफ़ी के दायरे में भी पांच एकड़ की सीमा रेखा खिंची जा रही है और इसमें भी केवल दो लाख रुपये तक के फसली ऋण माफ़ी की योजना बनाई जा रही है .डॉ दर्शन पाल मांग करते हैं कि बिना किसी भूमि जोत सीमा के  सभी  किसानों के मनी लेंडर्स के कर्जों समेत पूर्ण ऋण माफ़ किये जाएँ . किसान के फसली ऋण समेत सभी कृषि कर्जों पर ब्याज की दर एक या दो प्रतिशत ही रखी जाए तथा ब्याज कभी भी कंपाउंड ना किया जाए . किसान कर्ज की पालिसी बनाई जाये तथा मनी लेंडर्स का रजिस्ट्रेशन करके उन्हें रेगुलेट किया जाए . मनी लेंडर्स से लिए गए कर्ज की दर भी सरकार न्यूनतम स्तर पर निर्धारित  करे ताकि साहूकार किसान से अधिक ब्याज ना वसूलें  . खाद बीज व कीटनाशको की कीमते कम करके  फसलों की कास्ट ऑफ़ प्रोडक्शन को कम किया जाए तथा फसल का लाभकारी मूल्य किसान को मिलना सुनिश्चित हो .

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