इतिहास होता रेल बजट

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railप्रमोद भार्गव

भारतीय रेलवे को मजबूत आर्थिक व सरंचनात्मक आधार देने की दृष्टि से पृथक से प्रस्तुत किए जाने वाले रेल बजट का विलय आम बजट में किया जा रहा है। रेल बजट को केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में पेश किए जाने वाले आम बजट में मिलाने के तौर-तरीके तय करने के बाद संयुक्त संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट वित्त मंत्रालय को सौंप दी थी। अब इस रिपोर्ट को केंद्रीय मंत्रीमंडल ने भी अनुमति दे दी है। लिहाजा अंग्रेजी शासन काल से चले आ रहे 92 साल पुराने रेल बजट को संसद में पेश किए जाने की परंपरा अगले साल 2017 में इतिहास बन जाएगी। दरअसल नीति आयोग के सदस्य विवेक देवराय ने रेलवे से संबंधित एक रिपोर्ट तैयार करने के दौरान भारत सरकार को यह सलाह दी थी कि अलग से रेल बजट पेश करने का कोई औचित्य नहीं है, इसलिए इसे आम बजट में शामिल कर लिया जाए। रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने भी नीति आयोग के इस प्रस्ताव का समर्थन किया था। बहरहाल, रेल बजट समाप्त करने की भूमिका बेहद सुनियोजित ढंग से की गई थी। हालांकि इस विलय से रेलवे को लाभ होने के बड़े दावे किए जा रहे हैं, लेकिन हकीकत तो तब सामने आएगी, जब इस बजट के विलीनीकरण के बाद पहले वित्तीय वर्श के नतीजे सामने आएंगे। लाभ में चल रहे राष्ट्रिय बैंकों के कुछ बड़े और कुछ निजी बैंकों के विलय के समय भी यही दावे किए गए थे, किंतु अब ज्यादातर बैंक गैर निष्पादित संपत्तियों के चक्रव्यूह में उलझकर मदद के लिए सरकार का मुंह ताक रहे हैं।

फिरंगी हुकूमत के दौरान पहला रेल बजट 1924 में दस सदस्यीय एक्वर्थ समिति ने पेश किया था। समिति के अध्यक्ष विलियम मिशेल एक्वर्थ थे। इस समिति ने 1921 में रेलवे के वित्तीय प्रदर्शन में सुधार के लिए अलग से रेल बजट प्रस्तुत करने का सुझाव किया था। समिति के अध्यक्ष अर्थशास्त्री विलियम मिशेल एक्वर्थ थे। तब रेल बजट आम बजट का 70 से 85 फीसदी तक हुआ करता था। मसलन आम बजट के आर्थिक आकार का महत्व रेल बजट के रूबरू गौण था। इस लंबे कालखंड में व्यापक आर्थिक बदलाव आए हैं। योजनागत स्वरूप भी बदला है। अब रेल बजट घटकर महज 15 फीसदी रह गया है। इस नाते कहा जा रहा है कि विलय न सिर्फ आर्थिक बल्कि योजनागत स्वरूप में भी फायदेमंद रहेगा। रक्षा और परिवहन जैसे कई मंत्रालयों का आकार रेलवे से कहीं ज्यादा बड़ा है, बावजूद इनका अलग से बजट पेश नहीं किया जाता। आजादी के बाद नबंवर 1947 में जाॅन मिथाई देश के पहले रेल मंत्री बने और स्वतंत्र भारत का पहला रेल बजट संसद में पेश किया। इस बजट का सीधा प्रसारण पहली बार 24 मार्च 1994 को किया गया। अब तक सबसे ज्यादा 6 बार रेल बजट प्रस्तुत करने का अवसर रेल मंत्री रहे लालू प्रसाद यादव को मिला है। 2004 से 2009 तक उन्होनें बजट पेश किया। तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी को पहली महिला रेल मंत्री बनने का मोका मिला है।

देबराॅय समिति की रिपोर्ट के आधार पर सुरेश प्रभु ने इसी साल जून में वित्तमंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखा था कि रेल बजट को आम आम बजट में विलय कर दिया जाए। रेल मंत्रालय का मानना है कि इस उपाय से उसकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। फिलहाल भारतीय रेल 32,000 करोड़ के घाटे में है, जबकि रेलवे के 67000 किमी से ज्यादा लंबे ट्रेक पर रोजाना ढाई करोड़ लोग यात्रा करते हैं। बावजूद रेलवे को महज 34000 करोड़ की आय यात्री रेलों से हो पाती है। हवाई, सड़क और जल परिवहन सुविधाओं में बढ़ोत्तरी व सुधार होने से रेल की आमदनी घट रही है। बावजूद रेलवे पर 40,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार सांतवें वेतनमान का आ पड़ा है। 33000 करोड़ रुपए का भार यात्री सेवा सब्सिडी का है। 1.07 लाख करोड़ का भार निर्माणाधीन परियोजनाओं की लगात बढ़ने का है और 1.86 लाख करोड़ रुपए का भार आॅनगोइंग रेल परियोजनाओं का है। साफ है, भारतीय रेल बड़े आर्थिक दबाव में है।

भारतीय रेल दुनिया की सबसे बड़ी यात्री रेल सेवा होने के साथ, सबसे बड़ी मालवाही सेवा भी है। दोनों की सेवाएं तुलनात्मक दृष्टि से दुनिया में सबसे अधिक सस्ती सेवाएं हैं। साथ ही यात्री किराए में 28 प्रकार की छूट की व्यवस्थाएं हैं। यही वजह है कि संचालन और रखरखाव में होने वाले कुछ खर्च का 57 प्रतिशत ही रेलवे उगाह पाती है। बावजूद हर साल सरप्लस बजट पेश करती है। रेलवे यात्री किराए में जो छूटें देती है, वह धनराशि उसे सब्सिडी के रूप में भारत सरकार से वापस नहीं मिलती, जबकि खाद्य, ऊर्जा, उर्वरक, गैस व पेट्रोलियम पदार्थों में जो छूटें मिलती हैं, उनकी भरपाई भारत सरकार संबंधित मंत्रालयों को करती है।

रेलवे को लाभांश के रूप में करीब 10,000 करोड़ रुपए भी भारत सरकार को चुकाने होते हैं। विलय के बाद यह लाभांश चुकाना नहीं पड़ेगा। इसे न चुकाने की सिफारिश समिति ने भी की है। हालांकि इस राशि का 4 से 6 फीसदी लाभांस आमदनी के रूप में योजनागत मदों में वापस मिल जाता है। हालांकि आम बजट में रेलवे को 40,000 करोड़ की मदद दी जाती है। बावजूद रेलवे की 458 परियोजनाएं अधूरी पड़ी हैं। इन्हें पूरा करने के लिए 483511 करोड़ रुपए की जरूरत है। इन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए रेलवे ने पूंजी निवेश की कई कोशिशें की, लेकिन निवेश संभव नहीं हुआ। रेलवे ने राज्यों के साथ मिलकर भी लंबित योजनाओें को पूरा करने व नई परियोजनाएं शुरू करने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन इसमें भी उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली।

रेल बजट के आम बजट में विलय के परिप्रेक्ष्य में दावा किया जा रहा है कि अब सड़क, वायु और जल परिवहन सेवाओं की तर्ज पर ही रेल यातायात के लिए भारत सरकार सामूहिक योजनाएं बनाएगी। इन योजनाओं को भौगोलिक विविधताओं के हिसाब से अमल में लाया जाएगा। रेलवे का ढांचागत विकास अब देश में हर जगह की स्थानीय परिस्थिति और जरूरत के हिसाब से विकसित किया जाएगा। रेलवे की आमदनी अब एक आधारभूत कोष में जमा होगी। किराए व माल भाड़े में संषोधन रेल विकास प्राधिकरण करेगा, हालांकि विलय के बाद भी रेलवे को नई परियोजनाएं शुरू करने, रेलों के विस्तार व नई रेले शुरू करने की स्वायत्तता रहेगी।

विलय के बाद वित्त मंत्रालय ही संसद में रेल बजट प्रस्तुत करेगा। लेकिन अभी दोनों मंत्रालयों के बीच अधिकारों का बंटवारा होना बांकी है। इसके लिए क्या प्रक्रिया अपनाई जाएगी, यह अभी तय होना है। आम बजट में रेलवे के लागत और गैर-लागत खर्च के ब्यौरे भी होंगे। बावजूद अभी यह साफ नहीं है कि रेलवे को विलय किए जाने का उपाय कारगर साबित होगा ? क्योंकि अब तक रेल बजट की तैयारी में केंद्रीय बजट जैसी ही प्रक्रिया अपनाई जाती है। बजट में जो घोषणाएं प्रस्तावित होती हैं, उनकी मंजूरी प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रीमंडल से ली जाती है। रेलवे को जो भी आमदनी होती है, वह पहले सरकारी खजाने में जमा होती है, और फिर मांग के अनुसार संसद की इजाजत से रेलवे को मिलती है। यहां तक कि छोटे-मोटे खर्चों को छोड़, सभी खर्चों की अनुमति संसद से ली जाती है।

पृथक से रेल बजट पेश किए जाने में उसकी अपनी विलक्षण्ता इस रूप में थी, कि छोटी से छोटी जानकारी बजट दस्तावेजों में दर्ज होती थी। बजट पेश होने के साथ ही ये जानकारियां सार्वजनिक हो जाती हैं। देश के राज्य ही नहीं क्षेत्र विशेष को भी मालूम रहता था कि इस क्षेत्र में रेलवे क्या विकास करने जा रही है। बजट में प्रस्तावित योजना के लंबित होने पर स्थानीय जनता और प्रतिनिधी योजना को क्रियान्वित करने के लिए रेलवे पर पर्याप्त दबाव बनाए रखते थे। आम बजट के साथ रेल बजट पेश किए जाने के दौरान अब विस्तृत व वर्गीकृत जानकारियां जनता के सामने नहीं होंगी। साफ है, लोकतंत्र में जो पारदर्शिता मूलतत्व के रूप में पेश आती रहनी चाहिए, विलय के बाद उसके विलोपीकरण की आशंका बढ़ जाएगी। लिहाजा रेल बजट की जो एक अलग पहचान जन-मानस में बनी हुई थी, वह लुप्त हो जाएगी।

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