दिल्ली में सामूहिक बलात्कार से संबंधित निर्भया मामले के बाद जन आक्रोश की अभूतपूर्व अभिव्यक्ति हुई थी। इसके बावजूद हवस में अंधे भूखे भेडि़यों की दरिंदगी में कमी नहीं आई है। वर्मा आयोग और बलात्कार संबंधी कानून में संशोधनों के बावजूद घटनाओं में कमी नहीं आना पूरे समाज के लिए चिंता का विषय है। बदायूं में दो दलित बालिकाओं के साथ सामूहिक बलात्कार कर उनकी हत्या कर शव पेड़ पर लटकाने की जघन्य घटना और इसके बाद फिर बलात्कार की निरंतर घटनाएं महिला स्वतंत्रता की आशाओं पर तुषारापात हैं। अमेठी में पुलिस के सामने सामूहिक बलात्कार की ताजा घटना सामने है। वहां के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना तो यह है कि ज्यादातर मामले में सहमति से संबंध होते हैं। राजस्थान में भी निर्भया मामले के समय ही सीकर में भी ऐसा ही जघन्य मामला हुआ था। इसके बाद अभी भी आए दिन बलात्कार, सामूहिक गैंगरेप कर हत्या जैसे मामले यहां भी लगातार सामने आ रहे हैं। राज्य सरकार और पुलिस तंत्र तमाशबीन बनकर कार्रवाई के नाम पर महज खानापूर्ति कर रहे हैं। आज स्थिति यह है कि ऐसी घटनाओं पर आक्रोश की अभिव्यक्ति राजनीतिक होती है या फिर आंकड़े पेश किए जाने लगते हैं, सख्त से सख्त दंड, फांसी और पुलिस व्यवस्था में सुधार या मुआवजा तक यह सब सिमटा रहता है।
पुलिस हिरासत में बलात्कार, जाति उत्पीड़न के अंग के रूप में बलात्कार, दबंगों का दमन और आतंक तथा पुरुष प्रधान व्यवस्था में व्याप्त लिंग भेद, यौन उत्पीड़न जैसे विषयों पर कम चर्चा होती है। पुलिस की लापरवाही या कर्तव्य विमुखता को आपराधिक तौर पर नहीं लिया जाता। उनको आरोपित किया भी जाता है तो अपराध के प्रोत्साहन का ही आरोप लगता है। राजस्थान में सीकर की मासूम बालिका के साथ सामूहिक बलात्कार के मामले में पुलिस की कार्रवाई पर कई सवाल उठाए गए हैं। इसमें छह आरोपियों में से कुछ के ही खिलाफ चालान पेश किया गया है। इनमें से भी दो की जमानत आसानी से हो गई। तेरह वर्ष की मासूम के 17 माह में 20 ऑपरेशन हो चुके हैं, क्या इससे भी ज्यादा कोई अन्य प्रताड़ना क्या हो सकती है? बलात्कार के बाद पुलिस और मीडिया जिस तरह घटना की रिपोर्टिंग करते हैं, वह पीडि़त पक्ष के लिए दुखांतिका से कम नहीं होते। बदायूं की घटना वहां के दलित समाज पर आतंक स्थापित करने का प्रयास है। यहां पुलिस की भी सांठगांठ थी। पुलिस हिरासत में बलात्कार और अर्द्घ सैन्य बलों अथवा स्पेशल आर्मी एक्ट के अंतर्गत ऐसे मामलों में आरोपियों को मिलने वाली मदद पर तो बहुत कम बात होती है।