आमूल-चूल परिवर्तन से पूरा होगा सबके लिए घर का सपना

-सिद्धार्थ शंकर गौतम-
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हाल ही में मोदी कैबिनेट ने सभी के लिए घर योजना को मंजूरी दे दी है जिसमें शहरी गरीबों तथा कम आय वर्ग के लिए मकानों का निर्माण किया जाएगा। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस सपने को पूरा करने के लिए देश के सभी 4011 शहरों और कस्बों में 2 करोड़ मकानों को बनाया जाना है। इसी के मद्देनज़र कैबिनेट ने सरदार पटेल नेशनल हाउसिंग मिशन के तहत 2022 तक ‘सबका अपना घर’ के वादे को पूरा करने के लिए हॉउसिंग फॉर ऑल योजना को मंजूरी दे दी है। इस योजना के तहत साल 2022 तक देश के हर परिवार को उसका अपना घर देने की कार्ययोजना बनाई गई है जिसके लिए करीब 13 लाख करोड़ रुपए के निवेश की जरूरत होगी। तीन चरणों में कुल 500 शहरों में इस परियोजना को आगे बढ़ाने पर ध्यान दिया जाएगा। पहले चरण के तहत मार्च 2017 तक 100 शहर शामिल किए जाएंगे जबकि सभी के लिए आवास के तहत दूसरे चरण में मार्च 2019 तक 200 और शहरों को शामिल किया जाएगा। तीसरे और अंतिम चरण में मार्च 2022 तक सभी बाकी बचे शहरों को शामिल किया जाएगा। कैबिनेट के निर्णय के अनुसार केंद्र सरकार झुग्गी बस्तियों में प्रत्येक मकान के निर्माण पर एक लाख रुपए की मदद देगी। गरीबों और कमजोर वर्गों को सस्ते आवास बनाने के लिए घर कर्ज में लेने पर 15 साल तक ब्याज में साढ़े 6 फीसद की छूट दी जाएगी। घर कर्ज पर ये ब्याज सब्सिडी करीब प्रति घर करीब 2.3 लाख रुपए की होगी। इसके अलावा इस योजना में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के साथ साझेदारी के जरिए भी मकान बनाने का विकल्प होगा। इसके लिए केंद्र सरकार की और से गरीबों के लिए मकान बनाने पर एक मकान के निर्माण पर 1.5 लाख रुपए की सीधी मदद दी जाएगी।
इस योजना की सबसे ख़ास बात यह है कि सभी के लिए घर मिशन के तहत राज्य सरकारों और आवास बोर्डों के पास खुद सस्ते घर बनाने का विकल्प होगा और इसके लिए वो केंद्र सरकार की सहायता ले सकते हैं। इसके तहत राज्यों को शहरी गरीबों के लिये मकान के निर्माण पर सब्सिडी दी जाएगी। हालांकि इस पूरी योजना या कहें कि मोदी के इस सपने के पूरा होने में बाजारवाद सबसे बड़ा रोड़ा है। पूरे देश में घर निर्माण क्षेत्र में निजी मकान निर्माणकर्ताओं का बोलबाला है। ये निजी मकान निर्माणकर्ता मोटा मुनाफा कमाने के चक्‍कर में सस्‍ते घर का निर्माण करना ही नहीं चाहते। वहीं रियल एस्‍टेट के लिए रेगुलेटर न होने का फायदा भी बिल्‍डर उठाते हैं और वे घरों की कीमतें अपनी मर्जी से तय करते हैं। दूसरी ओर सरकार की जितनी भी निर्माण संस्थाएं हैं, वे घर बनाने का काम छोड़ चुकी हैं। अब ये निर्माण संस्थाएं जमीन का अधिग्रहण कर निजी निर्माणकर्ताओं को बेचने का काम करती हैं जिसके चलते समय-समय पर ज्यादातर निर्माण संस्थाओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगते रहते हैं। मोदी के सपने की राह में एक और बड़ा रोड़ा है और वह है कीमतों का तय न होना। दरअसल, रियल एस्‍टेट मार्केट में सस्‍ते घर की कोई तय परिभाषा नहीं है। दिल्‍ली-एनसीआर, मुंबई, बेंगलुरु कोलकाता या फिर किसी अन्य मेट्रो सिटी में सस्‍ते घर की कीमत 15 से 20 लाख रुपए की जद में है और यह अधिकतम 650 वर्ग फीट एरिया में बना होता है। वहीं, इसके उलट इंदिरा आवास योजना देश के ग्रामीण इलाकों में समाज के गरीब तबकों को 75,000 रुपए में घर बनाने की आर्थिक मदद देता है। देखा जाए तो सस्ते घर की कीमत 5 से 12 लाख के बीच होनी चाहिए। ऐसे घरों का आकार 200 से 500 वर्ग फीट होना चाहिए। सस्‍ते घर के निर्माण के लिए सस्‍ती कीमत पर जमीन मुहैया होनी चाहिए और इसके लिए स्‍वीकृति की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी किया जाना चाहिए। यदि मोदी सरकार अपने इस महत्वाकांक्षी सपने को यथार्थ के पैमाने पर उतारना चाहती है तो उसे इस क्षेत्र की कमियों को दूर कर आमूल-चूल परिवर्तन करने होंगे। तभी सस्ते घर का सभी का हक़ पूरा होगा।
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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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