-सुरेश हिन्दुस्थानी-
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में जबरदस्ती नेता के रूप में स्थापित किए जा रहे राहुल गांधी को लेकर कांगे्रस में बार बार पदार्पण का नाटक किया जाता है, लेकिन राहुल गांधी हैं कि बार बार के पदार्पण के बाद भी स्थापित होने में असमर्थ साबित होते हैं। अभी कुछ दिनों पूर्व राहुल गांधी की अज्ञात यात्रा से वापसी पर जिस प्रकार का नाटक खेला गया, वह वास्तव में ही इतना बड़ा प्रकरण नहीं था कि राहुल गांधी का इतना भारी भरकम सम्मान करने का नाटक किया जाए, लेकिन सत्ता से दूर रहने वाली कांगे्रस इस बात के लिए जी तोड़ उपक्रम करती दिखाई दे रही है कि कैसे भी हो राहुल गांधी का मजबूत पदार्पण हो जाए और देश की सत्ता एक बार फिर कांगे्रस के हाथ में आ जाए।
हम जानते हैं कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी 56 दिनों के लिए भारतीय राजनीति से ऐसे गायब हुए कि उनका स्वयं कांग्रेसी नेताओं तक को पता नहीं था। जिनको पता भी होगा उनके बोलने की मनाही थी। अगर यह मनाही वाली बात सत्य है तो यह अत्यंत ही खतरनाक बात है कि एक राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित किए जा रहे नेता के बारे में सच को जान बूझकर छुपाया जा रहा है। भारतीय राजनीति के इतिहास का अध्ययन किया जाए तो यह बात स्पष्ट रूप से परिलक्षित है कि राजनेताओं का भारत की आम जनता के साथ सीधा तादात्म्य रहा है, फिर चाहे वह डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी हों, राममनोहर लोहिया हों या फिर जयप्रकाश हों, सभी के अंदर जनमानस के प्रति असीम प्रेम था। उनके व्यक्तिगत जीवन में आमजनता के दर्द का प्रस्फुटन दिखाई देता था। मात्र इसी आधार पर जनता ने उनको अपना नेता माना। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बारे में यह स्पष्ट मत है कि वह उनका जन सरोकार से कोई नाता नहीं है, हां यह बात जरूर है कि वे जनता के दुख दर्द में शामिल होने का दिखावा करते हैं। इतना ही नहीं उनका यह दिखावा नजर भी आ जाता है। फिर भी कांग्रेस में सोनिया मंडली के राजनेता अपनी प्रभावी सहभागिता बनाए रखने के लिए राहुल के लिए जी तोड़ राजनीति करते दिख रहे हैं। इन राजनेताओं के लिए अपना खुद का कद ज्यादा महत्वपूर्ण है। ये लोग राहुल गांधी के बारे में कितनी ईमानदारी से प्रयास करते होंगे ये तो यही जानें, लेकिन इतना तय है कि जैसे प्रयास किए जा रहे हैं, वैसे तलवे चाटने वाले प्रयासों से इन पर जरूर कृपा हो जाएगी।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बारे में कहा जाता है कि वे देश से ऐसे कई महत्वपूर्ण अवसरों पर गायब हो जाते हैं, जहां उनकी बहुत आवश्यकता होती है। महत्वपूर्ण कार्य की राजनीति में उदासीन रवैया अपनाकर राहुल गांधी अगर यह सोचते हैं कि वे राष्ट्रीय नेता स्थापित हो सकते हैं तो यह उनकी बहुत बड़ी भूल ही साबित होगी। हालांकि राहुल के बारे में कई राजनेताओं की स्पष्ट धारणा है कि राहुल जितना विदेश के बारे में सोचते हैं, उतना भारत के बारे में नहीं सोचते, इतना ही नहीं उन्हें भारत के बारे में भी पूरी तरह से जानकारी ही नहीं है। सोनिया गांधी के बारे में यह बात कही जाती कि उन्हें भारत के बारे में सम्पूर्ण जानकारी नहीं है, तो यह स्वीकार करने वाली बात हो सकती थी, क्योंकि सोनिया गांधी विदेश में पैदा हुईं, उनका बचपन भी इटली में गुजरा। तो स्वाभाविक है कि उनको इटली के बारे में पूरी जानकारी होगी ही, लेकिन राहुल अगर पूरे भारत के बारे में नहीं जानते तो यह उनकी खुद की कमजोरी है। इसी कमजोरी के कारण ही वर्तमान में राहुल को बार बार स्थापित करने की पटकथाएं लिखी जा रहीं हैं, लेकिन राहुल है कि हर बार इन पटकथाओं पर पानी फेर देते हैं।
भारत के राजनीतिक इतिहास में यह कारनामा जरूर चौंकाने वाला कहा जाएगा कि राहुल के बारे में ऐसा प्रयास बार बार क्यों किया जा रहा है। हर बार असफल होने के बाद राहुल के बारे में यह सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या राहुल को इतना भी ज्ञान नहीं हैं कि वह भारत की राजनीति को समझ सकें। अगर वास्तव में इतना ज्ञान नहीं है तो बार बार जनता को बेवकूफ क्यों बनाया जा रहा है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी भारतीय राजनीति में ऐसे नए अभिनेता है, जो एक जैसा अभिनय बार-बार करते हैं। जिस तरह बेंगलोर में एक-दो माह की प्राकृतिक चिकित्सा के बाद व्यक्ति स्वयं को तरोताजा अनुभव करता है और वह अधिक क्रियाशील दिखाई देता है, वैसे ही राहुल चुनावी हार की मानसिक थकान मिटाने के लिए करीब दो माह के विदेशी यात्रा के बाद नई उमंग के साथ अपना नया अभिनय कर रहे हैं। राजनीति में भी ऐसे अभिनय की आवश्यकता रहती है, जिससे लोग प्रभावित हो सके। अभी तक जितने अभिनय सोनिया गांधी या राहुल गांधी ने किए, उनका विपरीत असर जनता पर हुआ। कांग्रेस को ऐतिहासिक दुर्गति का सामना करना पड़ा। राहुल गांधी कांग्रेस का भविष्य हैं, इसलिए यदि उनकी राजनीति को भारत की जनता ने बार-बार नकार दिया तो कांग्रेस इतिहास के पृष्ठों में सिमट सकती है। आईसीयू में पड़ा रोगी भी अपने जीवन का मोह नहीं छोड़ पाता है। यही स्थिति कांग्रेस की है। शहजादे ने किसान का मुद्दा पकड़कर किसानों के सबसे बड़े हितैषी बनने की कोशिश कर रहे हैं। मोदी सरकार कार्पोरेट की सरकार है, यह सूटबूट की सरकार है, राहुल शायद यह भूल गए कि नेहरूजी और उनके पिता राजीव गांधी ने भी सूटबूट से विदेश के दौरे किए थे। यह बात भी चर्चा में रही थी कि नेहरूजी के कपड़े पैरिस से धुलकर आते थे। इसलिए राहुल को कम से कम यह बात तो नहीं करना चाहिए।
जब किसी के पास खोटा सिक्का या नकली नोट होता है तो वह उसे बार बार अलग अलग दुकानों पर जा कर चलाने की कोशिश करता है , इस आशा से कि कोई तो मूर्ख या नासमझ मिल जाये और यह सिक्का चल जाये वही हालत आज कांग्रेस की हो रही है , वह भी बार बार ऐसा ही कर रही है , धो पोंछ कर ,वह इस सिक्के को चलाने की तिकड़म में है , दूसरा कारण यह भी है कि अब उसके पर्स में अब असली सिक्का या नोट कोई बचा भी नहीं है