दिल्ली विवि छात्रसंघ ने राहुल गांधी के लांचिंग अभियान की निकाल दी हवा

-डॉ0 कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

राहुल गांधी को लोंच करने के लिए पिछले कुछ अर्से से एक अभियान चलाया जा रहा है । आजकल सारा मेनेजमैट का खेल है । कुछ लोगों को विश्वास है कि मैनजमैंट ठीक ढंग की हो तो गंजे को भी कंघी बेची जा सकती है। मैनजमेंट के हर अभियान का एक सीमित लक्ष्य होता है और उस लक्ष्य का प्राप्त करने के लिए एक सधी हुई रणनीति होती है । मैनजमैंट गुरू एसा मानते है कि यदि लक्ष्य स्पष्ट हो और रणनीति ठीक हो तो सफलता में संदेह नहीं है । भारत की राजनीति में राहुल गांधी को लेकर एक एसा ही प्रयोग करने में मैनजमैंट गुरू लगे हुए है। ऐसे प्रयोगों की एक और खासियत है कि मैनजमैंट के लोग पर्दे के पिछे होते है। और मंच पर स्थापति किये जाने वाले पात्र ही दिखाई देते हैं । दर्शकों को आसमान में पतंग ही दिखाई देता है पंतग की डोर खिचने वाला नीचे खड़ा आदमी दिखाई नहीं देता । इस नये प्रयोग का लक्ष्य अत्यन्त स्पष्ट है । सोनियां गाधी के पुत्र राहुल को देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में स्थापित करना इस लक्ष्य प्राप्ति के लिए बनाई गई रणनीति के अनुसार राहुल गांधी में ऐसे सभी गुण भरने होंगे जिनसे भ्रमित होकर देश के लोग उन्हें अपना नेता स्वीकार कर लें । अब कहा जाता है कि यह देश युवाओं का देश है । जनंसख्या में युवा काअनुपात सर्वाधिक है । इसलिए जरूरी है कि राहुल को युवा नायक सिद्व किया जा सके । देश के युवाओं की दड़कन । इसी रणनीति के अनुरूप राहुल गांधी को देश के अनेक विश्वविद्यालयों ने विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करने के लिए निमंत्रित करना शुरू कर दिया । यह अलग बात है कि जहां एक और विश्वविद्यालयों से राजनीति को बाहर रखने की बात की जा रही है वहीं दूसरी और कांग्रेस पार्टी के अधिकारिक महासचिव राहुल गांधी को विश्वविद्यालयों में निमंत्रित किया जा रहा है । वहॉं राहुल गाधी क्या कहते है इस बात की कोई महत्ता नहीं है क्योंकि उनके पास विश्वविद्यालयों में पड़ने वाले बुद्वी जीवी स्तर के छात्रों को कहने के लिए बहुत कुछ है भी नहीं । अलबत्ता वहॉ पुलिस का ध्यान इस बात की और अवश्य लगा रहता है कि कोई छात्र चप्पल पहन कर तो नही आया । एक विश्वविद्यालय में सुरक्षा प्रबन्धकों ने चप्पल पहने विद्यार्थियों को राहुल गांधी का मार्गदर्शन प्राप्त करने से वंचित कर दिया सुरक्षा प्रबन्धकोंे को यकीन था कि जो लोग मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए जाते है, वे अक्सर जूते फैंक कर बाहर आते हैं । जूता खालने के लिए तो फिर भी समय लगता होगा चप्पल खोलने की तो जरूरत ही नहीं पड़ती । मैंनजमेंट गुरूओं को गुस्सा तो आ ही रहा होगा कि उनकी रणनीति को चप्पल की अशंका थोड़ा हलका कर सकती है । लेकिन यहॉं उनकी सहायता के लिए मीडिया का एक वर्ग तत्पर खड़ा दिखाई दे रहा है राहुल गांधी ने राह चलते पलासटिक की एक थैली उठाई और उसे साथ के डस्टबिन में डाल दिया एक चैनल को दिन भर के लिए प्रशसित गान हेतु अचानक सामग्री प्राप्त हो गई । वह सारा दिन गाता रहा । की राहुल गांधी के इस एक ही कृत्य ने देश भर के युवाओं में नई चेतना नई जान और नई प्ररेणा फूंक दी है । राहुल गांधी ने अपने इस कृत्य के माध्यम से देश के युवाओं को सीधा और स्पष्ट संदेश दे दिया है । और चैनल के अनुसार युवाओं ने भी इसे हाथों हाथ लपक लिया है । प्रयावरण की रक्षा का संकल्प मैनजमेंट गुरूओं के लिखे हुए स्क्रिप्ट के अनुसार ही राहुल गांधी बीचबीच में प्रधानमंत्री को मिलते है। और लगभग 80 बसंत देख चुके प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह का भी आर्थिक विषयों पर मार्गदर्शन करते हैं और बकोल मीडिया वे इस मार्ग दर्शन से अभीभूत होते भी दिखाई देते है। लेकिन स्क्रिपट में अनेक दिशाएं हैं राहुल गांधी को भी उन्हीं के अनुसार चलना पड़ता है । कभी किसी गांव के गरीब के घर रोटी खानी पड़ती है । एक आध रात किसी झोंपड़ी में सोना भी पड़ता है और कभी किसी दुखी जन को साथ लेकर थाने में जाना पड़ता है । और थानेदार को कहना पड़ता है कड़क अवाज में कि इसकी एफ0आई0आर0 दर्ज करो । मैंनजमेंट गुरूओं के अनुसार देश की युवतियों में राहुल गांधी के लोकप्रिय होने का एक और मुख्यकारण उनका परफेक्ट इलिजीबल बेचुलर होना है । मैनजमेंट गुरू इस बात को लेकर कतई परेशान नहीं है कि कभी राहुल गांधी से किसी स्थान पर किसी गंभीर विषय को लेकर कोई गंभीर बात भी करवा दी जाये । इस देश की समस्याएं क्या है, उनके मूल में क्या और उनका समाधान कैसे किया जा सकता है । इन विषयों पर उनका चिन्तन, यदि कोई है तो, लोगों के सामने लाया जाये । युवाओं में बरोजगारी को कैसे समाप्त किया जाये इस पर राहुल गांधी की क्या कार्य योजना है इस पर मैनजमेंट गुरू चुप है। बेरोजगारी खत्म हानी चाहिए, यह भाषण है, लेकिन यह कैसे खत्म होगी- यह चिन्तन है । मैंनजमेंट गुरू राहुल गाधी से भाषण तो दिलवाते है लेकिन चिंतन वाले मामले में आकर चुप हो जाते है। चिंतन पर शायद उनका स्‍वयं का भी विश्वास नहीं है । क्योंकि असली मैंनजमैंट तो वहीं है जो गंजे को कंघी बचे दे । यह काम धोखे और भ्रम से हो सकता । देश को राहुल गांधी की जरूरत है या नहीं है यह अलग प्रश्न है लेकिन मैनजमेंट गुरूओं की खुबी इसी में होगी यदि वे देश के लोगों को समझा सके कि राहुल गांधी के बिना इस देश का चलना मुश्किल है । यदि वे देश के लोगों को यह अभास दे सके कि सारा देश मानो राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने की ही प्रतिक्षा कर रहा है । देश के युवाओं का तो मानों एक ही स्वपन है कि राहुल गांधी प्रधान मंत्री बने ।

मैनजमेंट गुरूओं को लगता था कि उन्होंने सारे देश में यह भ्रम पैदा कर दिया है और देश की युवा पड़ी एक मत से राहुल गांधी को अपना नायक मान चुकी है । उनकी इस सफलता को टेस्ट करने का पहला अवसर दिल्ली विश्वविद्यालय के 3 सितम्बर को हुए छात्र संघ चुनावों ने प्रदान किया । दिल्ली विश्वविद्यालय देश की युवा पढ़ी का प्रतिनिधि मान जा सकता है क्योंकि इसमें पूर्व उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक सभी राज्यों से छात्र पढ़ने के लिए आते है। फिर इस विश्वविद्यालय में जो चुनाव होते है। उसमें केवल विश्वविद्यालय परिसर के छात्र ही भाग नहीं लेते बल्कि दिल्ली प्रदेश के समस्त कॉलेजों के छात्र भी मतदान करते है। लगभग पिछले एक दशक से इस विश्वविद्यालय के छात्र संघ के चुनावों में कांग्रेस के छात्र संगठन एन0एस0यू0आई0 का कब्जा रहा है । लेकिन इस बार इन चुनावों की पूरी बागडोर राहुल गांधी और उनके मैनजमेंट गुरूओं के हाथ में ही थी क्योंकि इस बार के चुनाव असाधारण थंे । राहुल गांधी प्रत्यक्ष चुनावों में सक्रिया रूचि ले रहे थे और यदि एन0एस0यू0आई0 जीत जाती तो मैनजेमैंट गुरूओं को अपनी पीठ थपथपाने का मौका तो मिलता ही साथ ही यह विशलेषण करने का अवसर मिल जाता कि इन चुनावों के माध्यम से देश की युवा पढ़ी ने राहुल गांधी के नेतृत्व में अपनी आस्था जताई है । इसलिए इस बार ऐरे गैरोंे के हाथ से एन0एस0यू0आई0 की कमान लेकर राहुल गांधी मैनजमैंट गुरू स्वय सारा मोर्चा सम्भाले हुए थे यहॉं तक की चुनाव में एन0एस0यू0आई के टिकट किस को दिये जाये इसका निर्णय फाउडेशन फार एडवांस मैनजमैंट फार इलेकश्न की देख रेख मेंकिया गया जिसके अध्यक्ष श्री जे0एम0लिगदो हैं ।

एन0एस0यू0आई0 ने छात्र संघ के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव और सहसचिव चारों पदों के लिए अपने प्रत्याशर उतारे । एन0एस0यू0 आई का मुकाबला अपने प्ररम्परागत प्रतिद्विंदी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से था । जैसे जैसे चुनाव प्रचार आगे बड़ता गया वैसे वैसे यह मुकाबला वस्तुतः राहुल गांधी बनाम विद्यार्थी परिषद में सीमटने लगा । एन0एस0यू0आई के लिए अपने बेनरों पर राहुल गांधी का चित्र लगाना एक अनिवार्य शर्त ही बन गई थी ।

लेकिन जैसा मैनजमेंट गुरू देश को विश्वास दिलाना चाहते थे कि राहुल गाधी को युवा पीढ़ी ने अपना नायक स्वीकार कर लिया है ऐसा करने में वे सफल नहीं हुए वे शायद यह मान कर चलते थे की टी0वी0 चैनलों में घुमते फिरते राहुल गांधी को देखकर देश की युवा पीढ़ी भ्रमित हो जायेगी परन्तु ऐसा भी नहीं हुआ इसे राहुल गांधी का दुर्भाग्य मानना चाहिए कि उनके मैनजमैंट गुरू देश के युवाओं को, खासकर विश्विद्यालय में पढने वाले युवाओं को विचार शून्य मान कर चल रहे थे । परन्तु ऐसा नहीं था युवा पीढ़ी में अभी भी धुन्ध की पीछे छीपे सत्य को पहचाने की शक्ति है देश की युवा पीढ़ी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ के चुनावों के माध्यम से इसे सिद्व कर दिखाया है । चुनाव में विधार्थी परिषद ने 4 में से 3 पद भारी बहुमत से जीत कर राहुल गांधी को लांच करने के अभियान की हवा निकाल दी है । विधार्थी परिषद के जितेन्द्र चैधरी एन0एस0यू0आई के प्रतिद्वन्दी से लगभग 2000 वोटों के अंतर से जीते । इसी प्रकार उपाध्यक्ष के लिए प्रिया दवास 1500 से भी ज्यादा अन्तर से जीती । सचिव के लिए नीतू देवास लगभग 5000 वाटों के अंतर से जीती । एन0एस0यू0आई को केवल सह सचिव के पद पर संतोष करना पड़ा । वहॉं भी उसका प्रत्याशी केवल 626 वोटों से जीत पाया । रिकार्ड के लिए सी0पी0एम0 की एस0एफ0आई और सी0पी0आई0 की ए0आई0एस0एफ0 भी चुनाव लड़ रही थी परन्तु मतदाताओं ने उन्हें ज्यादा महत्व नहीं दिया । इन चुनावों के माध्यम से देश की युवा पीढ़ी ने यह स्पष्ट संदेश तो दे ही दिया है कि मैनजमैट गुरू अपनी रणनीतियों से कारपोरेट घरानों में तो उठा पठक कर सकते हैं । कुछ देर के लिए मीडिया की मदद से किसी के नेता होने का भ्रम भी पैदा कर सकते है। लेकिन राहुल गांधी को वे अपनी रणनीतियों से युवा नायक स्थापित नहीं कर सकते । क्योंकि युवा नायक होने का अर्थ है देश की मिट्टी में मिट्टी होना, देश के सांस्कृतिक रंग में सराबोर होना, संघर्ष के रहे युवा वर्ग की पीढ़ा को केवल जानना ही नहीं बल्कि उसे अपने ह्रदय के भीतर अनुभव करना । ध्यान रहे इस देश के युवा नायक खेत खलिहानों से निकलते हैं राज परिवारों से नहीं । मैनजमैंट गुरू राहुल गांधी के रूप में यही करना चाहते थे लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ के चुनावों ने इसका करारा जवाब भी दे दिया है , और मैनजमेंट गुरूओं को उनकी औकात भी बता दी है।

4 COMMENTS

  1. क्या इलेक्ट्रॉनिक वोटींग नहीं थी? उसमें भी मैनेजमेंट गुरूओं का करिश्मा दिख जाता।पर, मैं बहुत उत्साहित होना नहीं चाहता। चुनाव तक बहुत कुछ हो सकता है। और चमचों की कमी नहीं है, इस हाथसे भोजन करने वाले देशमें? मैनेजमेंट गुरू निश्चित ही राई का पहाड बनाते पाए गए हैं। और विरोधी उपलब्धियों पहाड भी राई के बराबर बना सकते हैं। धन बलपर सारा “जयचंदी माध्यम” (मिडीया) बिक जाएगा। और मत दाता उदार है,फिरसे इन्हे चुन कर लाए, तो आश्चर्य नहीं।और भ्रष्टाचारी विरोधी पार्टियां, भी बिकती है। फिर देश भाडमें! यह Vicious Cycle विष चक्र कब तक ? कोई “नरेंद्र मोदी” का अवतार भारतको दिला दोगे ? लल्लु पंजुओं से कब छूटेंगे? और E V M ?

  2. Very nice. A very appropriate analysis. Mr. Rahul Gandhi needs to stop lecturing Indians and should go and learn ABC of Indian culture. Or he can migrate to Columbia and establish his household there.

  3. एक कहावत है – हिसाब पूरा तो, कुनबा डूबा क्यों। चुनाव बीते हुए दस दिन से ज्यादा बीत गये हैं किन्तु युवराज के कैम्प से कोई टिप्पणी तक बाहर नहीं आयी है। शायद यह मूल्यांकन चल रहा हो कि हवा राहुल की निकली या उनके मैनेजरों की। बहरहाल, कुलदीप जी ने जिस हास्य भरे शब्दों में युवराज की हास्यास्पद स्थिति का वर्णन किया है वह तारीफ के काबिल है।

    हां, मनमोहन सिंह जी की स्थायी रूप से गंभीर मुखमुद्रा देख कर यह नहीं लगता कि अस्सी क्या कोई एक वसंत भी कभी उनके नजदीक से गुजरा होगा। वहीं चेहरे की कॉस्मेटिक चिकनाई के बाद भी बुढ़ाते राहुल के जीवन में भी कभी वसंत दस्तक देगा इसकी उम्मीद कम ही दिखती है। इन मैनेजरों से भी वैचारिक पहल की उम्मीद तो अपने आप में ही एक लतीफा है।

  4. अब इस कांग्रेस के झांसे में कोई नहीं आने वाला ,क्योकि इस पार्टी ने हर परिवार को इतना दुखी कर दिया है की मां बाप अपने बच्चों से कहते हैं की- बेटा इस कांग्रेस को भूलकर भी वोट नहीं देना ,क्योकि इसने देश को बर्बाद कर दिया है …

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