राहुल गांधी के आपरेशन उत्तर प्रदेश की शुरूआत हुई महिलाओं के अपमान से

डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

राहुल गांधी ने अपना ऑपरेशन उत्तर प्रदेश, भट्टा-पारसौल से प्रारंभ किया है। भट्टा-पारसौल में सरकार द्वारा अपनी जमीन के अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों पर भीषण अत्याचार किए। गोलीवारी में कुछ लोग मारे भी गए। दरअसल, जब से वैश्विकरण की बिमारी भारतीय पूंजीवाद में घुसी है तब से केंद्रीय और प्रादेशिक सरकारों ने किसानों की भूमि का अधिग्रहण करके उसे निजी कंपनियों को सप्लाई करना शुरू कर दिया है। जाहिर है कि निजी कंपनियां इस पूरे चक्कर में खुद भी मालामाल हो रही है और किसानों की जमीन का अधिग्रहण करके जो लोग यह जमीन निजी कंपनियों को सप्लाई कर रहे हैं वे भी मालामाल हो रहे हैं। इससे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि किसानों की जमीनों का जबरदस्ती अधिग्रहण सरकारें कानून के नाम पर कर रही है। इस हमाम में सभी नंगे हैं। कोई किसी को दोष नहीं दे सकता। केंद्र सरकार भी निजी कंपनियों के दलाल के रूप में कार्य कर रही है और राज्य सरकारें भी। इसलिए एक चोर दूसरे को चोर कह रहा है ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है।

उत्तर प्रदेश में यह कांड भट्टा-पारसौल में हुआ है, कॉमरेडों ने यही किस्सा नंदीग्राम और सिंगुर में कर दिखाया था। हरियाणा में सोनियां कांग्रेस के आंखों के तारे भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने रोहतक और महम में यह जलवा कर दिखाया था। और जहां तक सोनियां कांग्रेस का प्रश्न है उसकी हुंडी तो सारे देश में ही चल रही है। इस सबके बावजूद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भट्टा-पारसौल में हुई घटना का विरोध करने का और दुःख की इस घड़ी में किसानों के पास जाने का राहूल गांधी को पुरा अधिकार है। लेकिन राहुल गांधी ने क्योंकि कभी जमीनी आंदोलन में शिरकत नहीं की। जैसा कि एक मंत्री ने कहा भी कि उन्हें शायद भैंस और गाय का फर्क भी न मालूम हो। भैस और गाय का क्या फर्क होता है यह तो राहुल गांधी किताबों से भी समझ सकते हैं लेकिन गांव का जीवन कैसा होता है और किसान का दर्द क्या होता है? इसे समझने के लिए न तो राहुल के पास समय है और न ही जरूरत। यह भी कहा जा सकता है कि न ही इसकी समझ। शायद यही कारण था कि राहुल गांधी भट्टा-पारसौल में किसानों के जख्मों पर मरहम लगाने गए थे लेकिन उनका अपमान करके वापस लौटे। गांव में कुछ घंटे बिताने के बाद दिल्ली में आकर उन्होंने भट्टा-पारसौल की किसान महिलाओं का अपने ढंग से अपमान करने का अभियान छेड़ दिया। उन्होंने कहा कि गांव की महिलाओं के साथ पुलिसवालों ने बलात्कार किया है। भट्टा-पारसौल की महिलाएं इससे आहत ही नहीं हुई बल्कि अपमानित भी। राहुल गांधी ने एक ही झटके से उस गांव की महिलाओं को शेष समाज के आगे संदिग्ध बना दिया। राहुल शायद नहीं जानते कि शहर और गांव में बहुत बड़ा फर्क होता है। शहरों में इस प्रकार की राजनीतिक गप्पें चल जाती है क्योंकि शहरों का विस्तार भी बड़ा होता है और जनसंख्या भी बहुत ज्यादा। लोग भी एक दूसरे को नहीं जानते। यदि राहुल गांधी ऐसी बात किसी शहर के बारे में कहते तो शायद उसपर कुछ लोग विश्वास भी कर लेते। परंतु दुर्भाग्य से छोटे गांवों में सभी एक दूसरे से परिचित होते हैं और गांव में क्या हो रहा है? यह सभी जानते हैं। भट्टा-पारसौल की महिलाओं का कहना है कि पुलिस ने मार-पिटाई तो की लेकिन बलात्कार की कोई घटना नहीं हुई। पर अब राहुल गांधी तो कोई छोटे-मोटे व्यक्ति तो है नही। सोनियां कांग्रेस के महासचिव हैं और दिग्विजय सिंह से लेकर मनीष तिवारी तक बरास्ता मनमोहन सिंह जल्दी हीं इस देश के प्रधानमंत्री बनने वाले हैं। इसलिए जब राहुल गांधी कह रहे हैं कि भट्टा-पारसौल की महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ है तो झुठ कैसे हो सकता है? हर हालत में हुआ ही है। खतरा यह भी बढ़ता जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में सोनियां का झंडा उठाये घुम रही रीता बहुगुणा जोशी, जो पहले भी बलात्कार और वैश्या जैसे विषयों पर अपनी एक्सपर्ट राय दे चुकी हैं, भट्टा-पारसौल की महिलाओं से बलात्कार के मामले को लेकर अड़ियल रवैया न अपना लें। भट्टा-पारसौल में राहुल गांधी की महिलाओं को अपमानित करने वाली इस हरक त से गुस्सा बढ़ता जा रहा है और उधर सोनिया क ांग्रेस के सैनिकों को अपने सेनापति राहुल गांधी के हर बयान की हर हालत में सुरक्षा करना हीं है। जब तक सुरज चांद रहेगा-राहुल गांधी का यह बयान कायम रहेगा।

लेकिन राहुल गांधी भट्टा-पारसौल में केवल महिलाओं के बलात्कार तक ही सीमित नहीं रहे उन्होंने चलते-चलते यह भी जड़ दिया की पुलिस ने गांव के 74 किसानों की हत्या करके उनकी लाशों को आग लगाकर जला दिया। राहुल गांधी का कहना है कि इन किसानों की जी हुई हडि्डयों का ढेर उन्होंने स्वयं देखा। अब गांव के किसान खुद हीं हैरान हैं क्योंकि गांव के 74 किसान उन्हीं के गांव में जला दिए जाएं और उन्हें पता तक न चले यह कैसे संभव हो सकता है? गांव में किसानों की संख्या लाखों में नहीं होती, कुछ हजार ही होती है और उसमें 74 किसान गायब हो जाएं और किसी को पता न चले यह संभव नहीं हो सकता। लेकिन दुर्भाग्य से राहुल गांधी ने गांव के बारे में न कभी सुना है और न हीं उन्हें कभी देखा है। यह तो अच्छा हुआ कि जल्दी से उनके मुख से 74 ही निकला, वे यदि 100 या 200 भी कह देते तो कोई उनका क्या बिगाड़ सकता था?

यह किस्सा यहीं खत्म नहीं हुआ। वे कुछ किसानों को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास भी पहुंच गए। उन्हें भी भट्टा-पारसौल की महिलाओं के साथ बलात्कार और 74 किसानों की हत्या की कहानियां सुनाने लगे। स्वाभाविक हीं गांव वापस जाने पर इन किसानों से गांव वालों ने पुछा कि जब राहुल गांधी गांव की महिलाओं के साथ बलात्कार की अफवाहें फैलाकर गांव को बदनाम कर रहे थे तो आप चुप क्यों थे? तो राहुल गांधी के साथ प्रधानमंत्री को मिलने गई एक महिला ने कहा-राहुल बबुआ अंग्रेजी में बतिया रहे थे। हमें क्या पता ऐसे अंट-संट बोल रहे हैं? नहीं तो क्या हम चुप रहते? राहुल गांधी किसानों की लड़ाई लड़ें इसमें किसी को ऐतराज नहीं हो सकता लेकिन वे गांव की महिलाओं को कम से कम बदनाम तो न करें।

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